सीता नवमी का पर्व महिलाओं के काफी खास होता है, राम नवमी की ही तरह सीता नवमी भी धर्मग्रंथों में काफी महत्वपूर्ण बताई गई है। ये तिथि अपने आप में इतनी खास क्यों है और इस दिन व्रत रखने का क्या फल मिलता, आइए जानते हैं। सबसे पहले तो ये जान लेना जरुरी है कि सीता नवमी क्याहै। हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी के तौर पर मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं में इस दिन को माता सीता के जन्म या प्राकट्य के तौर पर देखा जाता है। इसलिए ही इस दिन को सीता जयंती या जानकी नवमी के रूप में भी जाना जाता है। सीता नवमी के खास प्रसंग पर चलिए हम आपको माता सीता से जुड़ी उन बातों से अवगत कराते हैं, जिन्हें सुनकर आपभी चकित रह जाएंगे, क्योंकि ये वो तथ्य हैं जो धर्मग्रंथ में मौजूद तो हैं लेकिन कभी हमने इस ओर ध्यान ही नहीं दिया गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित रामचरित मानस में देवी सीता का जिक्र कुल 147 बार किया गया है।मान्यता के अनुसार माता जानकी सिर्फ 18 साल की उम्र में प्रभु श्रीराम के साथ वनवास चली गयी थीं।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार माता सीता के हरण के बाद इंद्र ने ऐसी खीर माता सीता को खिलाई, जिसे खाने से भूख-प्यास नहीं लगती थी। यही वजह थी कि जब तक सीता माता लंका में रहीं, तो उन्हें भूख-प्यास नहीं लगी। सीता नवमी पर्व की विशेषता क्या होती है,वो भी जान लेते हैं। धर्मशास्त्रों के अनुसार, इस पर्व पर जो भी भगवान राम के साथ ही माता जानकी का व्रत-पूजन करता है उसे समस्त प्रकार के दुखों,रोगों व संतापों से मुक्ति मिलती है। मान्यता ये भी है कि इस दिन व्रत रखने वाली सुहागिन स्त्रियों को अखंड सौभाग्य मिलता है और कुंवारी कन्याओं को अच्छे वर की भी प्राप्ति होती है।
सीता नवमी के दिन घर में रामायण का अखंड पाठ करने से घर की नकारात्मकता दूर होती है। घर में सुख-शांति आती है। कथाओं में हम माता सीता को पवित्रता, त्याग,समर्पण, विनयशीलता, साहस और धैर्य के प्रतीक के रुप में पूजते हैं। उनका त्याग और तपस्या सारी नारी जाति के लिए अनुकरणीय है। भारतीय संस्कृति में श्रीराम-सीता आदर्श दंपति हैं। श्रीराम ने जहां मर्यादा का पालन करके आदर्श पति और पुरुषोत्तम पद प्राप्त किया, वहीं माता सीता ने सारे संसार के समक्ष अपने धर्म के पालन का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया।
सीता नवमी के इस पावन पर्व की जानकारी के बाद चलिए आपको अब माता सीता से ही जुडे रोचक प्रसंग और मंदिर से भी रूबरू कराते हैं। माता सीता का स्वंयवर जनकपुर में हुआ था, माना जाता है कि वो जगह अब नेपाल में है और जानकी मंदिर नेपाल का प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मंदिर की कलाकृति बेहद अद्भुत है। ये नेपाल में सबसे महत्त्वपूर्ण राजपूत स्थापत्यशैली का उदाहरण भी है।
जानकी मंदिर नेपाल के काठमांडू शहर से लगभग 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जानकीपुर धाम के रूप में विख्यात माता सीता का ये मंदिर 4860 वर्गमीटर में फैला हुआ है। इस मंदिर के निर्माण में करीब 16 साल का समय लगा था यानि मंदिर का निर्माण 1895 में शुरु हुआ और 1911 में संपूर्ण हुआ था। मंदिर के आसपास 115 सरोवर और कुंड है, जो इसकी खूबसूरती में इजाफा करते हैं। जिसमें से गंगा सागर, परशुराम सागर एवं धनुष सागर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है।
जानकी मंदिर का निर्माण राजपुताना महारानी वृषभानू कुमारी ने करवाया गया था,उस समय मंदिर के निर्माण में करीब 9 लाख रूपए लगे थे। इसलिए मंदिर को नौलखा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर परिसर में विवाह मंडप भी है। जिसको लेकर मान्यता है कि यही वो मंडप है जहां पर माता सीता और भगवान राम का विवाह हुआ था। इस विवाह मंडप के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं। खास मान्यता के अनुसार आसपास के लोग विवाह के अवसर पर मंदिर से सिंदूर लेकर जाते हैं। वैसे इस साल 2023 में साल सीता नवमी का पर्व 29 अप्रैल को है।
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