बीजेपी में अपने समर्थकों को क्यों नहीं रोक पा रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया ?

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मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election) से ठीक पहले बीजेपी आखिर कौन सी खिचड़ी पका रही है। चुनाव से पहले रणनीति बनाने में माहिर गृह मंत्री अमित शाह (Home Minister Amit Shah) आखिर क्यों बार-बार मध्य प्रदेश आकर ऐसी कौन सी रणनीति बना रहे हैं और क्या कई दशकों बाद मध्य प्रदेश के चुनावों में महाराज फैक्टर काम नहीं करेगा। MP में बीजेपी के नेताओं की गुटबाजी क्या थम गई है। ये सवाल इसलिए क्योंकि मध्य प्रदेश बीजेपी में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। चुनाव से ठीक पहले जहां बीजेपी दूसरी पार्टी के बड़े नेताओं को पार्टी में शामिल करती थी। वहीं इस बार इसका उल्टा हो रहा है और बीजेपी के कई असंतुष्ट सिंधिया समर्थक नेता पार्टी छोड़कर वापस कांग्रेस की ओर रुख कर रहे हैं। ऐसे में क्या मध्य प्रदेश की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया (Jyotiraditya Scindia) अकेले पड़ जाएंगे। इन्हीं सब बातों का विशलेषण हम इस रिपोर्ट में करेंगे और बताएंगे कैसे मध्य प्रदेश के चुनाव में सिंधिया फैक्टर कमजोर पड़ता जा रहा है।    

2018 के विधानसभा चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस के प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष थे और बेहद ही जोरशोर से पार्टी के पक्ष में वोट मांगते नजर आए थे। राज्य में कांग्रेस की सरकार बनने में सिंधिया की भी अहम भूमिका थी। लेकिन, वो सीएम न बन सके। साल 2020 में वो पार्टी से नाराज होकर बीजेपी के ऑपरेशन लोटस का हिस्सा बनें और अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ बीजेपी में शामिल हो गए, जिससे मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार गिर गई। इसके बाद से पार्टी में उनका कद बढ़ता गया और सिंधिया को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह दी गई और मंत्री बनाया गया। लेकिन एक बार फिर राज्य में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में उनके साथ आए विधायक और समर्थकों के लिए वो बड़े धर्म संकट में फंस गए हैं। मध्य प्रदेश के चुनाव को लेकर बीजेपी युद्धस्तर पर तैयारी कर रही है। लगातार गृहमंत्री अमित शाह राज्य का दौरा कर रहे हैं और संगठन की बैठकें कर रहे हैं। हालांकि चुनावी साल में बीजेपी ने सिंधिया को कई जिम्मेदारियां दी हैं। इतना ही नहीं, चुनाव संबंधी समितियों में उनके लोगों को जगह देकर बीजेपी ने दिखा दिया है कि ज्योतिरादित्य को दरकिनार नहीं किया जा रहा है। लेकिन, ज्योतिरादित्य की टिकट वितरण में कितनी चलेगी ये देखना होगा। 

नेताओं के टिकट मांगने की लंबी लाइन 

बताया जा रहा है कि सिंधिया समर्थक नेताओं में टिकट मांगने की लाइन और भी लंबी हो गई है, जिसका असर है कि नेता पार्टी छोड़ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में शामिल हुए नेताओं को अब लगने लगा है कि बीजेपी में पहले से ज्यादा नेता हैं। ऐसे में उनका नंबर आना मुश्किल है। यही वजह है कि वो अब बीजेपी छोड़कर कांग्रेस पर भरोसा कर रहे हैं। इसलिए इस बार बीजेपी के लिए मध्य प्रदेश की राह आसान नहीं दिख रही है।

 सिंधिया के किन-किन करीबियों ने छोड़ा साथ? 

समंदर पटेल जावद विधानसभा से 2018 में निर्दलीय चुनाव लड़ चुके हैं। पटेल चुनाव तो नहीं जीत सके, लेकिन 33 हजार वोट पाकर कांग्रेस का खेल बिगाड़ने में कामयाब रहे। जब सिंधिया बीजेपी में शामिल हुए, तो पटेल भी उनके साथ हो लिए। सिंधिया का दामन छोड़ने वाले समंदर पटेल जावद सीट से टिकट चाहते थे। 

गुना-शिवपुरी में सिंधिया के करीबी रहे बैजनाथ यादव भी कांग्रेस में शामिल हो गए थे। बैजनाथ यादव की पत्नी कमला यादव शिवपुरी जिला पंचायत अध्यक्ष रह चुकी हैं। जब यादव कांग्रेस में शामिल हुए, तो 400 गाड़ियों के काफिले के साथ भोपाल पहुंचे थे।

सिंधिया समर्थक जयपाल सिंह यादव चंदेरी से चुनाव लड़ चुके हैं. यादव भी सिंधिया के खास लोगों में गिने जाते थे। हाल ही में यादव अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस में शामिल हुए हैं।

यदुराज सिंह यादव की चंदेरी में मजबूत पकड़ है। उन्हें संगठन का आदमी माना जाता है। जब सिंधिया चुनाव लड़ते थे, तो अशोक नगर में यदुराज की बड़ी भूमिका रहती थी। वो कांग्रेस में भी शामिल हो गए हैं।

रघुराज धाकड़ कोलारस विधानसभा से आते हैं और करीब 20 साल से राजनीति में हैं। धाकड़ समाज के कद्दावर नेताओं में रघुराज की गिनती होती है। कोलारस में धाकड़ समाज के करीब 25 हजार वोटर्स हैं। धाकड़ भी कोलारस सीट से चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन उन्हें भी कोई आश्वासन नहीं मिला। 

राकेश गुप्ता भी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं। वो शिवपुर में बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष पद पर थे। जब सिंधिया कांग्रेस में थे, तो गुप्ता को जिले का कार्यकारी अध्यक्ष बनवाया था। शिवपुरी में सिंधिया के लोकसभा चुनाव मैनेजमेंट का काम गुप्ता ही देखते थे।

सिंधिया समर्थक नेताओं को अपने भविष्य की चिंता 

इन नेताओं के अलावा ग्वालियर-गुना के कई संगठन नेताओं के कांग्रेस में शामिल होने की चर्चा है। कहा जा रहा है कि ये नेता टिकट को लेकर कांग्रेस हाईकमान से आश्वासन चाहते हैं। अगर उन्हें टिकट के लिए हरी झंडी मिल गई तो वो तुरंत कांग्रेस का दामन थाम लेंगे। वहीं, राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले जानकार बताते हैं कि सिंधिया समर्थक नेताओं को अपने भविष्य की चिंता भी सता रही है। इसलिए सिंधिया खेमे के ज्यादातर नेताओं के साथ छोड़ने की वजह भविष्य की राजनीति भी है। जिन नेताओं ने भारतीय जनता पार्टी छोड़ी है, उनकी गिनती अपने-अपने क्षेत्र में कद्दावर नेता के तौर पर होती है। ऐसे में आने वाले विधानसभा चुनाव में ये नेता बीजेपी की मुसीबत बढ़ाते नजर आ सकते हैं। 

सिंधिया अपने समर्थकों को बीजेपी में क्यों नहीं रोक पा रहे हैं? 

दरअसल, जब सिंधिया के करीबी और संगठन के नेता राकेश गुप्ता ने शिवपुरी बीजेपी के जिला उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था, तो उन्होंने एक पत्र जारी किया था। गुप्ता ने अपने पत्र में लिखा था- भारतीय जनता पार्टी में निष्ठावान कार्यकर्ताओं की उपेक्षा और सम्मान न मिलने से मैं बीजेपी के कल्चर को समझ नहीं पा रहा हूं। सिंधिया का साथ छोड़ रहे समर्थकों का कहना है कि चुनाव लड़ने वालों पर भी हार का खतरा मंडरा रहा है। 2020 के उपचुनाव में सिंधिया के कई समर्थक हार गए हैं।  जानकारों का कहना है कि बीजेपी से आए कांग्रेस के संगठन नेताओं को यहां का कामकाज समझ नहीं आया। सत्ता के लालच में कुछ लोगों ने खुद को फिट कर लिया, लेकिन कई लोग अनफिट हो गए। ये अनफिट नेता अब घर वापसी कर रहे हैं।

पिछले 10 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं। वैश्विक और राजनीतिक के साथ-साथ ऐसी खबरें लिखने का शौक है जो व्यक्ति के जीवन पर सीधा असर डाल सकती हैं। वहीं लोगों को ‘ज्ञान’ देने से बचता हूं।

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