अक्षय तृतीया से जुड़ी पौराणिक मान्यताएं, जानिए महाभारत से लेकर पुराणों तक क्यों खास है ये तिथि?

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अक्षय तृतीया तिथि को सबसे शुभ तिथियों में से एक बताया जाता है। इसके कई रीजन्स भी हैं। शास्त्र इस तिथि के बारे में क्या कहते हैं, इसे इतना महत्व क्यों दिया जाता है और क्या आप महाभारत से इस तिथि के खास कनेक्शन के बारे में जानते हैं?

अक्षय तृतीया की तिथि कब पड़ती है, सबसे पहले तो ये जान लेते हैं। हिंदू पंचांग के मुताबिक, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को अक्षय तृतीया कहा जाता है।

विष्णु धर्म सूत्र, मत्स्य पुराण, नारदीय पुराण और भविष्य पुराण समेत कई देवग्रथों में इस तिथि का जिक्र विस्तार से मिलता है। तिथि के बारे में जो कथा प्रचलित है...आइए उसे भी जान लेते हैं। शास्त्रों के मुताबिक, शाकल नगर में रहने वाले एक वणिक नाम के धर्मात्मा अक्षय तृतीया के दिन पूर्ण श्रद्धा भाव से स्नान, ध्यान और दान कर्म किया करते थे। जबकि उनकी पत्नी उनको ये सब करने से मना करती थीं। ऐसी भी मान्यता है कि धर्मात्मा के किए गए दान पुण्य के प्रभाव से उनको मृत्यु के बाद द्वारका नगरी में सर्वसुख सम्पन्न राजा के रुप में अवतरण मिला।

ये कहानी इस ओर इशारा करती है कि इस दिन किया हुआ दान-कर्म मृत्यु के बाद भी बढ़ता रहता है। कहानी के बाद अब ये समझ लेते हैं कि ये तिथि ही महत्वपूर्ण क्यों हैऐसा बताया जाता है कि द्वापर युग इस तिथि को ही समाप्त भी हुआ था। सतयुग, त्रेतायुग और कलयुग का शुरुआत भी इसी तिथि को हुई थी, यही वजह है कि अक्षय तृतीया को अबूझ मुहूर्त भी कहते हैं।

अबूझ मुहूर्त का मतलब है कि इस दिन किए जाने वाले कार्यों के लिए मुहूर्त पर विचार नहीं किया जाता। पूरे दिन में किसी भी वक्त किए गए कार्य पूर्ण माने जाते हैं। तिथि के साथ ऐसे तमाम प्रसंग जुड़े है जो बहुत शुभ हैं और इसी वजह से इस तिथि को और अधिक महत्वपूर्ण बना देते है। जैसे कि पुराणों में भगवान परशुराम का जन्म अक्षय तृतीया पर ही माना गया है। अक्षय तृतीया को ही भगवान विष्णु के चरणों से धरती पर गंगा अवतरित हुई थी। आदि शंकराचार्य ने इस दिन कनकधारा स्तोत्र की रचना की थी। ब्रह्मा के पुत्र अक्षय कुमार का प्राकट्य भी इसी दिन हुआ था। अन्न की देवी अन्नपूर्णा माता का अवतरण भी अक्षय तृतीया के दिन हुआ था।

अक्षय तृतीया के दिन से ही वेदव्यास और भगवान गणेश ने महाभारत ग्रंथ लिखना शुरू किया था। अक्षय तृतीया के दिन ही सुदामा, भगवान कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे थे। अक्षय तृतीया के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर के पूछने पर ये बताया था कि आज के दिन जो भी रचनात्मक या सांसारिक कार्य किया जाएगा, उसका पूरा पुण्य हासिल होगा। अक्षय तृतीया के दिन ही चीरहरण के समय प्रभु श्रीकृष्ण ने द्रोपदी को अक्षय वस्त्र का आर्शीवाद दिया था। अक्षय तृतीया को ही महाभारत की लड़ाई भी खत्म हुई थी और इसी तिथि पर ही भगवान श्री कृष्ण ने पांडवों को एक अक्षय पात्र दिया था। जो कभी खाली नहीं होता था।

इसके कारण ही पांडवों को अन्न की कमी कभी महसूस नहीं हुई। इन्हीं सब वजहों से लोगों का ये मानना है कि अक्षय तृतिया के दिन खरीदी हुई सम्पत्ति शुभ होती है। इस साल 2023 में अक्षय तृतीया 22 अप्रैल को है। 

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