छत्तीसगढ़ में कांग्रेस-बीजेपी के लिए किसी चुनौती से कम नहीं आदिवासी वोटर, किसकी बनेगी सरकार?

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छत्तीसगढ़ में इस साल के आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में सियासी माहौल की सरगर्मियां हर दिन बढ़ती जा रही हैं। आदिवासियों की बड़ी आबादी वाले इस हरे-भरे राज्य में जहां एक तरफ कांग्रेस पार्टी एक बार फिर सत्ता में बने रहने की रणनीति तैयार करने में लगी है तो वहीं, दूसरी तरफ बीजेपी सत्ता में वापसी की कोशिशों में जुटी है। यहां बीजेपी के लिए चुनौती सीएम फेस की भी है। कोई नहीं जानता कि बीजेपी जीती, तो सीएम कौन होगा?

छत्तीसगढ़ में मुख्य मुकाबला दो प्रमुख पार्टियों के बीच है। ये दो दल हैं, सत्तारूढ़ कांग्रेस और प्रमुख विपक्षी पार्टी बीजेपी। इनके अलावा आम आदमी पार्टी भी राज्य के चुनावी समर में कूदने के संकेत दे रही है। इसी सिलसिले में केजरीवाल राज्य के दौरे भी कर रहे हैं तो वहीं, गृहमंत्री अमित शाह के अलावा बीजेपी के कई बड़े नेता छत्तीसगढ़ का लगातार दौरा कर कार्यकर्ताओं को एकजुट करने में लगे हैं और परिवर्तन यात्रा निकालकर मोदी सरकार की उपलब्धियों का प्रचार करने के साथ भूपेश बघेल सरकार को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर घेरने की कोशिश की है। इसके अलावा कांग्रेस राहुल गांधी के ‘युवा संवाद’ कार्यक्रम के जरिए नई पीढ़ी के वोटर्स को अपने पाले में रखने की कोशिश कर रही है। क्योंकि छत्तीसगढ़ में युवा वोटर्स की तादाद करीब 48 लाख है, जिनमें से 4.43 लाख वोटर पहली बार वोट डालेंगे। सी वोटर के सर्वे की बात करें तो इस बार बीजेपी को कुछ सीटों की बढ़त मिल सकती है। सर्वे के मुताबिक इस बार बीजेपी को 35-41 सीटें मिल सकती है, तो कांग्रेस के हाथ 48 से 54 सीटें आ सकती हैं।

बीजेपी पिछड़ा वर्ग के नेता पर खेल सकती दांव 

प्रदेश में पिछड़ा वर्ग की राजनीति का बड़ा समीकरण है, इसलिए बीजेपी किसी पिछड़ा वर्ग के नेता पर दांव खेल सकती है। सीएम भूपेश बघेल इसी वर्ग से आते हैं। कांग्रेस भूपेश बघेल के जरिए बैकवर्ड क्लास कार्ड खेल रही है। 90 विधानसभा सीटों में से अभी कांग्रेस के पास 71 और बीजेपी के पास महज 14 सीटें हैं। हाल में हुए लोकल बॉडीज इलेक्शन में कांग्रेस जीती है। प्रदेश के सभी 14 नगर निगम पर कांग्रेस का कंट्रोल है।
दरअसल, कांग्रेस के उम्मीदवारों की पहली लिस्ट अब तक फाइनल नहीं हो पाई है। वहीं, बीजेपी ने आदिवासियों, दलितों और महिलाओं के साथ-साथ युवाओं को साधने के लिए फिलहाल 21 सीटों पर टिकट घोषित किया है। माना जा रहा है कि बीजेपी ने पहली लिस्ट में छत्तीसगढ़ की उन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार घोषित किए हैं, जहां उसकी स्थिति बेहद कमजोर मानी जाती है। जहां एक तरफ कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के इर्दगिर्द सिमटी है। इसके अलावा हाल में डिप्टी सीएम बनें टीएस सिंह भी कांग्रेस के बड़े नेता माने जाते हैं। 

बीजेपी के वरिष्ठ नेता हाशिए पर!

बीजेपी ने पिछले पांच साल में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह को तो नेतृत्व नहीं दिया, लेकिन किसी दूसरे नेता को भी आगे नहीं बढ़ाया। बृजमोहन अग्रवाल और प्रेम प्रकाश पांडे जैसे वरिष्ठ नेता हाशिए पर हैं। प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव और नेता विपक्ष नारायण चंदेल का नेतृत्व नया है और उन्हें पार्टी के अंदर और बाहर पकड़ जमाने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है। ऐसे में बीजेपी सामूहिक नेतृत्व में तैयारी कर रही है, जिसकी कमान खुद केंद्रीय नेतृत्व संभाल रहा है। पार्टी के वरिष्ठ नेता ओम माथुर पूरी रणनीति के केंद्र में हैं। उनके पास संगठन और चुनाव दोनों की जिम्मेदारियां हैं। राज्य में अभी कुल 11 लोकसभा और 5 राज्यसभा की सीटें हैं। छत्तीसगढ़ में कुल 27 जिले हैं। राज्य में कुल 51 सीटें सामान्य, 29 सीटें अनुसूचित जनजाति और 10 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 2011 की जनगणना के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में 78 लाख 22 हजार आदिवासी हैं, जो कि कुल आबादी के एक तिहाई के करीब 30 प्रतिशत हैं। वहीं एससी 12.82 प्रतिशत हैं। साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासियों के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 27 पर जीत हासिल की थी।

 बीजेपी के लिए अभेद्य रही सीटें

जानकारों के मुताबिक, साल 2000 में अविभाजित मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ बनने के बाद से अब तक बीजेपी को बड़ी  सीटों पर हार का सामना करना पड़ा है। ये सीटें बीजेपी के लिए अभेद्य रही हैं। जिसमें पहली सीट है कोंटा विधानसभा। दूसरी सीट कोटा विधानसभा, तीसरी सीट सीतापुर विधानसभा और चौथी विधानसभा सीट खरसिया है। इन सीटों का इतिहास काफी पुराना है। इन सीटों पर बीजेपी के कई दिग्गज नेता भी अपनी किस्मत आजमा चुके हैं। लेकिन, हर बार बीजेपी को असफलता का सामना ही करना पड़ा है। तो मरवाही और पालीथानाखार ये दो विधानसभा सीटें अभी भी कांग्रेस के कब्जे में हैं। साल 2013 के बाद भी कुछ सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी और मोदी लहर भी कांग्रेस के गढ़ को नहीं हिला सकी। जिसमें, राज्य की साजा विधानसभा और पत्थलगांव विधानसभा की सीटें शामिल हैं।

कांग्रेस के इन किलों को ध्वस्त करना बीजेपी की प्राथमिकता

बीजेपी की वापसी के लिए कांग्रेस के इन किलों को ध्वस्त करना पहली प्राथमिकता है। इसी तरह छत्तीसगढ़ के बस्तर की सभी 12 विधानसभा सीटों में कांग्रेस का कब्जा है। वहीं सरगुजा और बिलासपुर संभाग में भी ज्यादातर सीटें कांग्रेस के पास हैं। यही वजह है की अब बीजेपी की बड़ी सभाएं बस्तर, बिलासपुर संभाग में हो रही है। इसके अलावा खैरागढ़, खुज्जी, मोहला-मानपुर और रायपुर ग्रामीण विधानसभा क्षेत्रों में पिछले तीन चुनावों से कांग्रेस का अभेद किला बना हुआ है। हालांकि, सूत्रों की मानें तो 90 में से करीब 27 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी कमजोर स्थिति में है। दिल्ली की बैठक में भी इन सीटों पर चर्चा हुई। जिसके बाद ही 21 नाम के साथ लिस्ट जारी की गई है। बीजेपी ने सांसद विजय बघेल को भूपेश बघेल के खिलाफ मैदान में उतारा है।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें 


ऐसा नहीं है कि छत्तीसगढ़ में बीजेपी के पास कोई अभेद्य सीटें नहीं हैं। छत्तीसगढ़ बनने के बाद से रायपुर (दक्षिण) विधानसभा सीट बीजेपी की अजेय सीट मानी जाती है। विधायक बृजमोहन अग्रवाल लगातार इस क्षेत्र के विधायक रहे हैं। छत्तीसगढ़ में विधानसभा की कुल 90 सीटें हैं। 2018 के विधासभा चुनाव में कांग्रेस ने 68 सीटें जीतकर पूरे 15 साल बाद सत्ता में वापसी की थी। जबकि बीजेपी महज 15 सीटों पर सिमट गई थी।
वहीं, कांग्रेस से अलग होकर अपनी पार्टी बनाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री अजित जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस (जोगी) को 5 सीटें और बहुजन समाज पार्टी को 2 सीटें मिली थीं। इस बार भी छत्तीसगढ़ की राजनीति में मुख्य मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी में ही है। लेकिन, सवाल ये है कि क्या सत्ताधारी कांग्रेस को इस बार एंटी-इनकंबेंसी यानी सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ेगा? 

 
पिछले 10 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं। वैश्विक और राजनीतिक के साथ-साथ ऐसी खबरें लिखने का शौक है जो व्यक्ति के जीवन पर सीधा असर डाल सकती हैं। वहीं लोगों को ‘ज्ञान’ देने से बचता हूं।

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