Doordarshan: बचपन की यादें ताजगी से जगाने वाली एक कहानी | प्रसार भारती और टेलीविजन का इतिहास | Manchh न्यूज़

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‘दूरदर्शन’ जो गुजरे वक्त का एहसास कराता है। न जाने कितने टीवी सीरियल हमने देखे और ये सभी हमारी जिंदगी का हिस्सा बने। भारत में टीवी आया तो ‘दूरदर्शन’ ने उसमें चित्र उकेरे, पर ‘दूरदर्शन’ की शुरुआत कैसे हुई।

संडे का दिन, सुबह जल्दी से नहाकर तैयार हो गए और नाश्ता लेकर बैठ गए टीवी के सामने, भाई-बहनों से लड़ाई इसलिए हुई कि टीवी देखने के लिए सबसे आगे कौन बैठेगा। कई बार स्कूल से छुट्टी भी कर ली।

ये जो है जिंदगी, नुक्कड़, सर्कस, फौजी, अलिफ लैला, शक्तिमान, तहकीकात जैसे न जाने कितने टीवी सीरियल हमने देखे और ये सभी हमारी जिंदगी का हिस्सा बने।

भारत में टीवी आया तो दूरदर्शन ने उसमें चित्र उकेरे, पर दूरदर्शन की शुरुआत कैसे हुई। दूरदर्शन ये जो नाम है किसने रखा, लोगो किसने डिजाइन किया।

आज कहानी दूरदर्शन की। हम बचपन में तो नहीं लौट सकते पर दूरदर्शन की कहानी सुनकर उस गुजरे वक्त का एहसास जरूर सकते हैं। आपको ये भी बताएंगे की टीवी इडियट बॉक्स’ यानी बुद्धु बक्सा क्यों कहते हैं।

साल 1924, स्कॉटिश इंजीनियर, जॉन लोगी बेयर्ड ने एक इतिहास रचा। टेलीविजन यानी टीवी बनाया। इस टीवी को भारत आने में 35 साल लगे।  

ये वो वक्त था जब भारत को आजाद हुए 12 साल हो गए थे। सरकार कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही थी।

दिक्कत थी कि इन योजनाओं की जानकारी लोगों तक कैसे पहुंचे। सरकार को तलाश थी, एक ऐसे माध्यम की जो योजनाओं का प्रचार करे। ये आसान नहीं था, टेक्नोलॉजी और पैसों की जरूरत थी।

प्रेस सूचना ब्यूरो के मुताबिक फिर भारत की यूनेस्‍को ने मदद की। 20 हजार डॉलर रुपये और 180 टीवी सेट दिए। टेक्नोलॉजी के लिए जर्मनी ने मदद की।

15 सितंबर साल 1959 ये वो दिन था जब भारत में टीवी आया और पहले टीवी चैनल ‘टेलीविजन इंडिया’ की शुरुआत हुई। 'ऑल इंडिया रेडियो' के तहत दिल्ली में आकाशवाणी बिल्डिंग में ऑडिटोरियम बना, जिसका उद्घाटन तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया।

शुरुआती दौर में स्कूली बच्चों और किसानों के लिए लर्निंग प्रोग्राम दिखाए जाते, हफ्ते में 3 दिन वो भी आधे घंटे।

जब दिल्ली और आसपास के कुछ क्षेत्रों में टीवी लगे तो लोग इसे हैरान होकर देखते, क्योंकि इस छोटे से डिब्बे में पूरी दुनिया समाई थीं।

साल 1975, 16 सालों का वक्त गुजरा। अब हर रोज टेलीकास्ट होने लगा था। छह राज्यों कोलकाता, चेन्नई, श्रीनगर, अमृतसर और लखनऊ में सैटेलाइट शुरू हो गया था। करीब 2400 गांवों में सामुदायिक टीवी लगाए गए थे, टीवी प्रोग्राम के साथ न्यूज बुलेटिन भी दिखाए जा रहे थे। और ‘टेलीविजन इंडिया’ का नाम बदलकर ‘दूरदर्शन’ हो गया था।

‘दूरदर्शन’ नाम कवि सुमित्रानंदन पंत ने दिया और इसका लोगो देवाशीष भट्टाचार्य ने डिजाइन किया। दूरदर्शन जागरूक करने के साथ लोगों का मनोरंजन भी करता।

साल 1976 में दूरदर्शन ‘ऑल इंडिया रेडियो’ से अलग हो गया। इसकी ‘दूरदर्शन’ रफ्तार धीमी थी पर साल 1982 में पॉपुलैरिटी बढ़ गई।

वजह थी 1982 में नई दिल्ली में एशियन गेम्स हो रहा थे। जिसका टेलीकास्ट दूरदर्शन में किया गया। इसी के साथ ‘दूरदर्शन’ ब्लैक एंड वाइट से कलर हो भी गया।

वक्त गुजरा तो नए-नए प्रोग्राम शुरू हुए। साल 1986-87 में भारत और पाकिस्तान बंटवारे की कहानी पर बना सीरियल 'बुनियाद' ने उस त्रासदी से तब की पीढ़ी को रूबरू कराया। 1984 में हम लोग शुरू हुआ। इस प्रोग्राम्स के सभी किरदारों ने घर-घर जगह बनाई। लोग उनकी खुशियों में झूमते और तकलीफों में आंसू बहाते। कृषि दर्शन, चित्रहार और रंगोली जैसे प्रोग्राम बहुत पाप्युलर हुए। वागले की दुनिया, रजनी, क्राइम थ्रिलर ब्योमकेश बख्शी... इन सीरियल की लिस्ट बहुत लंबी है।

ये वो वक्त था जब देश में ज्यादातर गावों में बिजली नहीं थी। तब गांवों में टीवी को बैटरी से देखा जाता।

जिन घरों में टीवी होता वहां पूरा का पूरा गांव उमड़ पड़ता। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ ऐसे सीरियल थे जब ये दूरदर्शन पर आते सड़कें सूनी हो जाती। इनके टेलीकास्ट से पहले घरों की सफाई होती। टीवी की पूजा होती।

दूरदर्शन पर सीरियल जितने फेमस हुए, उतने ही फेमस उसपर आने वाले ऐड भी हुए। बदलते वक्त के साथ अब 24 घंटे प्रोग्राम टेलीकास्ट होने लगे थे।

डीडी इंडिया, प्रसार भारती का गठन, खेल के लिए डीडी स्पोर्ट्स, समाचारों के डीडी न्‍यूज चैनल बने। फिर फ्री डीटीएच सेवा डीडी डायरेक्ट भी शुरू हुआ।

आज दूरदर्शन के 59 टीवी चैनल और देशभर में करीब 66 स्टूडियो हैं। ये सबसे बड़ा ब्रॉडकास्ट है।

टीवी एक ऐसा इंटरेक्टिव डिवाइस है, जो घंटों लोगों के अपने सामने बिठा सकता। लोग टीवी के सामने ही बैठकर लोग खाना तक खाते। इसी बर्ताव पर की गई रिसर्च के बाद टेलीविजन को इडियट बॉक्स का खिताब मिला।

हमारे पास एंटरटेनमेंट के कई साधन हैं पर आज भी कई लोग हैं जो टीवी देखना पसंद करते हैं। आज बेशक एंटरटेनमेंट, न्यूज़, म्यूजिक, सिनेमा, स्पोर्ट्स, हेल्थ, फूड, फैशन, अध्यात्म, किड्स जैसे 800 से ज्यादा प्राइवेट चैनल हैं। 

पर उस दौर में इन सभी फ्लेवर वाले ऑडियंस का ध्यान दूरदर्शन ने अकेले रखा।

दूरदर्शन ने लोगों की जिंदगी बदली। दूरदर्शन ने जिस दौर को हमें दिखाया है वो किसी ग्रंथ से कम नहीं था।

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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