पंजाब के फरीदकोट के गांव संधवां में एक टावर बना है। इस टावर की हाइट 78.7 फीट है जो उस विराट व्यक्ति के जिंदगी के 78 साल 07 महीने और 20 दिन को दिखाती है। जिन्होंने हमेशा देश और समाज की भलाई के लिए फैसले लिए। कभी किसी के दबाव में नहीं आए। ग्रंथों को पढ़ा तो ज्ञानी की उपाधि मिल गई। देश की आजादी के लिए लड़े तो जेल गए तो नाम रख लिया जेल सिंह। आज कहानी देश के सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह की। जिनके नाम में जिंदगी की दास्तां छुपी हुई है।
पंजाब के फरीदकोट-कोटकपूरा के पास गांव संधवा में किशन सिंह पत्नी इंद्रा कौर के साथ रहते। इसके चार बच्चों में सबसे छोटे बेटे जरनैल सिंह का जन्म 15 मई साल 1916 को हुआ। मां का निधन हो गया तो तीन-चार साल के जरनैल को मौसी ने पाला। जरनैल बचपन से ही गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ करते ये पाठ उन्हें मुंह जबानी याद था। इसलिए इनको ज्ञानी की उपाधि मिली। ये वो वक्त था जब देश अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा था। तो 17-18 साल की उम्र में जरनैल भी स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। इसी के चलते जरनैल को पांच साल के लिए जेल जाना पड़ा। जेल में रहने के विरोध में ही ज्ञानी जरनैल सिंह ने अपना नाम बदल कर ज्ञानी जेल सिंह कर दिया। जो बाद में ज्ञानी जैल सिंह के नाम से जाने गए।
जेल से निकलने के बाद साल 1946 में सत्याग्रह आंदोलन के तहत जब जवाहर लाल नेहरू फरीदकोट पहुंचे तो उन्होंने ज्ञानी जैल सिंह की अगुवाई में तिरंगा झंडा फहराया।
देश आजाद हुआ तो ज्ञानी जैल सिंह पंजाब प्रांत के कांग्रेस के प्रधान बनाए गए।
1956 में राज्यसभा और 1962 में विधानसभा के सदस्य बने। साल 1972 में पंजाब के मुख्यमंत्री का कार्यभार संभाला। साल 1979 में लोकसभा के सदस्य चुने गए।
ज्ञानी जैल सिंह तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के विश्वासपात्र और बेहद करीबी माने जाते थे। कहा जाता है इसी वजह से इंदिरा गांधी ने उनको गृहमंत्री बनाया था।
बीबीसी की एक खबर के मुताबिक अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब साल 1982 को ज्ञानी जैल सिंह को राष्ट्रपति के रूप में चुना गया तो
उन्होंने कहा था कि ‘अगर मेरे नेता ने कहा होता कि, मुझे झाड़ू उठानी चाहिए और नौकर बनना चाहिए। तो मैंने ऐसा ही किया होता। उन्होंने मुझे राष्ट्रपति बनने के लिए चुना।’
25 जुलाई, साल 1982 से 25 जुलाई साल 1987 तक वो देश के सातवें राष्ट्रपति रहे। राष्ट्रपति के रूप में ज्ञानी जैल सिंह का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा।
ऑपरेशन ब्लू स्टार, इंदिरा गांधी की हत्या और साल 1984 के सिख-विरोधी दंगे जैसी घटनाएं उनके कार्यकाल में ही हुई। ऑपरेशन के बाद उन पर सिखों ने पद से इस्तीफा देने का दबाव डाला। पर उन्होंने इस्तीफा नहीं दिया बाद में इन्हें अकाल तख्त के सामने पेश होना पड़ा। जहां पर इन पर हमला भी हुआ। लेकिन वो बाल-बाल बच गए थे।
इंदिरा के निधन के बाद जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री बने तो राजीव गांधी के एक विधेयक के संबंध में ज्ञानी जैल सिंह ने पॉकेट वीटो का इस्तेमाल किया। इसके बाद से ही दोनों में काफी मतभेद रहे।
ज्ञानी जैल सिंह बेहद धार्मिक प्रवृत्ति के थे। वो अक्सर तीर्थयात्राएं करते। साल 1994 में तख्त श्री केशगढ़ जाते समय उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया। पीजीआई चंडीगढ़ में इलाज के दौरान 25 दिसंबर साल 1994 को 78 साल की उम्र में उनका निधन हो गया। दिल्ली में जिस जगह पर उनका अंतिम संस्कार किया गया, उसे एकता स्थल के नाम से आज भी जाना जाता है।
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