स्मोकिंग का ट्रेंड और चस्का लोगों को इतना बढ़ गया है कि अब ऑफिस, हॉस्पिटल, मॉल में स्मोकिंग जोन या स्मोकर्स केबिन बन गए हैं। ऐसे में नॉर्मल सिगरेट के बारे में तो सभी जानते हैं, लेकिन भारत में ई-सिगरेट बैन के बावजूद बड़ी तादाद में बिक रही है, जिसे लोग नशे के तौर पर इस्तेमाल करते हैं और इसकी लत खासकर युवा स्मोकर्स में तेजी से बढ़ती जा रही है। ऐसे में वर्ल्ड नो टोबैको डे पर हम जानेंगे ई-सिगरेट नॉर्मल सिगरेट से कैसे अलग है और दोनों में से कौन ज्यादा हार्मफुल है?
ई-सिगरेट एक तरह की इलेक्ट्रॉनिक निकोटीन डिलीवरी सिस्टम यानी ENDS डिवाइस है। ENDS बैटरी से ऑपरेट होने वाले डिवाइस हैं, जो बॉडी में निकोटिन पहुंचाते हैं। नॉर्मल सिगरेट की तरह ई सिगरेट में तंबाकू नहीं भरा जाता है और न ही इसे पीने के लिए जलाने की जरूरत पड़ती है। कई ई-सिगरेट्स में से तो पीने पर धुआं भी नहीं निकलता है। इसमें तंबाकू की जगह एक कार्टेज में लिक्विड निकोटिन भरा रहता है और लिक्विड खत्म होने पर कार्टेज को दोबारा से भरा जा सकता है। हालांकि कुछ ई-सिगरेट में यूज-एंड-थ्रो वाला हिसाब होता है। WHO के आंकड़ों की बात करें तो हर साल विश्व में तंबाकू से करीब 80 लाख अपनी जान गंवा देते हैं।
ई-सिगरेट के नुकसान
तो निकोटीन का सेवन हार्ट, किडनी और लिवर के लिए खतरनाक है। इसमें कैंसर पैदा करने वाले एजेंट होते हैं। WHO के मुताबिक, ई-सिगरेट के अलग-अलग फ्लेवर युवाओं को चुंबक की तरह खींचते हैं और उन्हें इसकी लत लगा देते हैं। बहुत से लोग मानते हैं कि ये हार्मफुल नहीं है, जबकि सच्चाई ये है कि ई-सिगरेट बहुत नुकसानदायक है। टीनेजर्स और यूथ में फेफड़ों की बीमारियां बढ़ रही। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन की रिपोर्ट के मुताबिक, ई-सिगरेट नॉर्मल सिगरेट से थोड़ी कम हार्मफुल होती है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि ई-सिगरेट सेफ है। जहां नॉर्मल सिगरेट के एयरोसाल में करीब 7000 रसायनों का घातक मिश्रण होता है, वहीं ई-सिगरेट में थोड़ा कम होता है। वहीं, नॉर्मल सिगरेट से स्मोकिंग होती है और ई-सिगरेट से वेपिंग की जाती है। कुल मिलाकर दोनों ही सेहत के लिए हार्मफुल हैं।
क्यों लोग नहीं छोड़ पाते तंबाकू की लत
दरअसल तंबाकू में निकोटिन नाम का एक नशीला पदार्थ होता है, जब आप सिगरेट का धुंआ अंदर ले जाते हैं तब निकोटिन बड़ी तेज़ी के साथ फेफड़े के किनारों में समा जाता है और कुछ ही सेकेंड में सीधे दिमाग तक पहुंच जाता है. वहां इसका संपर्क नर्व सेल यानी तंत्रिका की कोशिका से होता है और इसके असर से डोपमीन नाम का एक केमिकल रिलीज करता है जिससे लोगों को अच्छा महसूस होता है. निकोटिन को दिमाग तक पहुंचने में सिर्फ 10 सेकंड का वक्त लगता है. जिन लोगों में डिप्रेशन की समस्या देखी जाती है, उनमें निकोटिन कम पाया जाता है. यही वजह है कि आपने कई बार डिप्रेसिव लोगों को स्मोकिंग करते हुए देखा होगा. आपको भले ही इसका अंदाज़ा न हो लेकिन दिमाग आपसे ये दोबारा करने को कहता है।
लोगों में तेजी से बढ़ी स्मोकिंग की लत
दरअसल, भारत में तंबाकू का इस्तेमाल सिर्फ जर्दा या पान मसाला के रूप में ही नहीं होता, बल्कि लोग सिगरेट, हुक्का और सिगार के रूप में भी इसका सेवन करते हैं। पिछले कुछ समय से लोगों में स्मोकिंग की लत तेजी से बढ़ी है और स्मोकिंग करने से फेफड़ों की समस्या के अलावा स्ट्रोक, हार्ट अटैक जैसी समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है। सबसे बड़ी बात ये है कि जिन लोगों को स्मोकिंग की आदत होती है, उन्हें तो नुकसान होता ही है, साथ ही जो लोग स्मोकिंग करते समय उस व्यक्ति के संपर्क में रहते हैं, उन्हें भी उतना ही नुकसान होता है, जितना स्मोकिंग करने वालों को होता है। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे इंडिया, 2016-17 के आंकड़ों पर नजर डालें तो भारत में करीब 26.7 करोड़ युवा तंबाकू का इस्तेमाल करते हैं।
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