G20 Summit में भारत ने बड़ा ऐलान किया है! जानिए भारत-मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर के बारे में, जिसमें भारत के साथ कई अन्य महत्वपूर्ण देश शामिल हैं
भारत मंडपम... दुनिया के एक शानदार G-20 आयोजन का गवाह बना...ये अब तक का सबसे सफल समिट बन गया है. पिछले समिट की तुलना में इस बार सबसे ज्यादा काम हुआ है. वहीं भारत ने तीन बड़ी कामयाबी हासिल की है.
पहली- इंडिया, मिडिल ईस्ट-यूरोप इकोनॉमिक कॉरिडोर डील
दूसरी- नई दिल्ली घोषणापत्र पर सर्वसम्मति बनी
तीसरी- भारत ने अफ्रीकी यूनियन को नए स्थायी सदस्य के रूप में G-20 में शामिल किया.
अब ये ग्रुप G-21 हो गया है. इन तीनों में सबसे अहम इंफ्रास्ट्रक्चर डील मानी जा रही है. जिसे Bharat, America, UAE, Saudi Arab, France, Germany, Italy और European Union ने मिलकर की है. इन देशों ने इस डील पर सहमति जताते हुए मुहर लगाई है. इन देशों के बीच एक रेल कॉरिडोर का निर्माण किया जाएगा. कुल 8 देश मिलकर इस रेल कॉरिडोर को बनाएंगे. इसे चीन के दो प्रोजेक्ट्स का जवाब माना जा रहा है. जिसके बारे में आगे आपको बताते हैं. PM मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन, सऊदी अरब के मोहम्मद बिन सलमान और EU के नेताओं के साथ मेगा इंफ्रास्ट्रक्चर डील पर MoU किया.
इस नए कॉरिडोर को चीन की बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव यानी BRI, चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या CPEC एक लिहाज से CPEC को BRI का ही हिस्सा माना जाता है. उसके विकल्प के तौर पर माना जा रहा है.
इसमें भारत-मिडिल ईस्ट समुद्री मार्ग से जुड़ेंगे. कॉरिडोर के साथ-साथ तेल-गैस पाइप साइन और ऑप्टिकल फाइबर लाइन भी डाली जाएगी. इस पहल में दो अलग-अलग गलियारे शामिल होंगे- पूर्वी गलियारा जो भारत को पश्चिम एशिया/मध्य पूर्व से जोड़ता है और उत्तरी गलियारा जो पश्चिम एशिया या मध्य पूर्व को यूरोप से जोड़ता है. आसान भाषा में कहें तो ये गलियारा भारत को मिडिल ईस्ट (मध्य पूर्व) और आखिर में यूरोप से जोड़ेगा.
क्या होगा फायदा ?
अब मिडिल ईस्ट के देश भारत और यूरोप के साथ न सिर्फ रेल बल्कि बंदरगाह के जरिए भी सीधे जुड़ेंगे.
ये प्रोजेक्ट UAE, सऊदी अरब, जॉर्डन और इजराइल सहित पूरे मिडिल ईस्ट के रेल और शिपिंग फैसिलिटीज को कनेक्ट करेगा.
इससे भारत और यूरोप के बीच व्यापार में 40% तक का इजाफा होगा.
साथ ही ये मौजूदा विकल्प के मुकाबले तेज और सस्ता ट्रॉजिट विकल्प देगा, इसे ग्रीन कॉरिडोर के रूप में विकसित किया जाएगा.
गल्फ कंट्रीज के बीच के रेलवे नेटवर्क को समुद्री मार्ग से दक्षिण एशिया से जोड़ा जाता है तो इससे भारत तक तेजी और कम लागत में तेल और गैस पहुंचेगी. इस कनेक्टिविटी से खाड़ी देशों में रहने वाले भारत के 80 लाख लोगों को भी फायदा होगा.
अब ये प्रोजेक्ट कई उन धारणाओं को भी तोड़ने का काम करता है जो पहले कई सालों तक विकास परियोजनाओं के बीच बाधा बनकर बैठी थीं. इस डील पर PM मोदी से लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन का बयान सामने आया,
PM मोदी ने कहा- ये गलियारा 'भारत, पश्चिम एशिया और यूरोप के बीच आर्थिक एकीकरण का प्रमुख माध्यम' होगा, जो वैश्विक कनेक्टिविटी और सतत विकास में एक नया अध्याय पेश करेगा.
बाइडेन ने भी विश्वास जताया कि ये परियोजना रोजगार सृजन को बढ़ावा देने और विश्व स्तर पर खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है.
इस नए इकोनॉमिक कॉरिडोर पर इटली की प्रधानमंत्री ने कहा कि नया आर्थिक गलियारा वैश्विक इंटर कनेक्शन को जोड़ने में मील का पत्थर है. इससे इकोनॉमिक ग्रोथ को इजाफा मिलेगा.
सबसे बड़ी बात ये कि इसके जरिए अरब देशों में चीन का प्रभाव कम होगा. क्योंकि इस प्रोजेक्ट में डेटा रेल, बिजली और हाइड्रोजन पाइपलाइन को शामिल किया गया है. इसके तहत समुद्र में तार भी बिछाया जाएगा. अब आपको समझाते हैं कि खाड़ी देशों में भारत की भागीदारी से तैयार होने वाला रेल नेटवर्क कैसे चीन के BRI प्रोजेक्ट को बर्बाद करने वाला है.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक
अरब देशों में चीन का प्रभाव होगा कम
चीन का BRI ईस्ट एशिया को यूरोप से जोड़ने का प्लान है, जबकि रेल नेटवर्क के जरिए अरब और खाड़ी देशों को यूरोप तक कनेक्ट किया जाएगा जिससे भारत समंदर के रास्ते जुड़ेगा.
दूसरे देशों को कर्ज नीति के ज़रिए गुलाम बनाने की चीन की कोशिश पर चोट पहुंचेगी, तो वहीं अरब देशों से यूरोप तक भारत के लिए कारोबार आसान हो जाएगा. व्यापार भी कई गुना बढ़ेगा.
BRI से कई देश छुटकारा पाना चाहते हैं. रेल नेटवर्क में कई तेल उत्पादक देश जुड़ेंगे.
खाड़ी देशों में BRI को झटका लगेगा. खाड़ी देशों में भारत और अमेरिका का प्रभाव बढ़ेगा.
BRI के बारे में खास बातें
BRI की ऑफिशियल वेबसाइट के मुताबिक दुनिया के 140 देश इस इनिशिएटिव का हिस्सा बन चुके हैं. BRI चीन के इतिहास की सबसे महत्वकांक्षी योजना है. इसके तहत 'ड्रैगन' विश्व भर में अपना प्रभुत्व कायम करना चाहता है.दक्षिण-पूर्व एशिया से लेकर पू्र्वी यूरोप और अफ्रीका तक कुल 71 देश बेल्ट एंड रोड परियोजना का हिस्सा हैं. इसमें विश्व की आधी आबादी और एक चौथाई जीडीपी शामिल है.चीनी की ये परियोजना एक ट्रिलियन की है.
आपको बता दें भारत और अमेरिका मिलकर चीन की विस्तारवादी नीतियों पर लगाम कस रहे हैं. खैर इस प्लान से चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग बेचैन हो सकते हैं, बीजिंग में तो खलबली है ही क्योंकि नई दिल्ली ने G20 के मंच से चीन पर कूटनीतिक चोट का कोई मौका नहीं छोड़ा है. अब आगे इस कॉरिडोर का क्या फायदा होगा. ये देखने वाली बात होगी.
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