राजस्थान (Rajasthan) बीजेपी में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया (Vasundhara Raje Scindia) के सितारे गर्दिश में चल रहे हैं। इसकी वजह दीया कुमारी (Diya Kumari) को बीजेपी की टिकट से विद्याधर नगर सीट से चुनाव मैदान में उतारना है। पिछले कुछ दिनों की घटनाएं ये इशारा भी कर रही हैं कि महारानी का सियासी खेल करीब-करीब उनकी पार्टी में खत्म हो चुका है। अब पार्टी उनकी जगह नया नेतृत्व तैयार करने के मूड में है। 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की जनसभा में जिस तरह से राजसमंद की सांसद दीया कुमारी को मंच से बोलने का अवसर मिला। वहीं वसुंधरा राजे को भाषण देने का मौका नहीं मिला। इस घटना के बाद राजस्थान के सियासी गलियारों में ऐसी चर्चा चलने लगी कि क्या भारतीय जनता पार्टी पूर्व सीएम वसुंधरा राजे को साइडलाइन कर महारानी दीया कुमारी के रूप में उनका विकल्प तैयार कर रही है? आइये जानते हैं कौन हैं महारानी दीया कुमारी...
महारानी दीया कुमारी राजस्थान की राजसमंद लोकसभा सीट से बीजेपी सांसद हैं। उनका जन्म 30 जनवरी, 1971 को जयपुर के पूर्व महाराजा भवानी सिंह और पद्मिनी देवी के घर हुआ था। 1997 में दीया और शिवाड़ के कोटड़ा ठिकाने के कुंवर नरेंद्र सिंह राजावत से लव मैरिज हुई थी और दोनों के दो बेटे और एक बेटी है। लेकिन, शादी के 21 साल बाद दोनों तलाक लेकर अलग हो गए थे। साल 2013 में राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाली दीया कुमारी ने बीजेपी ज्वाइन करने के बाद सवाई माधोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और विधायक बनीं। साल 2019 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी ने राजसमंद से टिकट दिया और दीया कुमारी ने यहां भी जीत दर्ज की और देश की सबसे बड़ी पंचायत में जा पहुंचीं। आइए बात करते हैं आखिर क्या वजह है कि पार्टी महारानी दीया कुमारी पर दांव लगा सकती है? दरअसल, आनंदपाल मामले में राजपूतों की नाराजगी की वजह से बीजेपी पिछला विधानसभा चुनाव हार गई थी। इस बार बीजेपी ये गलती दोबारा नहीं करना चाहती। इसीलिए राजपूत वोट बैंक को फिर से मजबूत किया जा रहा है। नेता प्रतिपक्ष के पद पर राजेंद्र सिंह राठौड़ को बैठाकर बीजेपी ने पहले ही राजपूतों को संदेश दे दिया था। वसुंधरा से दूरी बनाने के बाद बीजेपी अब राजस्थान में पार्टी के संस्थापक और कद्दावर नेता भैरो सिंह शेखावत की विरासत को फिर से जिंदा करने में जुट गई है।
बीजेपी का राजपूतों को संदेश
राजस्थान में राजपूत करीब 14 फीसदी हैं और 60 विधानसभा सीटों पर उनका प्रभाव है। राजपूत वोटों की नाराजगी किसी भी पार्टी के लिए भारी पड़ सकती है। वहीं, वसुंधरा खुद को राजपूतों की बेटी, जाटों की बहू और गुर्जरों की समधन कह तीनों जातियों को साधती रही हैं। लेकिन, सांसद दीया कुमारी की बात अलग है। उनके पास महारानी गायत्री देवी की विरासत भी है। बीजेपी उन्हें अहम जिम्मेदारी देकर राजपूतों को संदेश दे सकती है।
दोनों महारानियां आमने-सामने
दरअसल, वसुंधरा राजे और दीया कुमारी दोनों राजपूत हैं। इसलिए अगर वसुंधरा नाराज होती भी हैं तो पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। हालांकि इन दोनों के बीच सियासी दुश्मनी किसी से छुपी नहीं है। कभी वसुंधरा राजे ने ही दीया कुमारी को राजनीति में एंट्री दिलाई थी। 2013 के विधानसभा चुनाव में डॉ. किरोड़ी लाल मीणा को हराने के लिए वसुंधरा ने राजकुमारी को सवाई माधोपुर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने का फैसला किया। वसुंधरा का तीर निशाने पर लगा और राजकुमारी दीया ने सियासी फायदा उठा लिया। लेकिन, राजपरिवार और राज्य सरकार के बीच संपत्ति विवाद में दोनों महारानियां आमने-सामने आ गईं। 2018 में वसुंधरा ने दीया कुमारी का टिकट काट दिया और यही रानी दीया कुमारी के लिए वरदान साबित हुआ। पार्टी हाईकमान ने उन्हें सांसद का टिकट दे दिया। तब से महारानी का सितारा बुलंदियों पर है।
जो मेवाड़ जीतता है वही राजस्थान
राजस्थान की राजनीति में माना जाता है कि जो मेवाड़ जीतता है, वही राजस्थान पर राज करता है और महारानी दीया मेवाड़ के राजसमंद से सांसद हैं। साल 2013, 2008 और 2003 के राजस्थान विधानसभा चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि मेवाड़ में जिस पार्टी को सबसे ज्यादा सीटें मिलीं, उसी ने सरकार बनाई है। 2013 में 28 सीटों में से बीजेपी ने 25 और कांग्रेस ने दो सीटें जीतीं थी और सरकार बनाई बीजेपी ने। हालांकि साल 2018 के नतीजे कुछ अलग रहे थे, जब बीजेपी ने 15 सीटें और कांग्रेस ने 10 सीटें जीतीं थी। लेकिन, बीजेपी सरकार बनाने में नाकाम साबित हुई।
पार्टी आलाकमान और वसुंधरा के बीच मतभेद
सबसे बड़ा सवाल ये उठ रहा है कि क्या वसुंधरा की नराजगी के चलते महारानी दीया को मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी आलाकमान वसुंधरा से अपना हिसाब चुकता कर सकता है। ऐसे कई मौके आए हैं जब पार्टी आलाकमान और वसुंधरा के बीच मतभेद खुलकर सामने आते रहे हैं। जयपुर शाही परिवार कछवाहा राजपूतों का रहा है। महारानी दीया कुमारी कई बार ये दावा कर चुकी हैं कि उनका वंश श्रीराम के बेटे कुश की 399वीं पीढ़ी है। पिता भवानी सिंह को 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता के लिए महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था। महारानी दीया कुमारी का परिवार कांग्रेसी रहा है। लेकिन, दीया कुमारी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर जमकर बोलती हैं। महारानी दीया कुमारी पर भ्रष्टाचार के कोई आरोप नहीं हैं और कुल मिलाकर उनकी छवि भी साफ-सुथरी है। वहीं, हैरान करने वाली बात ये है कि एक अनुभवी नेता की तरह वसुंधरा अपने ग़ुस्से और मनोभावों को लगातार पी रही हैं। उन्होंने अब तक ऐसी कोई प्रतिक्रिया सार्वजनिक तौर पर नहीं दी है, जिसकी उम्मीद उनसे बहुत से राजनीतिक खेमे लगाए हुए हैं।
वसुंधरा से परेशान बीजेपी!
राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा राजे सिंधिया के बगावती तेवरों से पार्टी में उनकी स्थिति खराब हो गई है। हाल ही में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल पर लगे आरोपों के पीछे भी वसुंधरा का हाथ बताया जा रहा था। इससे पहले भी उन पर कई बार पार्टी की मीटिंग से गायब रहने और पार्टी से अलग अपनी यात्रा निकालने जैसे आरोप लग चुके हैं। यही वजह है. वसुंधरा पार्टी हाईकमान की चहेती नहीं बन पाईं। उनकी दबाव वाली राजनीति से पार्टी लगातार परेशान होती रही है। इसके ठीक उलट महारानी दीया कुमारी टॉप नेतृत्व के साथ कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और पार्टी का विश्वास जीतने में सफल रही हैं। ऐसे में एक महारानी के विकल्प के तौर पर बीजेपी दूसरी महारानी को आगे कर सकती है। ताकि वसुंधरा राजे की नाराज हो जाने की स्थिति में पार्टी को ज्यादा नुकसान न उठाना पड़े।
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