राजस्थान: अशोक गहलोत और जयपुर राजघराना के बीच सवाई मान सिंह टाउन हॉल का विवाद | Manchh न्यूज़

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राजस्थान के सवाई मान सिंह टाउन हॉल को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और जयपुर राजघराना के बीच हो रहा है एक आकर्षक विवाद। इस घराने का महत्व और उसके संबंध में जानने के लिए पढ़ें Manchh न्यूज़ पे विस्तार से

रजवाड़ों का राज्य राजस्थान, यहां कि राजधानी जयपुर और जयपुर का वो महल, जिसकी वजह से ही राजस्थान के तमाम शहरों को छोड़कर जयपुर को राजस्थान की राजधानी चुना गया। उसी महल को लेकर आज स्टेट गर्वनमेंट और जयपुर राजघराना एक दूसरे के आमने-सामने है। वो जगह है सवाई मान सिंह टाउन हॉल।

भारत में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान यहां राजपूताना हाईकोर्ट फैसले करता था। आजादी के बाद राजस्थान विधानसभा चलती थी, कानून बनते थे, लेकिन अब सवाई मान सिंह टाउन हॉल के मालिकाना हक पर विवाद पसरा हुआ है। जयपुर राजपरिवार इसे वापस चाहता तो राज्य सरकार यहां इंटरनेशनल म्यूजियम बनवाना चाहती है। लेकिन सवाई मान सिहं टाउन हॉल की पूरी कहानी क्या है, और इस महल को सरकार को देते समय क्या कुछ हुआ था

विशेषज्ञ बताते हैं कि जिसे हम टाउन हॉल या पुरानी विधानसभा कहते हैं, उस जगह की नींव राजघरानों के दो विचारों पर पड़ी थी। दरअसल, पूर्व राजमाता चंद्रावत एक भव्य राम मंदिर बनवाना चाह रही थीं और उनके बेटे महाराजा रामसिंह द्वितीय अपनी मां यानी कि राजमाता चंद्रावत के लिए महल बनवाना चाह रहे थे। जिसके बाद में तय हुआ कि यहां महल बनेगा, लेकिन महल बनने से पहले ही राजमाता और महाराजा रामसिंह द्वितीय, दोनों का निधन हो गया।

लेकिन साल 1840 में महल बनने की शुरूआत हुई और इसके सामने ही राम मंदिर के लिए जगह भी चिन्हित की गई। लेकिन किसी न किसी वजह से महल का काम बीच-बीच में अटक जाता था। लेकिन फिर आखिरकार साल 1883 में ये महल बनकर तैयार हो गया। रिपोर्ट के मुताबिक, इस टाउन हॉल में 20 अक्टूबर 1945 में इंटरनेशनल साहित्य सम्मेलन हुआ था, जिसमें जवाहरलाल नेहरू, सरोजिनी नायडू, सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे कई अहम लोग मौजूद थे।

फिर आजादी के समय जब रियासतों का विलय हो रहा था, तो उदयपुर, कोटा समेत कुछ राजघराने चाहते थे कि उनके शहर को राजस्थान की राजधानी घोषित किया जाए। जिसके लिए सत्यनारायण राव कमेटी जयपुर गई थी। इसी टाउन हॉल में उनके लिए खान-पान की व्यवस्था की गई थी। उस कमेटी को यहां काफी अच्छा लगा और प्रकृति और बाकी चीजें काफी रास आ गई। बताया जाता है कि कमेटी ने यहां जो समय गुजारा, उस दौरान मन बना लिया था कि राजस्थान की राजधानी जयपुर बनेगी और बाद में जब कमेटी दिल्ली पहुंची तो उन्होंने ये सुझाव भी दिया। 

जयपुर राजपरिवार यानी कि पूर्व महारानी पद्मिनी देवी, सांसद दीया कुमारी और पद्मनाभ सिंह इसे वापस चाहते है जबकि सरकार यहां 100 करोड़ रुपए खर्च कर इंटरनेशनल म्यूजियम बनवाना चाहती है। रिपोर्ट के मुताबिक, पूर्व राजपरिवार दावा करता है कि विलय के दौरान उन्होंने राज्य सरकार को टाउन हॉल सरकारी काम में उपयोग के लिए दिया था। साल 2000 के बाद यहां से विधानसभा ज्योति नगर में नए भवन में शिफ्ट हो गई थी। पूर्व राजपरिवार के 7 अगस्त, 2019 को पेश किए दावे के मुताबिक, सरकार उनकी संपत्ति पर नाजायज तरीके से अवैध कब्जा किए हुए है। पूर्व राजपरिवार ने कहा है कि राज्य सरकार उनकी संपत्तियों पर अवैध कब्जे को छोड़े और कब्जे के दौरान के समय का हर्जाना संपत्तियों के हिसाब से प्रति संपत्ति 50 लाख से 1 करोड़ रुपए प्रति माह तक दिलवाया जाए।

वहीं राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में कहा गया कि कोवेनेंट में संपत्तियां राज्य सरकार को देने के बारे में लिखा गया है। सरकार को ये संपत्ति कोवेनेंट से मिली है, ना की लाइसेंस के जरिए। कोवेनेंट को किसी भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती है। जिस दिन कोवेनेंट लिखा गया था, उस समय वहां विधानसभा अस्तित्व में ही नहीं थी। ऐसे में सरकार परिसरों का कोई भी उपयोग करने के लिए स्वतंत्र है।

कैम्ब्रिज डिक्शनरी के मुताबिक, कोवनेंट का मतलब दो या दो से ज्यादा लोगों के बीच एक औपचारिक समझौता या वादा से होता है। वैसे बता दें, राज्य सरकार का कहना था कि यहां सौ करोड़ रुपए में इंटरनेशनल लेवल का म्यूजियम बनाना चाहती हैखैर, दोनों पक्षों की बहस सुनने के बाद अदालत ने अपीलों पर फैसला सुरक्षित रख लिया है। राजस्थान के इस हॉल की बात करें तो रिपोर्ट के मुताबिक, साल 1952 में पहली बार विधानसभा का गठन हुआ था। उस समय विधानसभा सवाई मानसिंह टाउन हॉल में चलती थी।

राजस्थान विधानसभा में 1953 में देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू का भाषण हुआ था। इसके बाद नवंबर 2001 में ज्योति नगर स्थित विधानसभा के नए भवन का उद्घाटन करने के लिए तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन आए थे।इस मामले में एडीजे कोर्ट में दावा पेश किया गया था, लेकिन अधीनस्थ कोर्ट ने अस्थाई निषेधाज्ञा यानी Prohibitory Order के प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया हैं। अब सरकार और पूर्व राज परिवार की नजरें हाईकोर्ट पर टिकी हुई हैं। वैसे बता दें, जयपुर राजघराने की महारानी पद्मिनी और परिवार के लोग खुद को श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज बताते हैं। कुछ समय पहले महारानी पद्मिनी ने एक टीवी चैनल को दिए इंटरव्यू में कहा था कि उनके पति भवानी सिंह कुश के 307वें वंशज थे।

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