मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में विधानसभा चुनाव (Assembly Elections 2023) की सियासी तपिश लगातार बढ़ती जा रही है, जहां एक तरफ बीजेपी (BJP) अपनी सत्ता को बचाए रखने की कवायद में जुटी है तो वहीं, कांग्रेस (Congress) की तरफ से कमलनाथ (Kamalnath) और दिग्विजय सिंह (Digvijay Singh) ने पूरी ताकत झोंक रखी है। हाल के दिनों में बीजेपी से कई बड़े नेता कांग्रेस में शामिल हुए हैं। लेकिन, मध्य प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के कई ऐसे भी सियासी किले हैं, जहां इन पार्टियों को एक-दूसरे को मात देना टेढ़ी खीर होगा। ऐसे में जानते हैं उन सियासी किले के बारे में जो इस बार सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाएंगे।
मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस ने मालवा-निमाड़ का किला जीतने के लिए पूरी ताकत झोंक दी है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, उनके बेटे जयवर्धन सिंह ने यहां की हारी सीटों पर मैदान संभाल रखा है। दूसरी तरफ मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान लगातार क्षेत्र का दौरा कर लोगों से मिल रहे हैं। वहीं, बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय अरसे बाद अब लोकल पॉलिटिक्स में सक्रिय दिखाई दे रहे हैं। आखिर इस पूरी उठापटक के पीछे की वजह क्या है तो राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मालवा-निमाड़ में भले ही 230 में से 66 सीटें हैं। लेकिन, जिसने भी मालवा-निमाड़ जीतकर बढ़त बनाई उसकी ही प्रदेश में सरकार बनती है। दिग्विजय सिंह से लेकर उमा भारती, शिवराज सिंह चौहान से लेकर कमलनाथ की जीत..सभी के मुख्यमंत्री बनने का ट्रेंड 30 साल से एक जैसा है। इतना ही नहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ जिन विधायकों ने कांग्रेस का हाथ छोड़ बीजेपी का दामन थामे उनमें से 7 विधायक मालवा-निमाड़ क्षेत्र के ही हैं।
मालवा-निमाड़ का चुनावी चक्र
तो साल 1990 में बीजेपी ने 52 सीटें जीतीं थी। वहीं कांग्रेस को 10 सीटें ही हासिल हो सकी। सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने थे। साल 1993 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने 32-32 सीटों पर जीत हासिल की थी और दिग्विजय सिंह बाजी मारते हुए मुख्यमंत्री बने। इसके बाद साल 1998 में कांग्रेस ने 47 सीटें जीतीं और बीजेपी को 16 सीटों पर समेट दिया। इस बार दिग्विजय सिंह दोबारा मुख्यमंत्री बनें। फिर 2003 में उमा लहर में 51 सीटें बीजेपी के खाते में गईं और कांग्रेस 12 सीट पर सिमट गई। साल 2008 में बीजेपी ने अपना परफारमेंस रिपिट किया और 66 में से 41 सीटें जीतकर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने और कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट गई। इसके बाद साल 2013 में बीजेपी ने रिकॉर्डतोड़ 56 सीटें जीतीं और कांग्रेस 9 सीटों पर सिमट गई और एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। लेकिन 2018 में कमलनाथ की वापसी हुई और कांग्रेस ने 66 में से 35 सीटें जीतीं और बीजेपी को 28 सीटें ही हासिल हो सकी। दरअसल, 2018 के विधानसभा चुनाव में एमपी की 230 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत हासिल की है, पार्टी को 40.89 प्रतिशत वोट मिला था। वहीं बीजेपी 109 सीटों पर रह गई। बीजेपी को 41.02 प्रतिशत वोट मिले थे। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया के खेमे के विधायकों के इस्तीफे की वजह से कमलनाथ की सरकार गिर गई और शिवराज सिंह चौहान फिर से राज्य के मुख्यमंत्री बने।
ग्वालियर-चंबल इलाके में कांग्रेस का गढ़ मजबूत
ग्वालियर-चंबल इलाके को कांग्रेस का मजबूत गढ़ माना जाता रहा है। यहां से पहले माधवराव सिंधिया और फिर उनके बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस संगठन को धार देते रहे हैं। लेकिन, 2020 में सत्ता के उलटफेर और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में शामिल होने के बाद कांग्रेस ने अपने इस किले को बचाए रखने के लिए खास फोकस कर दिया है। कांग्रेस के ग्वालियर-चंबल में फोकस रखने की एक और वजह है। पार्टी को 2018 के विधानसभा चुनाव हों या 2020 का उपचुनाव या फिर नगर निकाय और पंचायत चुनाव। इन सभी फॉर्मेट के चुनाव में कांग्रेस को जबरदस्त जीत मिली है। 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने ग्वालियर -चंबल के 8 जिलों की कुल 34 सीटों में 26 सीटें जीती थीं। जबकि, बीजेपी को 7 और बसपा को एक सीट मिली थी। सिर्फ चंबल क्षेत्र के तीन जिलों की 13 सीटों में 10 कांग्रेस के खाते में आई थीं। हालांकि ग्वालियर-चंबल में कांग्रेस के कुछ ऐसे अभेद किले भी हैं। इनमें दिग्विजय सिंह का गढ़ राघौगढ़ इलाका है। ये क्षेत्र गुना जिले में आता है। दूसरा भिंड जिले का लहार क्षेत्र है। यहां गोविंद सिंह का दबदबा है। तीसरा इलाका शिवपुरी जिले का पिछोर माना जाता रहा हैं यहां से केपी सिंह 30 साल से विधायक हैं ग्वालियर जिले के भितरवार इलाके में भी कांग्रेस की पकड़ है। कांग्रेस विधायक लाखन सिंह यादव 2008 से लगातार चुनाव जीतते आ रहे हैं। ग्वालियर जिले की डबरा सीट भी कांग्रेस के कब्जे में है।
महाकौशल और विंध्य क्षेत्र में कांग्रेस का दबदबा
राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस की स्थिति महाकौशल और विंध्य क्षेत्र में ज्यादा मजबूत दिख रही है। इसके पीछे वजह ये है कि महाकौशल में कुल 38 विधानसभा सीटें हैं। जिनमें से पिछले चुनावों में 24 पर कांग्रेस के विधायक जीते हैं। जबकि 13 सीटों पर बीजेपी के विधायक चुन कर आए थे। चुनावी सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक, इस बार महाकौशल की 38 सीटों में से 13 पर कांग्रेस की जबरदस्त पकड़ मजबूत है, जबकि बीजेपी सिर्फ 8 पर ही। यहां की 13 सीटों पर बीजेपी-कांग्रेस के बीच कांटे की टक्कर है। हालांकि बीजेपी के विधायकों वाली 3 सीटों पर गुटबाजी देखने को मिल रही है।
आदिवासी वोटर्स पर दिग्विजय सिंह की नजर
दरअसल, मध्य प्रदेश की 230 सदस्यीय विधानसभा में 82 सीटों पर आदिवासी वोटर्स की स्थिति बेहद मजबूत है और चुनाव परिणाम को प्रभावित करने में सक्षम हैं। इस 82 सीटों में से 47 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं। जबकि 35 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रखी गई हैं। कहा जा रहा है कि मध्य प्रदेश की करीब 12 विधानसभा सीटों पर गुर्जर समुदाय निर्णायक स्थिति में है। इस पर दिग्विजय सिंह की नजर है।
कांग्रेस का फोकस हारी हुई 66 सीटों पर
सबसे खास बात ये है कि कांग्रेस पार्टी का फोकस उन 66 सीटों पर है,जहां पिछले पांच चुनाव से उसे लगातार हार का सामना करना पड़ रहा है। इनमें रहली, दतिया, बालाघाट, रीवा, सीधी, नरयावली, भोजपुर, सागर, हरसूद, सोहागपुर, धार, इंदौर दो, इंदौर चार, इंदौर पांच, मंदसौर, महू, गुना, शिवपुरी, देवसर, धौहनी, जयसिंहनगर, जैतपुर, उज्जैन उत्तर, उज्जैन दक्षिण, रतलाम सिटी, मल्हारगढ़, नीमच और जावद जैसी सीटें शामिल हैं।
जहां एक तरफ मध्य प्रदेश में बीजेपी का परचम लहराने के लिए सीएम शिवराज सिंह चौहान, गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा, केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया, कैलाश विजयवर्गीय जैसे कद्दावर नेताओं के हाथों में बाग डोर है तो वहीं, सत्ता में वापसी के लिए कांग्रेस के कमलनाथ फ्रंटफुट पर तो दिग्विजय बैक डोर से बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने का खेल खेल रहे हैं? अब देखना ये होगा कि एमपी में मामा का खेल चल पाएगा या दिग्गी राजा गेम चेंजर के रूप साबित होते हैं।
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