राजस्थान में 23 नवंबर को विधानसभा चुनाव (Rajasthan Assembly Elections) होना है। यहां कुल वोटर्स 5.25 करोड़ हैं। जिनमें 22.04 लाख नए वोटर हैं। प्रदेश में बीजेपी और कांग्रेस के बीच कड़ी टक्कर है। पिछले 30 सालों से लगातार बीजेपी या कांग्रेस पार्टी की सरकारें बनती आ रही हैं। हालांकि, इस बार तीसरे धड़े की 5 पार्टियां 50 से ज्यादा सीटों पर BJP-Congress नेताओं का खेल बिगाड़ सकती हैं। इस चुनौती को देखते हुए सियासी गलियारों में थर्ड फ्रंट बनाने की चर्चा है। BSP, AAP, BTP, CPI, RLP और AIMIM जैसी पार्टियों के नेता 100 से ज्यादा सीटों पर टक्कर का दावा बता रहे हैं। लेकिन, क्या इस बार राजस्थान में थर्ड फ्रंट की पार्टियां किंगमेकर साबित होंगी? आइए जानते हैं...
बहुजन समाज पार्टी
पिछले 30 सालों से बीएसपी राजस्थान में थर्ड फ्रंट के तौर पर सबसे सफल पार्टी रही है। 2018 के विधानसभा चुनाव में भी थर्ड फ्रंट के तौर पर बसपा ने सबसे ज्यादा 6 सीटें जीती थीं। लेकिन, चुनाव जीतते ही उसके सभी 6 विधायक कांग्रेस में शामिल हो गये। पार्टी के राजस्थान पदाधिकारियों का मानना है कि इस बार बसपा किंगमेकर बनकर उभरेगी। बीएसपी का दावा है कि 60 सीटों पर पार्टी की खास तैयारी है। इसमें भरतपुर, धौलपुर, करौली, अलवर, सवाई मोधापुर, दौसा, झुंझुनू, चूरू, हनुमानगढ़ जिलों की सीटें हैं। फिलहाल बसपा ने भी गठबंधन को लेकर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। पार्टी का मानना है कि बीजेपी-कांग्रेस को छोड़कर सभी दलों से गठबंधन का ऑप्शन खुला रखा है।
आरएलपी
इस बार आरएलपी राजस्थान में सबसे चर्चित थर्ड फ्रंट के रूप में नजर आ रही है। पिछले चुनाव में बीजेपी को समर्थन देने वाली आरएलपी ने इस बार अपने पत्ते नहीं खोले हैं। आरएलपी ने पिछली बार 58 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से तीन सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, 7 सीटों पर पार्टी के उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे थे। लेकिन, इस बार पार्टी का सियासी गणित अलग है। पार्टी पदाधिकारियों का दावा है कि करीब 55 सीटें ऐसी हैं जहां आरएलपी की मजबूत तैयारी है। इनमें खासतौर पर पश्चिमी राजस्थान की सीटें बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, पाली, बीकानेर, चूरू, हनुमानगढ़, सीकर और जयपुर ग्रामीण जिले हैं। वहीं कुछ सीटें उदयपुर, चित्तौड़गढ़ और भीलवाड़ा की भी हैं। आरएलपी का फोकस खासतौर पर दलित और जाट बाहुल्य सीटों पर है।
भारतीय आदिवासी पार्टी
इस बार भारतीय ट्राइबल पार्टी से अलग होकर बनी भारतीय आदिवासी पार्टी राजस्थान के आदिवासी इलाकों में गहरा असर डाल सकती। पिछले चुनाव में बीटीपी ने 11 सीटों पर चुनाव लड़ा था, जिसमें से उसे दो सीटों पर जीत मिली थी। पार्टी के पदाधिकारियों का दावा है कि इस बार वो 17 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे।
आरएलडी
राजस्थान में पिछले विधानसभा चुनाव में आरएलडी ने कांग्रेस के साथ गठबंधन में राजस्थान में दो सीटों पर चुनाव लड़ा और भरतपुर में जीत हासिल की। ये सीट लगातार दो बार से बीजेपी के पास थी। वहीं राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी का कहना है कि हम सिर्फ उन सीटों पर चुनाव लड़ना चाहते हैं जिन पर कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल का गठबंधन मजबूती से उभरा है। हम चाहते हैं कि चूरू सीकर झुंझुनू इलाकों में भी हमारी पार्टी का विस्तार हो। उन्होंने कहा कि जो ट्रेंड राजस्थान में अभी तक रहा है एक बार कांग्रेस एक बार भाजपा उसको तोड़ने का काम किया जाएगा।
आम आदमी पार्टी
पिछले विधानसभा चुनाव में 140 सीटों पर चुनाव लड़ने वाली आम आदमी पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई थी। लेकिन, नेशनल पार्टी बनने के बाद वो मजबूती से चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी करीब डेढ़ साल से राजस्थान में सक्रिय है। हालांकि, इंडिया गठबंधन का हिस्सा होने की वजह से ये अभी भी साफ नहीं है कि पार्टी राजस्थान में चुनाव लड़ेगी या नहीं और कैसे लड़ेगी। पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि उनकी सभी 200 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी है। खासकर गंगानगर, हनुमानगढ़, बीकानेर, चूरू और अलवर जिलों में पार्टी खुद को मजबूत मान रही है। प्रदेश में अच्छी शिक्षा, अच्छे अस्पताल, अच्छी सड़कें, पेट्रोल-डीजल, मुफ्त बिजली, महिलाओं के लिए गारंटी जैसे मुद्दों पर चुनाव में जाएंगे।
एआईएमआईएम
राजस्थान में पहली बार असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी चुनाव लड़ने की तैयारी में है। राज्य के 18 जिलों में करीब 40 ऐसी सीटें हैं, जहां मुस्लिम वोटर्स की संख्या चुनाव हार-जीत में अहम भूमिका निभाती है। हालांकि, राजनीति के जानकारों का मानना है कि हो सकता है कि ओवैसी कुछ खास न कर पाएं लेकिन कांटे की टक्कर वाली सीटों पर प्रमुख पार्टियों का गणित बिगाड़ सकते हैं।
माकपा
राजस्थान में माकपा ऐसी पार्टी है जो कुछ न कुछ सीटें हर चुनाव में जीतती है। मौजूदा समय में माकपा के भी दो विधायक हैं। ये स्पष्ट नहीं है कि माकपा थर्ड फ्रंट के रूप में उतरेगी या नहीं। माना जा रहा है कि राजस्थान में माकपा कांग्रेस को समर्थन देगी या फिर गठबंधन भी हो सकता है। अगर गठबंधन हुआ तो कांग्रेस उत्तर-पश्चिमी राजस्थान में 4 सीटें माकपा के लिए छोड़ सकती है।
कभी तीसरे मोर्चे की सरकार नहीं बनी
राजस्थान में कभी तीसरे मोर्चे की सरकार नहीं बनी है। राजस्थान हमेशा से टू पार्टी स्टेट रहा है। 1980 से पहले राजस्थान में कांग्रेस का कब्जा था। उसके बाद बीजेपी और कांग्रेस की ही सरकार रही। जबकि 1998 से अब तक राजस्थान में सिर्फ दो चेहरे ही मुख्यमंत्री रहे हैं। यही वजह है कि इस बार थर्ड फ्रंट की मांग तेजी से उठ रही है। राजस्थान में थर्ड फ्रंट की सरकार कभी नहीं बनी लेकिन कई बार तीसरे मोर्चे की पार्टियों ने अच्छा प्रदर्शन किया।
पिछले चुनाव में तीसरे मोर्चे का प्रदर्शन
2018 के चुनाव में कुल 84 पार्टियों ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। इनमें से 5 पार्टियों को 14 सीटें मिलीं जिनका वोट प्रतिशत 8.70 था।
पार्टी सीट वोट प्रतिशत
बीएसपी 6 4.03
आरएलपी 3 2.40
बीटीपी 2 0.72
माकपा 2 1.22
आरएलडी 1 0.33
हालांकि, देखने वाली बात ये होगी कि राजस्थान में थर्ड फ्रंट की पार्टियां किंगमेकर साबित होंगी या फिर मोदी फैक्टर असरदार साबित होगा।
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