लेखकों का क्रेडिट ले जाते हैं एक्टर-डायरेक्टर लेकिन सलीम-जावेद के कदम ने काफी कुछ बदला!

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फिल्मों के एक्टर-डायरेक्टर को काफी प्रसिद्धी मिलती है, लेकिन लेखको को शायद ही कोई जानता हो। एक समय पर फिल्म के पोस्टर पर लेखको का नाम तक नहीं होता था, तो ऐसे में कैसे शुरू हुआ पोस्टर पर राइटर्स का नाम, क्या ग्लैमर की फिल्मी दुनिया में खो जाता है राइटर्स का क्रेडिट?

आज की स्टोरी की शुरूआत बहुत छोटे से सवाल से, तो बताइए आपकी फेवरेट फिल्म कौन सी है। उसमें एक्टर कौन-कौन हैं, अच्छा आपका उस फिल्म में सबसे फेवरेट डायलॉग कौन सा था। इन सभी के जवाब तो आपको पक्का पता होंगे, शायद फिल्म के डायरेक्टर का नाम भी आपको पता हो, लेकिन क्या उस फिल्म के राइटर नाम का आपको पता है। देश के सबसे फेमस एक्टर, डायरेक्टर के बारे में आप जानते हैं लेकिन सबसे फेमस राइटर्स के नाम शायद ही जानते हों

आकाश कौशिक बॉलीवुड इंड्स्ट्री की जानी-मानी फिल्मों जैसे कि भूलभूलैया, हाउसफुल4, फ्लाइंग जट, फालतू और थैंक गॉड जैसी फिल्मों के लेखक के तौर पर जाने जाते है। एक इंटरव्यू में उनसे जब पूछा गया कि क्या लेखकों को इंडस्ट्री में एक उचित पहचान मिलती है, तो उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से नहीं। जबकि लेखक फिल्म बनाने की प्रक्रिया में सबसे इम्पोर्टेंट फैक्टर्स में से एक होते हैं।

लोग डायरेक्टर बनते हैं क्योंकि एक लेखक को उचित नाम और पैसा नहीं मिलता, लेकिन ये डायरेक्टर बनने का सही रीजन तो नहीं हो सकता है। उनका ये कहना इस ओर भी इशारा भी है कि अगर राइटर्स नेम-फेम के लिए डायरेक्टर बनना चुनते हैं, तो वो फिल्म के लिए कितना सही या गलत हो सकता है।

हालांकि ऐसा भी नहीं है कि पर्दे के पीछे रहने वाले उन लेखको को कोई नहीं जानता, लेकिन लेखकों को जानने वालों की ये गिनती काफी सीमित है। ग्लैमर की चकाचौंध में जितनी पहचान उन्हें मिलनी चाहिए उतनी नहीं मिल पाती। हर साल अलग-अलग अवॉर्ड शोज में राइटर्स को अवार्ड तो मिल जाते हैं लेकिन शायद जितना क्रेडिट मिलना चाहिए वो नहीं मिला पाता। जबकि कभी-कभी एक हीरो को नायक बनाने के पीछे किसी राइटर का बड़ा हाथ होता है

जैसे सदी के महानायक की पहचान रखने वाले अमिताभ बच्चन की बात ही कर लेते हैं, उन्होंने एक से बढ़कर एक बेहेतरीन फिल्में की। कभी एंग्री यंग मैन, तो कभी शराबी, कभी लावारिश तो कभी वो किरदार जिसके पास दौलत है शोहरत है पैसा सब कुछ है और वो जहां खड़े हो जाएं, लाइन वहीं से शुरु होती। लेकिन 70-80 के दशक में उनकी ज्यादातर फिल्मों को लिखने वाले सलीम खान -जावेद अख्तर थे। उनकी लिखी फिल्मों से अमिताभ बच्चन लगातार सुपरस्टार बने।

सलीम खान और जावेद अख्तर की जोड़ी ने यादों की बारात, जंजीर, दीवार, त्रिशूल, काला पत्थर, दोस्ताना, सीता और गीता, शोले 'डॉन', जैसी फिल्में लिखीं, जिनके बिना बॉलीवुड अधूरा है। भले ही सलीम-जावेद बॉलीवुड के स्टार लेखक रहे हैं, लेकिन उनको अमिताभ और धर्मेंद्र जैसा सितारों स्टारडम नहीं मिला। दोनों ही उन चुनिंदा लेखकों में रहें जो युवा पीढी के लिए मिशाल हैं।

सलीम-जावेद का एक वो दौर भी था जब बॉलीवुड की फिल्मों में अगर उनके लिखे डायलॉग न हों तो फिल्म अधूरी मानी जाती थी, लेकिन इंतहा भी वो थी कि दिग्गज लेखकों की मांग के बाद भी उनका नाम पोस्टर में शामिल नहीं किया जाता था। हालांकि फिल्म जंजीर की रिलीज के दौरान का एक किस्सा काफी फेमस है, इसे एक आर्टिस्ट की वाजिफ मांग जो उसे दर्शको की तालियां मुकम्मल कराएं....उस ललक के तौर पर देखना चाहिए। दरअसल, साल 1973 में जंजीर की स्क्रिप्ट पर सलीम-जावेद को काफी ज्यादा भरोसा था कि उन्होंने एक ब्लॉकबस्टर स्क्रिप्ट लिखी है, जोकि आज हम जानते हैं सच भी है। तो वो चाहते थे कि उन्हें इसका क्रेडिट मिलना चाहिए और फिल्म जंजीर के पोस्टर्स पर उनका नाम जाना चाहिए। 

अरबाज खान के शो द इंविंसिबल में जावेद अख्तर ने खुद बताया कि उन्होंने फिल्म के डायरेक्टर-प्रॉड्यूसर प्रकाश मेहरा से बातचीत की और अपने नाम फिल्म के पोस्टर पर लिखवाने की मांग की। तब प्रकाश मेहरा ने इस बात से ये कहकर इनकार कर दिया था कि राइटर्स के नाम ऐसा होता है कभी। जावेद अख्तर इस पर बताते हैं कि फिर एक दिन सलीम खान नशे में थे, तब उनके दिमाग में एक आइडिया आया। सलीम साहब ने सिप्पी फिल्म्स के एक लड़के को दो जीप और पेंट लेकर बुलाया। साथ ही पूरी मुंबई में फिल्म जंजीर के सभी पोस्टरों पर 'रिटेन बाई सलीम-जावेद' लिखने के लिए कह दिया।

फिर अगली सुबह पूरी मुंबई में इस बात की हलचल मच गई, क्योंकि जंजीर के पोस्टरों पर अमिताभ बच्चन की नाक, जया बच्चन के चेहरे और प्राण के माथे पर सलीम-जावेद का नाम लिखा हुआ था। फिर कहीं जाकर इस घटना के बाद सलीम-जावेद को फिल्म का क्रेडिट मिलना शुरू हुआ। कहीं न कहीं साफ कहा जा सकता है, डगमगाते कदमों में उठाया सलीम साहब का वो कदम शायद एक सही मांग को पटरी पर लाने का कारण बन गया।

खैर ये तो सिर्फ एक जोड़ी की कहानी है। जबकि खगालने जाएं तो ऐसी कई हस्तियां आपको मिल जाएंगी। इसके बाद भी राइटर्स ने अपनी कलम से जो लिखा वो सिर माथे लिया गया, लेकिन शायद क्रेडिट उतना नहीं मिल सका। हाल फिलहाल पर नजर डालें तो एक सवाल जिसे हैशटैग नेशनल क्वाश्चन कहा जा सकता था, कि कटप्पा ने बाहुबली को क्यों मारा? इस फिल्म बाहुबली के राइटर के बारे में शायद चुनिंदा लोग ही जानते होंगे। जबकि केवी विजयेद्र प्रसाद प्रेजेट सेनेरियो में इंडिया के सबसे फेमस स्क्रीन राइटर्स में से एक हैं।

लेकिन हमेशा से ग्लैमर इंडस्ट्री में पर्दे पर नजर आने वाले चेहरों का ही राज रहा है। तो वहीं फिल्म निर्माता प्रमोशनल कार्यक्रमों में लेखकों को ज्यादा शामिल करते हैं, न ही मीडिया उन्हें तवज्जो देता है। ऐसे में दर्शक राइटर्स के बारे में जान भी कैसे पाएंगे। इम्तियाज अली, फरहान अख्तर, पीयूष मिश्रा को बॉलीवुड के फेमस राइटर्स में जाने जाते हैं।

साथ ही इस क्षेत्र में जब फीमेल राइटर्स शामिल हुईं तो पर्दे पर किरदार में बदलाव भी साफ नजर आने लगा। हालांकि फीमेल राइटर्स ने खुद को सिर्फ महिला प्रधान फिल्मों तक बांधे नहीं रखा। गोल्ड, गली बॉय जैसी फिल्में रीमा कागटी ने लिखीं, अक्टूबर, विकी डोनर और पीकू जैसी फिल्में जूही चतुर्वेदी ने लिखी। हाल ही में फिल्म भीड़ आई थी, जिसके राइटर अनुभव सिन्हा थे, साथ ही दो यंग राइटर सौम्या तिवारी और सोनाली जैन भी फिल्म की राइटर थी।

फिल्म के राइटर्स या ये कह लीजिए पर्दे के पीछे काम करने वाले लोगों की स्थिती में थोड़ा बदलाव सोशल मीडिया की वजह से आया है। राइटर्स अपनी पहचान के लिए फिल्मों के मोहताज नहीं हैं, लोग उन्हें सोशल मीडिया पर फॉलो करते हैं और फिल्मों से अलग इनकी अन्य रचनाओं को भी पढ़ना पसंद करते हैं।

लेखक भी अब आगे आकर अपनी बात कहते हैं। कई लेखक अपनी पहचान के साथ-साथ उचित मेहनताने की भी मांग कर चुके हैं। साहित्य से जुड़े प्रोग्राम्स में वो अपनी उपस्थिति भी दर्ज कराते हैं। लेकिन फिर भी राइटर्स के नाम स्टारडम से काफी दूर रह जाते हैं। आपकी इसको लेकर क्या राय है, कमेंट करके बताएं ।

 

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