दुनिया भर के लगभग सभी देशों की खुफिया एजेंसी होती है। भारत की भी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग यानी रॉ है। इस एजेंसी में काम करने वाले एजेंट्स की कोई पहचान नहीं होती है, लेकिन इनका जिक्र कहीं न कहीं जरुर होता है और ये जिक्र रॉ एजेंट पर बनी शाहरुख खान की फिल्म पठान, सलमान खान की फिल्म एक था टाइगर और इसी फिल्म का सिक्वल टाइगर जिंदा है जैसी कई फिल्मों में भी हो चुका है। इन फिल्मों में दिखाया गया है कि कैसे रॉ एजेंट काम करते हैं और देश को हर उस खतरे से बचाते हैं जो खतरा आने वाला है, तो आइए समझते हैं कि रॉ के गठन का क्या था मुख्य उद्देश्य? क्या जैसे फिल्मों में दिखाया जाता है रॉ उसी तरह से काम करती है।
रिसर्च एंड एनालिसिस विंग भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी है, जो लोग अपना नाम पाना चाहते हैं उनके लिए ये फील्ड नहीं है, क्योंकि यहां ऐेसे लोगों की जरूरत होती है, जो अपनी पहचान छिपाकर रखें। क्योंकि ये वो एजेंसी है जो पर्दे के पीछे रहकर देश की रक्षा करती है। रॉ में विदेशों में गुप्त रूप से विदेशों में तैनाती की जाती है। इन एजेंट्स की जानकारी बेहद ही खुफिया होती है, जिन्हें सार्वजनिक नहीं किया जाता है। इसका हेडक्वार्टर नई दिल्ली में है। रॉ के पूरे भारत में 10 फील्ड फॉर्मेशन हैं, जिन्हें विशेष ब्यूरो के रूप में जाना जाता है। दुनिया की सबसे तेज खुफिया एजेंसियों में से एक भारत की रॉ को आईपीएस रवि सिन्हा के रूप में नया मुखिया मिल गया है। अमेरिका की सीआईए, इजराइल की मोसाद के बाद सबसे बेहतरीन नेटवर्क भारत की रॉ का ही माना जाता है।
1968 में हुआ था गठन
देश के अंतरराष्ट्रीय खुफिया मामलों को संभालने के लिए रॉ को 21 सितंबर 1968 में स्थापित किया गया था। 1968 तक, इंटेलिजेंस ब्यूरो भारत की आंतरिक और बाहरी खुफिया जानकारी जुटाने के लिए जिम्मेदार था, लेकिन 1962 के चीन-भारत युद्ध और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में आईबी ने जो जानकारी इकट्ठा की थी, उसमें एक बड़ा अंतर दिखा था। इस दौरान आईबी 1962 और 1965 के युद्धों में चीन और पाकिस्तान की तैयारियों का अनुमान लगाने में विफल रही थी, जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाहरी खुफिया जानकारी के लिए एक अलग खुफिया संगठन रॉ बनाया। रामेश्वर नाथ काव को पहले डायरेक्टर के रूप में नियुक्त किया गया। आर एन काव की लीडरशिप में रॉ ने कई मिशन पूरे किए, जिसमें 1971 में बांग्लादेश का निर्माण, 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की हार, 1975 में सिक्किम का विलय शामिल है।
रॉ का काम क्या है?
रॉ के डायरेक्टर की रिपोर्टिंग सीधे प्रधानमंत्री को होती है। खुफिया एजेंसी रॉ में भारतीय सेना, पुलिस और सिविल सेवाओं सहित भारत सरकार की कई शाखाओं के अधिकारी हैं। एजेंसी का प्राइमरी टास्क विदेशी खुफिया जानकारी जुटाना, आतंकवाद का मुकाबला करना, देश के खिलाफ विदेशी साजिशों को नाकाम करना, इंडियन पॉलिसी को लेकर सलाह देना और भारत के विदेशी सामरिक हितों को आगे बढ़ाना है। इस एजेंसी को देश के राष्ट्रीय सुरक्षा हितों की रक्षा के लिए सीक्रेट ऑपरेशन चलाने होते हैं। रॉ को भारत के परमाणु कार्यक्रम की सुरक्षा में भी शामिल किया गया है। खुफिया एजेंसी रॉ को पाकिस्तान, चीन सहित पड़ोसी देशों से खुफिया जानकारी जुटाने में महारत हासिल है।
रॉ का इतिहास
रॉ की शुरुआत 250 कर्मचारियों और 20 मिलियन के वार्षिक बजट के साथ मुख्य इंटेलिजेंस ब्यूरो के एक विंग के रूप में हुई थी।
70 के दशक में रॉ का सालाना बजट बढ़ाकर 300 मिलियन कर दिया गया था, जबकि इसके कर्मियों की संख्या कई हजार थी।
विदेशों में कई अहम ऑपरेशन
रॉ पर विदेशी इंटेलिजेंस जुटाने का जिम्मा है। अगर किसी देश के घटनाक्रम का भारत पर असर हो सकता है, तो रॉ उस पर नजर रखती है। राष्ट्रहितों के लिए खुफिया ऑपरेशंस को भी रॉ अंजाम देती है। रॉ अलग-अलग तरह के ऑपरेशन की मदद से सैन्य, आर्थिक, वैज्ञानिक और राजनीतिक खुफिया जानकारी इकट्ठा करता है। रॉ ने विदेशों में कई अहम ऑपरेशन, जासूसी मिशन और सीक्रेट कम्युनिकेशन नेटवर्क चलाए हैं। इसके जरिए रॉ ने भारत के दुश्मनों की गतिविधियों की जानकारी जुटाई है और आपात स्थितियों में महत्वपूर्ण फैसले लिए हैं। सेना को खुफिया जानकारी उपलब्ध कराती है।
रॉ के एजेंट कैसे बनते हैं?
अगर आप भी रॉ में शामिल होने की सोच रहे हैं तो इसके लिए कोई डायरेक्ट भर्ती नहीं होती है। इसमें शामिल होने से पहले आपको डिफेंस सेक्टर या फिर इंडियन सिविल डिपार्टमेंट में शामिल होना होगा। इन डिपॉर्टमेंट्स में अच्छा एक्सपीरियंस लेने के बाद और अच्छा करने के बाद आपको रॉ में भर्ती के लिए एक इंटरव्यू देना होगा, जिसमें पास होने के बाद आप रॉ में भर्ती के लिए योग्य माने जाएंगे। साथ ही कंप्यूटर हैकिंग, स्पेशल वर्किंग स्किल्स, इंटरनेट में स्पीड में आपको महारत हासिल होनी चाहिए।
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