भारत में गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में चक्रवात विपरजॉय का असर देखने को मिल रहा है। मुंबई में ऊंची लहरें देखने को मिल रही है। 15 जून को सौराष्ट्र और कच्छ से टकराने का पूर्व अनुमान जारी किया गया है। शक्तिशाली तूफान को देखते हुए तटीय इलाकों से 37 हजार से ज्यादा लोगों को हटाया जा चुका है। लेकिन क्या कभी आपने ये सोचा है कि ऐसे तूफानों में भयंकर तबाही मचाने की ताकत कहां से आती है? और ऐसे तूफानों में कितने परमाणु बम के बराबर ताकत होती है? और तूफानों के नाम कैसे रखे जाते हैं
जिसने भी अपनी लाइफ में कभी तूफान नहीं देखा है। वो लोग यही समझते होंगे कि जब तेज हवाएं चलती हैं, तो घरों को समतल कर देती हैं, पेड़ों को तोड़ देती हैं और भारी तूफान पैदा कर देती हैं। सीधे तौर पर कहा जाए तो तूफान अपने पीछे भीषण तबाही के निशान छोड़ जाता है। नासा की मानें तो, असल में एक शक्तिशाली तूफान में 10 हजार परमाणु बमों के बराबर ताकत होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो एक तूफान अपने लाइफ सर्कल के दौरान 10,000 परमाणु बमों जितनी एनर्जी एक्सपैंड कर सकता है।
नासा ने साल 2017 में आए अटलांटिक तूफान के मौसम को सात तूफानों के साथ ‘बेहद एक्टिव’ के तौर पर डिफाइन किया है। सात में से चार हार्वे, इरमा, जोस और मारिया तूफान सैफिर सिम्पसन स्केल पर Class-3 या उससे भी ऊपर पहुंच गए थे यानी ये तूफान बहुत ज्यादा शक्तिशाली थे। जोस को tropical storm के तौर में डाउनग्रेड किया गया था, लेकिन बाकी तीन एक दूसरे से ज्यादा शक्तिशाली थे। इन तूफानों से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई और भारी तबाही हुई। उस दौरान बाढ़ और 209 किलोमीटर प्रति घंटे तक की रफ्तार वाली तेज हवाएं चली थीं। इन तूफानों ने सबकुछ जमींदोज कर दिया था।

अगर बात करें तूफानों के आने की, तो समुद्रों में तूफान आने की एक बड़ी वजह है ग्लोबल वार्मिंग। IPCCकी एक रिपोर्ट में भी बताया गया है कि ग्रीनहाउस गैसों के कारण बढ़ने वाली गर्मी का 93 परसेंट समुद्र सोख लेते हैं। जिस वजह से समुद्रों का तापमान भी हर साल बढ़ रहा है। ऐसे में, यहां पर बनने वाले बिपरजॉय जैसे चक्रवाती तूफानों की संख्या और भीषणता भी बढ़ जाती है। बिपरजॉय जैसे चक्रवाती तूफान समुद्रों के गर्म भाग के ऊपर ही बनते हैं। इस हिस्से का औसत तापमान 28 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ही रहता है। ऐसे में तूफान गर्मी से ऊर्जा इकट्ठा करते हैं और समुद्र से नमी खींच लेते हैं। जिसके बाद पर्याप्त ऊर्जा के साथ ये बनकर आगे बढ़ना शुरू करते हैं। जिसके बाद ये धरती पर आकर भीषण तबाही मचा देते हैं।
साइक्लोन के नाम 18वीं सदी तक कैथोलिक संतों के नाम पर रखे जाते थे। 19वीं सदी में साइक्लोन के नाम महिलाओं के नाम पर रखे जाने लगे। साल 1979 से इन्हें पुरुष नाम भी देने का चलन शुरू हुआ। ‘बिपरजॉय’ बांग्ला भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ‘आपदा’। इस खतरनाक होते तूफान को बिपरजॉय नाम बांग्लादेश ने दिया। साल 2000 से विश्व मौसम संगठन यानी WMO और यूनाइटेड नेशंस इकोनॉमिक एंड सोशल कमिशन फॉर द एशिया पैसेफिक यानी ESCAP ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र के तूफानों के नामकरण का मेथेड शुरू किया। वर्तमान में साइक्लोन के नाम रखने का काम दुनिया भर में मौजूद छह विशेष मौसम केंद्र यानी रीजनल स्पेशलाइज्ड मेट्रोलॉजिकल सेंटर्स यानी RSMCS और पांच चक्रवाती चेतावनी केंद्र यानी ट्रॉपिकल साइक्लोन वॉर्निंग सेंटर्स यानी TCWCS करते हैं।
साइक्लोन आमतौर पर ठंडे इलाकों में नहीं बनते है, क्योंकि इन्हें बनने के लिए गर्म समुद्री पानी की जरूरत होती है। लगभग हर तरह के साइक्लोन बनने के लिए समुद्र के पानी के सरफेस का तापमान 25-26 डिग्री के आसपास होना जरूरी होता है। इसीलिए साइक्लोन को ट्रॉपिकल साइक्लोन भी कहा जाता है। ट्रॉपिकल इलाके आमतौर पर गर्म होते हैं, जहां साल भर औसत तापमान 18 डिग्री से कम नहीं रहता।
अब तक का सबसे विनाशकारी साइक्लोन साल नवंबर 1970 में बांग्लादेश में आया था। इसका नाम था ग्रेट भोला साइक्लोन, जिसकी वजह से लगभग 5 लाख लोगों की मौत हो गई थी। भारत में भी एक तूफान ने ऐसा ही हाहाकार मचाया था। ये 1737 में आया था, जिसे हुगली रिवर साइक्लोन के नाम से जाना जाता है। इसने लगभग साढ़े तीन लाख लोगों की जान ले ली। अमेरिका के साइक्लोन कैटरीना को भी इसी कैटेगरी में रखा जाता है। साल 2005 में इसकी वजह से 2000 जानें गईं। साथ ही मकान, दफ्तर टूटने से जो नुकसान हुआ, वो लगभग 108 billion डॉलर का था। ये दुनिया के इतिहास में सबसे ज्यादा नुकसान माना जाता है। अमेरिका दुनिया के उन चुनिंदा हिस्सों में से है, जहां सबसे ज्यादा चक्रवाती तूफान आते हैं। ऐसा यहां के मौसम की वजह से है। टेक्सास, न्यू ऑरलीन्स, फ्लोरिडा जैसे एरिया इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं।
आमतौर पर टायफ़ून, हरीकेन और साइक्लोन को एक ही मान लिया जाता है। भारत में आने वाले तूफान साइक्लोन होते हैं, जिसकी रफ्तार 140 किलोमीटर प्रतिघंटे के आसपास होती है। ये करीब 1600 किलोमीटर की दूरी तय कर सकता है, जिसके बाद गति घटने के साथ इसकी तबाही बंद हो जाती है।
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