यह तो हम सभी जानते हैं कि फास्ट फूड सेहत के लिए खतरनाक हो सकते हैं। अगर आप भी छोले-कुल्चे, नूडल्स, पिज्जा-बर्गर जैसे फास्ट फूड खाने के शौकीन हैं और रोजाना कुछ न कुछ ऐसा खाते ही हैं तो यह वाकई चिंता की बात है। हालांकि कुछ लोग अपनी इस आदत को यह कहकर सही बताते हैं कि वो दुकान की साफ-सफाई देखकर ही खाना खाते और मंगवाते हैं, लेकिन यकीन मानिए तेल, मिर्च मसाले के अलावा एक ऐसी चीज भी है जो आपको बीमार बना सकती है, जिसका इस्तेमाल फास्ट फूड को पैक करने में किया जाता है।
सुबह उठकर प्लास्टिक की पन्नी में दूध लाने से शुरू कर दिन में प्लास्टिक के टिफ़िन में खाना ले जाने से लेकर शाम को प्लास्टिक की कटोरी और चम्मच में जंक फ़ूड खाने तक हर कहीं प्लास्टिक मौजूद है। डिस्पोजल या प्लास्टिक की प्लेट और गिलास में चाय पीने और खाने का चलन तेजी से बढ़ा है, लेकिन इससे आपके शरीर को कई सारे नुकसान होते हैं। गैस्ट्रो मेडिसिन एक्सपर्ट प्रो. एसके गौतम का कहना है कि प्लास्टिक, थर्माकोल या किसी भी फूड पैकेजिंग के लिए इस्तेमाल होने वाली प्लेट, कटोरी या बॉक्स में परोसा जाने वाला खाना सेहत के लिए खतरनाक है। जब इनमें गर्म खाना डाला जाता है तो इस पैकेजिंग से कई तरह के खतरनाक केमिकल निकलने लगते हैं, जो खाने में मिल जाते हैं और जब इन्हें खाया जाता है तो ये केमिकल हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं और ये कई तरह की बीमारियों को न्यौता देता है। इससे डायरिया के साथ ही कैंसर, डायबिटीज़, दिल की बीमारियां और किडनी फेल हो सकती है।
केमिकल से बढ़ रहा खतरा
दरअसल, प्लास्टिक की फिल्म चढ़ी प्लेटों, गिलासों और दोने में फथालेट्स एंड बिसफेनॉल ए (बीपीए) नाम का केमिकल इस्तेमाल होता है। ये इंडस्ट्रियल केमिकल होता है, जिसका इस्तेमाल परफ्यूम और स्किन केयर प्रोडक्ट्स में भी किया जाता है, जबकि फूड पैक करने के लिए जिस रैपिंग पेपर या फिर कार्डबोर्ड बॉक्स का इस्तेमाल किया जाता है, इन सभी में पीएफएएस होता है यानी एंड पॉलीफ्लूरोकाइल। इसका इस्तेमाल माइक्रोवेव पॉपकॉर्न बैग में होता है। ये दाग रहित और वॉटर प्रूफ होता है जो लंबे समय तक टिकता है। चीन ने इस केमिकल को 1980 में बनाना शुरू किया था। ये कभी नष्ट नहीं होता। पीएफएएस मुंह और स्किन के जरिए बॉडी में एंटी करता है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने साल 2015 में अपनी स्टडी में 97 प्रतिशत अमेरिका के लोगों के ब्लड में ये केमिकल पाया था।
वैक्स का स्प्रे खतरनाक
बाजार से आप जिस पेपर जैसे गिलास में चाय, जूस या कॉफी पीते हैं, वो पॉलीप्रोपिलीन और बीपीए नाम के केमिकल से बनते हैं। इन पर वैक्स का स्प्रे किया जाता है। साथ ही पॉलिथीन और पैराफिन भी डाला जाता है ताकि कप लंबे समय तक चलें, लेकिन जैसे ही इसमें गर्म चाय या एसिडिक कोल्ड ड्रिंक या जूस डाला जाता है, ये सभी केमिकल लिक्विड के साथ मिल जाते हैं। जिससे अपच की समस्या हो जाती है। एनवायरन्मेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी की स्टडी में बताया गया है कि इंसान हर साल 39,000 से 52,000 माइक्रोप्लास्टिक कण निगल लेता है।
महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर
फ्थेलेट्स नाम का केमिकल शरीर में जाते ही सबसे पहले हार्माेन्स पर असर करता है। कई स्टडी में बताया गया है कि ये केमिकल महिलाओं की प्रजनन क्षमता पर बुरा असर डालता है, जिससे उन्हें मां बनने में दिक्कत होती है। अमेरिका के नेशनल हेल्थ न्यूट्रिशन एग्जामिनेशन सर्वे की एक स्टडी में पाया गया कि फ्थेलेट्स की ज्यादा मात्रा से पुरुषों में हार्ट अटैक की संभावना बढ़ जाती है। अमेरिका में 55 से 64 साल के पुरुषों में इसका स्तर ज्यादा पाया गया। इतना ही नहीं, पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन नाम के हार्माेन भी कम मात्रा में पाया जाता है, जिसका असर उनकी सेक्स लाइफ पर भी पड़ता है। यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया की स्टडी ने जानवरों पर इस केमिकल की स्टडी की।
फूड पैकेजिंग से रहें सावधान
भले ही फूड पैकेजिंग में प्लास्टिक और खतरनाक केमिकल का इस्तेमाल किया जा रहा हो, लेकिन बाहर के खाने को व्यक्ति खुद ही कंट्रोल कर सकता है। डॉक्टर का कहना है कि अगर कोई व्यक्ति साल में एक बार बाहर का खाना खाता है तो कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन हर रोज बाहर का खाना बीमारी को न्यौता देने जैसा है। प्लास्टिक की फिल्म चढ़ी प्लेट्स, थर्माकॉल और बॉक्स की जगह केले के पत्तों से दोने या पत्तल का इस्तेमाल करना बेहतर है। स्टील और चीनी मिट्टी के बर्तनों में भी खाना परोसा जा सकता है।
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