86 साल पहले शुरू हुईं मुंबई की आइकॉनिक डबल डेकर बसें रिटायर, क्या है इनका इतिहास

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मुंबई की आइकॉनिक डबल डेकर बसें: 86 साल का एक इतिहास | Manchh न्यूज़

हमारे देश में कुछ जगह वहां की खास और अनोखी चीजों से पहचानी जाती हैं जैसे कलकत्ता की ट्राम, हिमाचल की ट्वाय ट्रेन और मुंबई की बेस्ट लिखी हुई लाल रंग की डबल डेकर बसें... इनके साथ एक पूरा जमाना गुजरा, जो लाखों जिंदगियों का हिस्सा बनीं, जिनपर सिनेमा के गाने फिल्माए गए। लेकिन अब मुम्बई की सिग्नेचर और आइकॉनिक ये लाल रंग की डबल डेकर बसें सड़कों पर नहीं दिखाई देंगी।

एक ब्रेक और 86 साल पुराना यादों का सफर उस मोड़ पर थम गया, जहां से आगे का रास्ता हमेशा के लिए बंद है। इस आखिरी सफ़र की सवारियां जब उतरीं तो उनके बढ़ते कदमों में थकान नहीं बल्कि वो मायूसी थी कि मानों सब छूट सा रहा है। अंतर्मन में एक टीस उठती नज़र आई कि अब इस सफ़र को दुबारा कभी महसूस नहीं कर पाएंगे। 

साल 1937 में अंग्रेजों ने मुंबई में पहली डबल-डेकर बस के साथ ही उस सफ़र की शुरूआत की जो मुंबई के ट्रांसपोर्ट का एक अहम जरिया बन गई थी। 86 सालों से ये बसें मुंबई की सड़कों पर दौड़ रही हैं। बात अगर आज के वक्त की करें तो BEST के बेड़े में डीजल से चलने वाली नॉन ऐसी तीन ओपन-डेक बसों के अलावा केवल सात डबल-डेकर बसें बची हैं। हालांकि, 1990 के दशक की शुरुआत में BEST के पास लगभग 900 डबल-डेकर बसों का बेड़ा था, लेकिन 90 के दशक के करीब आधा बीत जाने के बाद ये संख्या धीरे-धीरे कम हो गई। हाई ऑपरेटिंग कॉस्ट का हवाला देते हुए BEST प्रशासन ने साल 2008 के बाद डबल-डेकर बसों को शामिल करना बंद कर दिया। क्योंकि परिवहन के नए तौर-तरीकों को अहमियत दी जा रही है। तो BEST ने इस साल फरवरी से इन बसों को बैटरी से चलने वाली लाल और काली डबल-डेकर AC बसों से बदलना शुरू कर दिया और अब तक लगभग 25 AC बसें शामिल की जा चुकी हैं। हालांकि पुरानी डबल डेकर बसों की छांप इन नई लाल और काली बसों में भी दिखाई पड़ी। जबकि, पुरानी डबल-डेकर बसें सिर्फ लाल रंग की ही होती थीं। इन इलेक्ट्रिक बसों की कीमत दो करोड़ रुपये बताई जाती है। जबकि, डीजल वाली एक डबल-डेकर बस पर 30 से 35 लाख रुपये खर्च होते थे।

पुरानी बसों को अब संग्रहालय में लोगों को दिखाने के लिए रखा जाएगा, ताकि आने वाली पीढ़ी इस बस को देख सके। 

अगर इन बसों के इतिहास की बात करें तो, 200 साल पहले पेरिस में घोड़ागाड़ी चलाने वाले स्टेनिस्लास बाउड्री ने ज्यादा सवारी बैठाने के लिए घोड़ागाड़ी को दो मंजिला बना दिया। साल 1828 में उनकी ये दो मंजिला घोड़ागाड़ी पेरिस की सड़कों पर चलने लगी। उसके दो साल बाद साल 1830 में Britain के Goldworthy Gurney and Walter Hancock ने steam engine के साथ बस उतार दी और फिर कुछ साल बाद एक और अंग्रेज george schilliber ने Omnibus के नाम से streets of london पर डबल-डेकर बसें उतार दीं। जिसके बाद साल 1920 के दशक में पहली बार लंदन की सड़कों पर इंजन से चलने वाली डबल-डेकर बसों को उतारा गया। हालांकि, मुंबई में साल 1937 से डबल-डेकर बसें चल रहीं हैं। साल 1937 में मुंबई में जो डबल-डेकर बस चली थी, उसमें एक बार में 58 यात्री सफर कर सकते थे। जबकि, सिंगल-डेकर बसों में 36 यात्री ही सफर कर सकते थे। बढ़ती आबादी और संकरे रास्तों को ध्यान में रखते हुए डबल-डेकर बसें बननी शुरू हुई थीं। इनकी लंबाई 9 से 12 मीटर होती थी। इनमें एक बार में 60 से 120 यात्री सफर कर सकते थे। 1970 के दशक में दिल्ली में भी डबल-डेकर बसें चलती थीं, लेकिन 90 के दशक में फुटओवर ब्रिज और पुल की ऊंचाई के कारण इन्हें बंद कर दिया गया। ऐसे ही कुछ समय के लिए बेंगलुरु, हैदराबाद और कोलकाता में भी डबल-डेकर बसों को चलाया गया। लेकिन बाद में ये बंद हो गईं। हालांकि, कुछ ही साल पहले कोलकाता में कुछ रूट पर डबल-डेकर बसों को शुरू किया गया है।

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