Tun Tun : मुस्कुराते चेहरे के पीछे दर्द भरी कहानी

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अपन भारी भरकम शरीर के साथ जब ये स्क्रीन पर एक्टिंग करती तो कोई भी हो हंसे बिना नहीं रह सकता था। जो इनसे वाकिफ है उनके चेहरे पर सिर्फ इनके नाम भर लेने से मुस्कान आ जाती है। लेकिन इनका खुद का बचपन और जवानी हंसे बगैर गुजरी। मां-बाप और भाई की हत्या कर दी गई। रिश्तेदारो ने इनसे नौकरों की तरह काम करवाया। कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा। पर एक ख्वाब देखा। सिंगर बनने का। कई बेहतरीन गाने गाए जो आज भी सुपरहिट है। लेकिन बाद में ये बॉलीवुड की पहली महिला कॉमेडियन बनीं। आज कहानी टुनटुन की। 

यूपी के अमरोहा के अलीपुर गांव में 11 जुलाई 1923 को उमादेवी खत्री का जन्म हुआ। उमा जब दो साल की हुईं तो माता-पिता का निधन हो गया। उनका सहारा बने बड़े भाई हरी खत्री। लेकिन वो जब पांच-छह साल हुईं तो भाई भी दुनिया छोड़कर चले गए।

इसके बाद वो अपने चाचा-चाची के साथ रहने लगीं। चाचा-चाची उनसे नौकरों की तरह घर का सारा काम कराते। यहां तक जब किसी रिश्तेदार के घर में कोई शादी वगैरह होती तो उमा को काम करने के लिए भेज दिया जाता।

जब वो थोड़ी बढ़ी हुईं तो गांव वालों से पता चला की पारिवारिक जमीन हड़पने के लिए रिश्तेदारों ने ही उनके माता-पिता और भाई की हत्या कर दी थी।

खैर, किसी तरह उनका बचपन बीता। 20-22 साल की उम्र में वो एक दिन दिल्ली के दरियागंज में एक रिश्तेदार के घर गई हुई थीं।

वहां पर उनकी मुलाकात अख्तर अब्बास काजी से हुई। जो दिल्ली में सरकारी जॉब करते थे। काजी साहब उमा का सहारा बने। वो अपना सुख दुख उनसे बांटती। उनसे मिलकर वो एक ख्वाब देखने लगीं। वो ख्वाब था सिंगर बनने का।

दरअसल, उमा ने कभी स्कूल का मुंह तक नहीं देखा था। लेकिन वो रेडियो में उस दौर की फेमस सिंगर नूरजहां के गाने सुना करतीं। घर वालों से छुपकर वो गाने गाती।

एक दिन सिंगर बनने के लिए गांव छोड़कर मुंबई भाग गई। वहां उनकी मुलाकात एक्टर गोविंदा के माता-पिता एक्टर और डायरेक्टर अरुण आहूजा और उनकी पत्नी सिंगर निर्मला देवी से हुई। उन्होंने उमा देवी की कई प्रोड्यूसर-डायरेक्टर से मुलाकात करावाई। पर बात नहीं बनीं।

इसी दौरान उन्हें पता चला कि डायरेक्टर अब्दुल रशीद कारदार एक फिल्म बना रहे हैं। वो पहले कभी कारदार से नहीं मिलीं थी। एक दिन उमा स्टूडियो पहुंच गई। और एआर कारदार के सामने ही खड़े होकर बड़े बेबाक अंदाज में पूछ बैठी –

‘कारदार साहब कहां मिलेंगे? मुझे उनकी फिल्म में गाना गाना है।’

शायद डायरेक्टर ए आर कारदार को उनका ये अंदाज पसंद आया हो, इसलिए उन्होंने उमा को म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद से मिलवाया।

उमा देवी की आवाज सभी को पसंद आई और उन्हें 500 रुपये महीने की नौकरी मिल गई।

उमा देवी को सबसे पहले गाना गाने का मौका मिला साल 1947 में रिलीज हुई फिल्म ‘दर्द’ में। इस फिल्म में उमा ने चार गाने गाए थे। इसमें से एक गाना जिसके बोल थे - ‘अफसना लिख रही हूं’। सुपरहिट हुआ। उमा देवी की बतौर सिंगर गाड़ी चल पड़ी। उनको गाने के मौके मिलते रहे और उन्होंने तमाम फिल्मों में 50 से ज्यादा गाने गाए।

इस वक्त भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हो चुका था। और उमा देवी के सबसे पहले दोस्त बने अख्तर अब्बास काजी लाहौर में बस चुके थे। लेकिन वो उमा देवी का गाना सुनकर सब कुछ छोड़कर भारत आ गए और उन्होंने उमा देवी से शादी कर ली।

इसके बाद वो कुछ वक्त के लिए बॉलीवुड से दूर हो गईं। घर की जिम्मेदारियों की वजह से उनकी सिंगिंग सिमट गई। उमा के चार बच्चे हुए। दो लड़के और दो लड़कियां। फैमिली बड़ी थी। पति की नौकरी से मिलनी वाली सैलेरी से गुजारा मुश्किल था।

ऐसे में उमादेवी ने फिर से फिल्मों में काम करने का मन बनाया। वो म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद से दोबारा मिलीं। 

कहा कि - ‘मैं फिल्मों में गाना चाहती हूं।

लेकिन वक्त आगे निकल चुका था। लता मंगेशकर और आशा भोंसले जैसे ट्रेंड सिंगर बॉलीवुड में अपना पैर रख चुके थे। वहीं उमा देवी ने कोई भी म्यूजिक की ट्रेनिंग नहीं ले रखी थी।

इस वजह से नौशाद ने उमा देवी से कहा – ‘तुम एक्टिंग में हाथ क्यों नहीं आजमाती?’

तो अपने बेबाक अंदाज में उमा देवी ने कहा कि ‘मैं एक्टिंग करूंगी। लेकिन, दिलीप कुमार के साथ।’

उनकी ये तमन्ना पूरी हुई। उन्होंने अपनी पहली फिल्म दिलीप कुमार के साथ ही की। फिल्म का नाम था – ‘बाबुल’।

उमा देवी का वजन कापी बढ़ चुका था। फिल्म में उनका रोल एक कॉमेडियन का था। दिलीप कुमार जब उनसे मिले तो उन्होंने ही उनका फिल्मी नाम ‘टुनटुन’ रख दिया। अब उमा देवी से वो ‘टुनटुन’ बन गई थीं।

टूनटुन ने बॉलीवुड के हर बड़े डायरेक्टर और एक्टर के साथ काम किया। बॉलीवुड की पहली महिला कॉमेडियन बनीं। फिल्म मेकर्स फिल्म में टुनटुन के लिए स्पेशल रोल लिखवाते। उस दौर के सभी मशहूर कॉमेडियन्स के साथ कई बेहतरीन परफॉरमेंस दी। 45 साल में करीब 200 फिल्मों में काम किया। उनकी आखिरी फिल्म साल 1990 की ‘कसम धंधे की’ थी। 24 नवंबर साल 2003 में 80 साल की उम्र में उन्होंने दुनिया से अलविदा कह दिया। 

फिल्मों में किए गए टुनटुन के हर रोल शानदार हैं जो हमेशा यादगार रहेंगे।

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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