भारतीय सिनेमा में फ़िल्म स्टूडियो का सफ़र

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भारतीय सिनेमा में फिल्म स्टूडियो का सफर | Manchh न्यूज़

चंद फिल्म स्टूडियों से सिनेमा की शुरूआत हुई और आज के समय में फिल्म इंडस्ट्री में कई नामचीन और वर्ल्ड क्लास स्टूडियों मौजूद हैं। खैर, आज हम फिल्म इडस्ट्री में स्टूडियो के सफर पर बात कर रहे हैं, जो उन खास वजहों में से एक वजह रहा, जिससे सिनेमा आज इस मुकाम तक पहुंच सका, हम अगर आसान शब्दों में कहें तो फिल्म स्टूडियो एक ऐसी जगह है, जहां फिल्मों की शूटिंग होती है और मेकर्स यानी कि जो फिल्म बना रहे है, उनके पास जगह के साथ ही शूटिंग के लिए जरुरी उपकरण भी होते हैं।

जगह की बात करें तो ये फिल्म स्टूडियो कई एकड़ में फैले होते हैं और इनमें कई सेट होते हैं। फिल्म स्टूडियो में कलाकार, टैकनीशियन, साउंड स्टूडियो, एडिटिंग के साथ ही सभी विभाग के लोग एक ही छत के नीचे काम करते हैं। अब जाहिर है जब फिल्म स्टूडियो में सभी तरह से उपकरण और लोग मौजूद हों, तो ऐसे में स्टूडियो में शूटिंग करना कहीं बाहर शूटिंग करने से आसान होता है। और फायदों की तरफ नजर डालें तो स्टूडियो में जब जैसी भी लाइट की जरूरत हो उसका इस्तेमाल हो सकता है। शूटिंग करते समय बाहरी आवाज नहीं आती और न ही मौसम की चिंता सताती है। इसके अलावा एक जगह से दूसरी जगह जाने वाला समय बर्बाद नहीं होता।

रिपोर्ट्स के मुताबिक, साल 1929 में प्रभात कंपनी नाम से प्रोडक्शन फिल्म कंपनी को निर्देशक वी शांताराम ने विजी डामले, केआर ढेबर, एसबी कुलकर्णी और एस फतेलाल के साथ कोल्हापुर, महाराष्ट्र में बनाया था, फिर साल 1931 में जब 'आलम आरा' से से फिल्मों में आवाज का दौर भी शुरू हुआ तो कंपनी को पुणे में ट्रांसफर कर दिया गया और इसका नाम प्रभात कंपनी से बदलकर प्रभात स्टूडियो हो गया। इसमें कई फिल्में बनीं, लेकिन 1941 में शांताराम इससे अलग हो गए और 1952 में कंपनी समेत स्टूडियो को नीलाम करना पड़ा। स्टूडियो की लिस्ट में 'मदर इंडिया', 'कागज के फूल' जैसी शानदार फिल्में देने वाले महबूब स्टूडियो का नाम भी खास है।

इसके बाद धीरे-धीरे इंडस्ट्री में स्टूडियो की मांग बढ़ने लगी, तो स्टूडियोज की संख्या में इजाफा होने लगा। जैसे 1931 में बीएन सरकार ने न्यू स्टूडियो खोला था, 1933 में जे.बी.एच. वाडिया और होमी वाडिया ने वाडिया मूवीटोन स्टूडियो की स्थापना की, देविका रानी और हिमांशु राय भी 1935 में बॉम्बे टॉकीज लेकर आए। वहीं 1948 मे राज कपूर आरके स्टूडियो लेकर आए, जो लगभग दो एकड़ जमीन में बना था। इस स्टूडियों मे 'आग', 'बरसात', 'आवारा', 'बूट पॉलिश', 'जागते रहो' और 'श्री 420' जैसी सफल फिल्में बनाई थीं।

हालांकि साल 2017 में आरके स्टूडियो में 'सुपर डांसर' की शूटिंग के दौरान आग लग गई और ये बुरी जलकर नष्ट हो गया। इसके बाद कपूर परिवार ने बढ़ते घाटे को ध्यान में रखते हुए स्टूडियो को बेच दिया। कई पीरियड ड्रामा फिल्में स्टूडियों में ही बनकर तैयार हो जाती हैं, जैसे मशहूर डायरेक्टर संजय लीला भंसाली ने अपनी फिल्म 'सांवरिया', 'देवदास' और 'बाजीराव मस्तानी' की शूटिंग स्टूडियो में एक शानदार सेट बनाकर की थी। हालांकि सेट बनाकर शूटिंग करने में करोड़ों की लागत आती है।

 

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