ये 1992 की बात है, उस समय मोबाइल, सोशल मीडिया और इंटरनेट वाली न्यूज की आपाधापी वाला दौर तो नहीं था, लेकिन अखबारों की हेडलाइन्स लोगों की चर्चाओं में शामिल हुआ करती थीं। अलग-अलग न्यूजपेपर्स में एक ही खबर की हेडलाइन क्या दी, इस पर बातें हुआ करती थी। लेकिन उसी दौर में 21 अप्रैल 1992 को राजस्थान के अजमेर के अखबार दैनिक नवज्योति में सेक्स स्कैंडल पर एक सनसनी खबर छपी, जो सिर्फ उस समय ही नहीं बल्कि लंबे वक्त तक लोगों के जहन में रही। इसे आज हम एक अजमेर ब्लैकमेल कांड के नाम से जानते हैं, इस पर एक फिल्म अजमेर 92 भी बन रही हैं, जिसपर बवाल मचा शुरू हो चुका है, लेकिन अजमेर का साल 1992 हुआ सेक्स स्कैंडल क्या था।
21 अप्रैल 1992 में दैनिक नवज्योति अखबार में खबर छपी कि अजमेर में लंबे समय से एक सेक्स स्कैंडल को अंजाम दिया जा रहा है। कुछ लोगों का एक ग्रुप स्कूल में पढ़ने वाली कम उम्र की लड़कियों का सामूहिक बलात्कार कर रहे हैं। अखबार में जब ये खबर पब्लिश हुई तो उस समय लोगों को इस बात पर ही नहीं हो रहा था, क्योंकि ये पत्रकार की, कि गई एक गहन रिसर्च थी, न किसी लड़की ने खुलकर आरोप लगाए थे और न ही पुलिस में किसी ने शिकायत दर्ज की थी। तो लोगों को इस बात पर भरोसा कैसे होता।
फिर इस खबर के प्रकाशित होने के कुछ दिनों बाद 15 मई को फिर से एक खबर प्रकाशित हुई, जिसमें सेक्स स्कैंडल का शिकार हुईं इन लड़कियों की धुंधली तस्वीरें भी छापी गई थीं। तस्वीरे धुंधली थी लेकिन इतना समझ में आ रहा था कि लड़कियों के साथ कुछ लोग आपत्तिजनक हालत में थे। लगातार दो दिनों तक ये तस्वीरें दैनिक नवज्योति अखबार में प्रकाशित हुईं, इस खबर ने अजमेर में तूफान आ ला दिया था, लोगों की जुबान पर इस खबर को लेकर सवाल थे।
मीडिया रिपोर्ट्स में जिक्र मिलता है कि इस सेक्स स्कैंडल की खबर सामने आने के बाद तत्कालीन रहे सीएम भैरोंसिंह शेखावत की कुर्सी तक हिल गई थी। हर बीतते दिन के साथ रोज नई तस्वीरें सामने आने लगीं, तस्वीरों की जीरॉक्स कॉपियां भी लोगों के बीच बंटने लगीं। किसी ने इसे अजमेर गैंगरेप कांड कहा तो किसी ने अजमेर ब्लैकमेल कांड कहना शुरू कर दिया।
अजमेर ब्लैकमेल कांड में स्कूल-कॉलेज की 300 से ज्यादा लड़कियों के यौन शोषण की बात निकलकर सामने आई थीं। जिसका आरोप शहर के सबसे रईस और ताकतवर खानदानों में से एक चिश्ती परिवार के नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती पर लगाया गया था, सामूहिक यौन शोषण के इस मामले के सामने आने के बाद बहुत से लोग केवल इस वजह से इस पर यकीन नहीं कर रहे थे क्योंकि चिश्ती परिवार सामाजिक और आर्थिक दोनों ही हैसियत में हद से ज्यादा ऊंचाईयों पर था। फारुक चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस का अध्यक्ष था, तो नफीस चिश्ती उपाध्यक्ष।
द प्रिंट की खबर की मानें, 90 के दशक की शुरुआत में अजमेर में केवल दो ही रेस्तरां हुआ करते थे। सोफिया स्कूल और सावित्री स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियां इन्हीं रेस्तरां जाया करती थीं, अजमेर दरगाह के केयरटेकर यानी कि खादिमों के परिवार से आने वाले नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती उस समय अपनी जीप, एम्बेसडर और फिएट कारों में घूमते थे।
पैसा, रहिसी और सियासी ताकत सब कुछ उनके पास था। बताया जाता है कि लड़कियों को महंगे गिफ्ट देना और रेस्तरां में खाना खिलाना इन लोगों के लिए कोई बड़ी बात नहीं थी। दैनिक नवज्योति के क्राइम रिपोर्टर संतोष गुप्ता बताते हैं कि वे दोनों रेस्तरां गए थे, जहां कुछ स्कूली छात्राएं भी बैठी थीं। उनमें से एक ने रेस्तरां के मैनेजर से सभी को आइसक्रीम बांटने के लिए कहा क्योंकि उस दिन उनके एक दोस्त का बर्थडे था। ऐसी चीजें जो इतनी फिल्मी किस्म की हों, स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों के इम्प्रेस करने की शुरूआत के लिए काफी रही।
अजमेर ब्लैकमेल कांड में फारुक, नफीस के साथ अनवर, मोइजुल्लाह उर्फ पुत्तन इलाहाबादी, सलीम, शमशुद्दीन, सुहैल और भी लोग शामिल बताए जाते थे। द प्रिंट के ही मुताबिक, स्कूल में पढ़ने वाली इन लड़कियों को नफीस-फारुक से ये कहकर मिलवाया जाता था कि ये लोग बहुत शरीफ लोग हैं। जिसके बाद ये शरीफ लोग तमाम लड़कियों को अजमेर के एक बंगले, एक फार्महाउस और एक पोल्ट्री फार्म में ले जाकर उनका यौन शोषण करते थे और अश्लील तस्वीरों के सहारे ब्लैकमेल करते रहते थे।
लड़कियां जब इन लोगों से तस्वीरों की नेगेटिव रील देने की मांग करती थीं, तो उनसे और लड़कियों से बात करने का दबाव बनाया जाता था। लेकिन जब कोई लड़की किसी और लड़की से मिला देती तो रील वापस तो न होती बल्कि इस स्कैंडल में एक और लड़की का नाम और जुड़ जाता। फिर बदनामी के डर से लड़कियां चुप रह जाती और मजबूरी में दूसरी लड़कियों को उनका शिकार बनवाने को राजी हो जाती थीं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस कांड की एक पीड़ित लड़की ने पुलिस अधिकारी से पूरे कांड के बारे में बताया। लड़की को फोटोज वापस मिल जाएंगी, ऐसा कहा गया। लेकिन फिर बताया जाता है कि लड़कियों को धमकियां मिलने लगी कि अगर वो पुलिस के पास गई तो तस्वीरें पूरे शहर में बांट दी जाएंगी। जिसके बाद लड़कियों ने चुप्पी साध ली, कई लड़कियां स्कूल खत्म कर दूसरी जगहों पर चली गईं।
रिपोर्ट्स में बताया गया कि लड़कियों की ये तस्वीरें कलर लैब से बाहर हुई थीं, जिसके बाद लोगों को इस मामले का पता चला कि लड़कियों को नामी लोगों के पास भेजा जाता है। कलर लैब के एक पुरुषोत्तम नाम के कर्मचारी पर इस मामले में मुकदमा भी दर्ज किया गया। जिसके कुछ समय बाद उसने आत्महत्या कर ली थी, साथ ही तस्वीरें बाहर आने के बाद लड़कियों के भी आत्महत्या करने की बात सामने आई।
इंडिया टुडे की एक खबर के मुताबिक, उस समय एक स्थानीय अखबार के पत्रकार मदन सिंह ने अपने अखबार में रोज लड़कियों की ऐसी ही तस्वीरें छापना शुरू कर दिया। जिसके बाद एक लड़की ने मदन सिंह के तस्वीरें न छापने को लेकर एफआईआर भी दर्ज करवाई थी। लेकिन बताया जाता है वो तस्वीरें न छापने के लिए उससे पैसों की मांग कर रहा था।
फिर कुछ वक्त बीता और मदन सिंह ने अजमेर ब्लैकमेल कांड से जुड़े 4-5 बड़े नाम छाप दिए, इसके बाद पत्रकार पर एक जानलेवा हमला हुआ, जिसका आरोप मदन सिंह ने पूर्व कांग्रेस विधायक रहे डॉ. राजकुमार जयपाल समेत कुछ लोगों पर लगाया था। जिसके कुछ दिनों बाद ही 12 सितंबर 1992 को मदन सिंह की अस्पताल में घुसकर हत्या कर दी गई।
अखबारों में जब ये कांड छपा जो उस समय लोगों की जुबान पर लगातार ये बना रहा, लेकिन फिर जब ये केस न्याय के लिए पहुंचा तो जिला अदालत से हाईकोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, फास्ट ट्रैक कोर्ट और पॉक्सो कोर्ट के बीच चलता रहा।मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, इस केस की शुरुआत में 17 लड़कियों ने अपने बयान दर्ज करवाए, लेकिन समय के साथ ज्यादातर गवाही देने से मुकर गईं। साल 1998 में अजमेर की एक कोर्ट ने आठ दोषियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी, लेकिन राजस्थान हाईकोर्ट ने 2001 में उनमें से चार को बरी कर दिया। फिर साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा घटाकर 10 साल कर दी थी।
साल 2007 में अजमेर की फास्ट ट्रैक कोर्ट ने फारूक चिश्ती को भी दोषी बताया, जोकि खुद को दिमागी तौर पर असंतुलित घोषित किया गया था|जिसके बाद साल 2013 में राजस्थान हाईकोर्ट ने फारुक चिश्ती की आजीवन कारावास की सजा घटाते हुए कहा कि वो जेल में पर्याप्त समय सजा काट चुका है।
साल 2012 में सरेंडर करने वाला सलीम चिश्ती 2018 तक जेल में रहा और फिर जमानत पर रिहा हो गया। ज्यादातर को जमानत मिल गई थी, तो कई आरोपी तो ऐसे थे जो पकड़े ही नहीं गए। इसी कांड पर अब एक फिल्म अजमेर 92 बन रही है। लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिन्द की ओर से फिल्म को बैन लगाने की मांग उठ रही है, क्योंकि इस कांड के आरोपी मुस्लिम और अजमेर शरीफ दरगाह से ताल्लुक रखते थे, तो ऐसे में उनका मानना है कि इस पर फिल्म अजमेर दरगाह को बदनाम करने के लिए बनाई जा रही है और इससे समाज में दरार पैदा होगी।
तो वहीं हाल ही अजमेर में खादिमों की संस्था अंजुमन सैयद जादगान के सचिव सरवर चिश्ती ने लड़कियों को लेकर विवादित बयान दिया है। उन्होंने लड़कियों को ऐसी चीज बताया जो लोगों को भ्रष्ट कर दें। तो वहीं फिल्म के मेकर्स का कहना है कि इसमें सिर्फ कांड को दिखाया गया है ताकि लोगों को सच्चाई पता चले, फिल्म में हिंदू-मुस्लिम जैसा कुछ नहीं है।
Comment
0 comment