क्या आप 1969 के LGBTQ संघर्ष का इतिहास जानते हैं?

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साल था 1969 तारीख 28 जून न्यूयॉर्क के मैनहट्टन में स्थित स्टोनवॉल इन गे बार में पुलिस ने छापा मारा। आरोप था कि इस बार में एक पार्टी चल रही थी, जिसमें ग्रे और लेस्बियन्स कम्युनिटी के लोगों को बिना परमिशन के शराब परोसी जा रही थी। इस दौरान कई समलैंगिकों को गिरफ्तार कर उन्हें जेल में डाल दिया गया। इसके बाद जो कुछ हुआ वो अमेरिकी इतिहास में दर्ज हो गया साथ ही एलजीबीटीक्यू कम्युनिटी के अधिकारों को लेकर ये पूरा प्रकरण एक मील का पत्थर बन गया। 

दरअसल, न्यूयॉर्क सिटी पुलिस ने एक समलैंगिक क्लब स्टोनवॉल इन पर छापा मारा। ये क्लब ग्रीनविच विलेज में एलजीबीटीक्यू+ कम्युनिटी के लिए एक जानी-पहचानी जगह थी। किसी के लिए ये रात को रहने का ठिकाना था, तो किसी के लिए ये क्लब अपनी पहचान के साथ सामाजिक भेदभाव से दूर कुछ समय बिताने की जगह थी। उस दौर में इस क्लब में ड्रैग क्वींस को आने की भी परमिशन भी थी जो कि दूसरे क्लब में नहीं थी। ये एलजीबीटीक्यू समुदाय के ग्राहकों के लिए नाचने-गाने की एक महत्वपूर्ण जगह बनती जा रही थी। वेबसाइट हिस्ट्री के मुताबिक, 28 जून 1969 को स्टोनवॉल इन बार में पुलिस ने छापा मारा। पुलिस अफसरों ने लोगों के साथ उत्पीड़न चालू कर दिया और 13 लोगों को अवैध शराब के इस्तेमाल के लिए गिरफ्तार कर लिया। वहीं, दूसरी और राज्य के ‘लिंग-उपयुक्त कपड़ों’ के क़ानून का उल्लंघन करने वाले लोगों को लिंग जांच के लिए महिला अधिकारी बाथरूम में लेकर जाने लगीं। 

पुलिस पर लगा उत्पीड़न का आरोप

पुलिस अधिकारियों ने लोगों के साथ मारपीट करना शुरू कर दिया। बहरहाल, सामाजिक भेदभाव और पुलिस के इस रवैये से लोगों ने परेशान होकर पुलिस अधिकारियों के खिलाफ़ बगावत का माहौल पैदा कर दिया। हर बार की तरह, इस बार उत्पीड़न सहने की जगह लोगों ने गुस्से में आकर पुलिस अफसरों पर शराब की बोतलें, पत्थर और सिक्के फेंकना चालू कर दिया। देखते ही देखते सैकड़ों लोगों की भीड़ स्टोनवॉल इन के बाहर इकट्ठा हो गई और पुलिस अफसरों के खिलाफ़ जमकर आवाज़ उठाने लगी। धीरे- धीरे बगावत इतनी बढ़ गई की पुलिस अधिकारियों ने अपने आप को स्टोनवॉल इन के अंदर बंद कर लिया। वहीं, भीड़ ने क्लब को आग लगाने की कोशिश भी की लेकिन फायर डिपार्टमेंट और एक दंगा दस्ता आग की लपटों को बुझाने और भीड़ को तितर-बितर करने में कामयाब रहें लेकिन उसके बाद, इस विद्रोह के साथ हजारों लोग जुड़ गए थे और इसके चलते ये प्रदर्शन पांच दिनों तक जारी रहा। पूरे देश में एलजीबीटीक्यू समुदाय ने स्टोनवॉल इन के अंदर छापे के खिलाफ विद्रोह किया और इस आंदोलन को स्टोनवॉल दंगों के रूप में जाना जाने लगा। 

जून के महीने को प्राइड मंथ के रूप में किया नामित 

इस घटना के एक साल बाद, 28 जून, 1970 को स्टोनवाल दंगों की पहली वर्षगांठ मनाई गई। इस मौके पर न्यूयॉर्क शहर में कई संगठनों और कार्यकर्ताओं ने परेड निकाली। देखते ही देखते कुछ सालों में ही इस परेड का चलन बढ़ता गया और इसे एक उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा, जिसका मकसद स्टोनवॉल दंगों में अपनी जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देना और उन्हें याद करना है। 28 जून 1970 को हुई इस परेड को प्राइड मंथ के रूप में माना जाता है। पिछले कुछ सालों में गे प्राइड इवेंट्स दुनिया भर के बड़े शहरों से लेकर छोटे शहरों, गांवों और कस्बों तक फैल गए हैं। इस आंदोलन का प्रभाव इतना बढ़ गया कि साल 2000 में, अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने स्टोनवॉल दंगे और समलैंगिक आंदोलन को पहचान देने के लिए आधिकारिक तौर पर जून के महीने को प्राइड मंथ के रूप में नामित किया। इसके बाद साल 2009 में राष्ट्रपति बराक ओबामा ने ग्रे प्राइड मंथ को अलग पहचान देते हुए नया नाम दिया एलजीबीटीक्यू प्राइड मंथ। हालांकि जैसे-जैसे प्राइड मंथ की लोकप्रियता दुनिया भर में बढ़ी है, वैसे-वैसे इसकी आलोचना भी बढ़ी है। 

इस घटना के 50 साल बाद 2019 में न्यूयॉर्क के पुलिस चीफ ओ नाइल ने स्टोनवॉल दंगों के दौरान समलैंगिक समुदाय के खिलाफ हिंसा के इस्तेमाल के लिए माफी मांगी। उन्होंने कहा, मुझे लगता है जो वहां हुआ उसे नहीं होना चाहिए था। न्यूयॉर्क पुलिस डिपार्टमेंट की ओर से उस दिन जो एक्शन लिया गया वो गलत था। हमारी इस गलती के लिए मैं आपसे क्षमा मांगता हूं। इस समुदाय के लोगों को लेकर आज भी समाज दो भागों में बंटा हुआ है।

पिछले 10 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं। वैश्विक और राजनीतिक के साथ-साथ ऐसी खबरें लिखने का शौक है जो व्यक्ति के जीवन पर सीधा असर डाल सकती हैं। वहीं लोगों को ‘ज्ञान’ देने से बचता हूं।

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