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भारत का ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट कैसे चीन की चालबाजी के खिलाफ मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक है ?

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चीन पर हमेशा से ही भारत की सीमा पर अतिक्रमण करने को आरोप लगते रहे हैं। 1962 की जंग में उसने लददाख के एक बड़े हिस्से पर कब्जा भी कर लिया। आज भी वह अपनी विस्तारवादी नीति को पूरा करने में लगा है,लेकिन विश्व की महाशक्ति होने का दंभ भरने वाले चीन की कमजोर नस को भारत ने अब ठीक से पकड़ लिया है। ये कमजोर नस दरअसल वो जगह है जहां अगर भारत अपना पहरा कड़ा कर दे तो चीन की इकोनामी तो धराशाई होगी ही बल्कि हिंद महासागर में भी वह कुछ नहीं कर सकेगा। दरअसल मोदी सरकार रणनीतिक और  आर्थिक रूप से बेहद अहम जिस ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर चुकी है। उसके पूरा होने से भारत एक तीर से कई निशाने लगा सकेगा। साथ ही चीन के किसी तरह की गुस्ताखी करने पर उसका हुक्का पानी बंद करने का भी इंतजाम कर देगा। दरअसल यही वो प्रोजेक्ट है। जिसे लेकर  चीन सबसे ज्यादा परेशान है। क्या है इस प्रोजेक्ट की पूरी कहानी और रणनीतिक व आर्थिक रूप से इसके क्या मायने  हैं जानते हैं। 

 

चीन की बेहद महत्वाकांक्षी नीति है जिसे वो स्ट्रिंग ऑफ़ पल्र्स कहता है। चीन पाकिस्तान इकोनामिक कोरीडोर भी इसी का हिस्सा है। चीन की इसी नीति के जवाब में इंडिया ने इंडियन नेकलेस ऑफ़ डायमंड रणनीति पर काम शुरू किया है। और ये नेकलेस ऑफ़ डायमंड हैं अंडमान निकोबार द्वीप समूह। जिसके ग्रेट निकोबार द्वीप के डेवलपमेंट का। एक तरफ जहां चीन अपने आर्थिक हितों के लिए पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट के साथ श्रीलंका और मालद्वीव में भी पोर्ट विकसित करने का दांव चल रहा है। वहीं भारत के इस प्रोजेक्ट की जो लोकेशन है वो सबसे अहम है। 

 

दरअसल कुल 24 बंदरगाहों के साथ 450 मील समुद्री क्षेत्र में फैला ये द्वीप हिंद महासागर क्षेत्र में खासा अहम है। द्वीप श्रृंखला का यह सबसे उत्तरी प्वाइंट म्यांमार से केवल 22 समुद्री मील की दूरी पर है।  जबकि सबसे दक्षिणी प्वाइंट इंडोनेशिया से केवल 90 समुद्री मील दूर है और मलक्का जलसंधि मार्ग के गेट वे के तौर पर है। 

 

इसे मैरीटाइम सिल्क रूट माना जाता है। जहां से हर साल 94 हजार पोत गुजरते हैं। चीन जोकि विश्व के सबसे बड़े आयल इंपोर्ट करने वाले देशों में शामिल है। उसका 80 से 90 फीसदी तेल इसी रूट आता है।

 

 इसके साथ ही अफ्रीकी और यूरोपीय देशों में ज्यादातर एक्सपोर्ट करने का मुख्य रास्ता भी यही है। 

 

ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट में क्या क्या करेगा भारत- 

इसमें ग्रीनफील्ड शहर प्रस्तावित किया गया है] जिसमें अंतर्राष्ट्रीय कंटेनर ट्रांस-शिपमेंट टर्मिनल (आईसीटीटी)। ग्रीनफील्ड अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा और पाॅवर प्लांट का निर्माण शामिल है।

बंदरगाह को इंडियन नेवी नियंत्रित करेगी। जबकि हवाई अड्डे के दोहरे आर्मी और सिविल परपज के साथ ही टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए भी काम में लाया जाएगा। 

द्वीप के दक्षिण-पूर्वी और दक्षिणी कोस्ट के साथ-साथ कुल 166-1 वर्ग किमी. की पहचान 2 किमी. और 4 किमी. के बीच चैाड़ाई वाली कोस्टल लाइन के साथ परियोजना के लिये की गई है।

करीब 130 वर्ग किमी. के जंगलों को डायवर्जन के लिये मंजूरी दी गई है] जहाँ 9-64 लाख पेड़ों के काटे जाने की संभावना है।

 

प्रोजेक्ट के इकोनामिक फायदे 

  

ग्रेट निकोबार कोलंबो से दक्षिण-पश्चिम और पोर्ट क्लैंग व सिंगापुर से दक्षिण-पूर्व में बराबर दूरी पर है इसके अलावा पूर्व-पश्चिम अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग कॉरिडोर के करीब स्थित है] जिसके माध्यम से दुनिया के शिपिंग बिजनेस का एक बहुत बड़ा हिस्सा संचालित होता है।

प्रस्तावित आईसीटीटी संभावित रूप से इस रूट पर जाने वाले मालवाहक जहाजों के लिये एक केंद्र बन सकता है।

नीति आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक प्रपोज्ड बंदरगाह कार्गो ट्रांसशिपमेंट में एक अहम प्लेयर बनकर ग्रेट निकोबार को रीजनल और ग्लोबल मैरीटाइम इकोनामी समुद्री में अपना रोल बढ़ाने में मदद करेगा। 

 

रणनीतिक रूप से कितना अहम 

 

हिंद महासागर में ये इलाका चीन के लिए भारत का एक बड़ा चोक प्वाइंट है।चीन लगातार अपनी समुद्री ताकत बढ़ा रहा है दक्षिणी चीन सागर में उसकी मनमानी किसी से छिपी नहीं है। अब उसका ध्यान हिंद महासागर की ओर है जहां हमेशा से इंडियन नेवी का दबदबा रहा है। इस चोक प्वाइंट के जरिए भारत  चीन के मसंूबों पर पानी फेर सकता है। भारत के ग्रेट निकोबार प्रोजेक्ट चीन से सामरिक और आर्थिक रूप से बड़ा झटका लगेगा। अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर अभी एयरफोर्स और नेवी का काफी बड़ा स्टेब्लिशमेंट है। साल 2019 में पीएम नरेंद्र मोदी ने पहली बार द्वीप का दौरा किया था, जिसके एक साल बाद यहां एक विशेष सैन्य बुनियादी ढांचा की विकास योजना बनाई गई थी। यहां शिबपुर में नेवी के हवाई स्टेशनों आईएनएस कोहासा और कैंपबेल बे में आईएनएस बाज के रनवे को बढ़ाया जा रहा है। एक बार रनवे के चालू हो जाने के बाद भारतीय नौसेना अपने पी-8 समुद्री निगरानी और टोही विमानों के आपरेट कर सकेगी। इसके बन जाने से यहां भारतीय सैनिकों, ज्यादा युद्धपोतों के साथ-साथ ड्रोन को तैनात करने में मदद मिलेगी। 

चीन के परेशान होने की असल वजह 

 भारत के इस कदम से चीन की हाइड्रोकार्बन आपूर्ति में बड़ी रुकावट आ सकती है। जिससे चीन की इकोनामी को नुकसान होगा। इससे पहले चीन ने भारत को परेशान करने के लिए श्रीलंका, पाकिस्तान, मालदीव और होर्मुज की समुद्री सीमा को यूज करने का प्रयास किया था, लेकिन भारत से उस मंसूबे को पूरा नहीं होने दिया। 

पाकिस्तान में ग्वादर पोर्ट पर चीन की पकड़ को बेअसर करने के लिए भारत ने ईरान में चाबहार बंदरगाह को सील कर दिया। जो इस क्षेत्र में एक काउंटरबैलेंस के रूप में काम करता है। ये पोर्ट एक साथ भारत को होर्मुज की समुद्री सीमा की निगरानी करने में मदद करता है,जो दुनिया में तेल के परिवहन के लिए सबसे व्यस्त समुद्री रास्ता है।

 

इस प्रोजेक्ट के लिए मोदी सरकार ने 75 हजार करोड़ रुपए के फंड की मंजूरी दी है। जिसमें एयरफोर्स, नेवी के कई प्रोजेक्ट के साथ ही पोर्ट डेवलपमेंट,पाॅवर प्लांट स्थापित किए जाएंगे। हालांकि इस प्रोजेक्ट को लेकर पर्यावरणविदों ने भी गहरी चिंता जाहिर की है। क्योंकि इसके कारण लाखों पेड़ तो कटेंगे ही साथ ही समुद्री जीवों पर भी असर पड़ेगा,लेकिन इन सबके बीच पर्यावरण मंत्रालय ने इसे मंजूरी दे दी है।  

 

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