Delhi-NCR में दमघोंटू एयर पॉल्यूशन (Air Pollution) से हाल-बेहाल हैं। आसमान में धुएं की धुंध छाई है। जिससे सांस लेना मुश्किल हो गया है। इस जहरीले धुएं से बड़ी संख्या में लोग बीमार होकर अस्पताल में पहुंच रहे हैं। इसकी बड़ी वजह खेतों में धान की पराली जलाना भी है। सफर के आंकड़े बताते हैं कि पिछले साल नवंबर में ही दिल्ली में पॉल्यूशन में पराली जलाने की हिस्सेदारी 38 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। दिल्ली-एनसीआर के लोग लंबे समय से ऐसे हालात झेल रहे हैं। इससे निपटने के लिए गाड़ियों के लिए ऑड-ईवन सिस्टम (Odd-Even System) जैसे कदम उठाए गए हैं। लेकिन, हालात जस के तस बने हुए हैं। पंजाब और हरियाणा को भी पराली के नाम पर काफी कुछ सुनना पड़ता है। लेकिन, ऐसा लग रहा है कि अब इस समस्या का समाधान जल्द मिल सकता है।
दरअसल, पराली जलाने में किसानों को बहुत खुशी महसूस हो, ऐसी कोई बात नहीं है। पहले धान और गेहूं की फसल हंसिये से काटी जाती थी। लोग पौधों को बहुत निचली जगहों से काटते थे और पुआल का इस्तेमाल पशुओं के चारे के लिए किया जाता था। लेकिन, इस तरह से फसल काटने में काफी समय लग जाता था। कटाई करने वाली मशीनों के आने से सुविधा तो बढ़ी, लेकिन ये मशीनें बालियों के करीब से कटाई करती हैं, डंठल का एक बड़ा हिस्सा खेत में ही रह जाता है। इसके निपटारे की कोई सस्ती व्यवस्था न होते देख किसान इसे खेतों में ही जला देते हैं। पराली सहित फसलों के इस तरह के अवशेषों यानी बायोमास का दूसरी जगहों पर इस्तेमाल करने की छिटपुट कोशिशें लंबे समय से हो रही हैं। इससे बिजली बनाने के लिए भी कदम उठाए गए हैं, लेकिन इसमें लागत ज्यादा आती है। हालांकि, पिछले कुछ समय से कंपनियों ने अपनी दिशा बदल दी है। अब वो बिजली के बजाय बायोमास से बायोफ्यूल बनाने की राह पर हैं। इसके लिए वो कंप्रेस्ड बायोगैस (सीबीजी) प्लांट लगा रहे हैं। इसके लिए एक बड़ा नाम सामने आया है और वो है रिलायंस इंडस्ट्रीज का।
5 सालों में 100 सीबीजी प्लांट का ऐलान
हाल ही में रिलायंस की एनुअल जनरल मीटिंग में इसके चेयरमैन मुकेश अंबानी ने ऐलान किया था कि कंपनी अगले 5 सालों में 100 सीबीजी प्लांट लगाएगी। इनमें खेती-बाड़ी से निकलने वाले 55 लाख टन अवशेष का इस्तेमाल किया जाएगा। मुकेश अंबानी ने एजीएम में बताया था कि रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक साल पहले ही बायोगैस सेक्टर में कदम रखा था और अब वो पराली से ईंधन बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनी बन गई है। आरआईएल ने अपना पहला सीबीजी प्लांट उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में लगाया था। इसके लिए उसने अपनी जामनगर रिफाइनरी में कंप्रेस्ड बायोगैस की स्वदेशी टेक्नोलॉजी डिवेलप की। अंबानी ने कहा, ‘हमने रिकॉर्ड 10 महीने में यूपी के बाराबंकी में एक प्लांट लगाया है। हम तेजी से पूरे भारत में 25 और प्लांट्स और लगाएंगे। हमारा टारगेट अगले 5 सालों में 100 से ज्यादा प्लांट लगाने का है। इन प्लांट्स में 55 लाख टन कृषि अवशेष और जैविक कचरा खप जाएगा। इससे कार्बन उत्सर्जन में करीब 20 लाख टन की कमी आएगी और सालाना 25 लाख टन जैविक खाद का उत्पादन होगा।’
बायोएनर्जी प्रोजेक्ट्स पर काम तेज
हालांकि ये घोषणा इस मायने में अहम है कि भारत में करीब 23 करोड़ टन गैर-मवेशी बायोमास यानी पराली का उत्पादन होता है और इसका अधिकांश हिस्सा जला दिया जाता है। अगर रिलायंस इंडस्ट्रीज जैसी कंपनी जल्द ही 25 और सीबीजी प्लांट लगाने जा रही है, तो इसका मतलब है कि वो बहुत अधिक मात्रा में पराली की खपत करने वाले हैं। अंबानी ने एजीएम में कहा था, ‘ये प्रदूषण पराली जलाने से होता है। इसे ध्यान में रखते हुए हमने बायोएनर्जी प्रोजेक्ट्स पर काम तेज कर दिया है।‘
अडाणी ने भी बायोफ्यूल पर बढ़ाया फोकस
रिलायंस के अलावा उद्योगपति गौतम अडाणी ने भी बायोफ्यूल पर फोकस बढ़ाया है। उनकी कंपनी अडाणी टोटल गैस की योजना भी 10 कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट लगाने की है। द इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अडाणी टोटल गैस अगले पांच सालों में 5 सीबीजी प्लांट लगाने की योजना बना रही है। इसके बाद बाकी 5 प्लांट लगाए जाएंगे। फिलहाल कंपनी का एक प्लांट उत्तर प्रदेश में निर्माणाधीन है। इन 10 सीबीजी प्लांट को लगाने में अडाणी टोटल गैस करीब 2500 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। अडाणी टोटल के हर प्लांट में रोजाना 250 से 500 टन फीडस्टॉक प्रोसेस करने की क्षमता होगी। हर प्लांट से डेली 10 से 20 टन सीबीजी प्रोडक्शन किया जाएगा।
बायोफ्यूल क्या है ?
पेड़-पौधों, अनाज, भूसी, शैवाल और फूड वेस्ट से निकलने वाले ज्वलनशील तरल या गैस को बायोफ्यूल्स या जैव ईंधन कहा जाता है। इसकी सबसे खास बात ये होती है कि इससे प्रदूषण नहीं होता है। बायो फ्यूल 3 तरह के होते हैं। पहला एथेनॉल। ये एक तरह का एल्कोहल होता है, जो गन्ने से बनता है। एथेनॉल को पेट्रोल में मिलाया जा रहा है। दूसरा बायो डीजल। बायोडीजल को ऐसे पेड़ पौधों से बनाया जाता है तो तिलहन की कैटेगरी के होते हैं। जैट्रोफा इसका एक अच्छा उदाहरण है। इससे तेल बनाया जाता है और फिर उससे बायोडीजल बनाया जाता है। बायोडीजल का इस्तेमाल डीजल में मिक्सिंग के लिए होता है, जिससे बड़े-बड़े ट्रक चलते हैं और तीसरा बायोजेट फ्यूल। बाकी दोनों फ्यूल की तरह ही बायोजेट फ्यूल भी अभी मिक्सिंग के ही काम आता है। ये जैट्रोफा जैसे पौधों से बनता है, जिसे एविशन टर्बाइन फ्यूल में मिक्स किया जाता है। अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी इसका इस्तेमाल करते हैं और भारत में भी करीब 25 फीसदी तक बायोजेट फ्यूल मिक्स कर के हवाई जहाज उड़ाने का ट्रायल हो चुका है।
बता दें भारत में बायोगैस का उत्पादन 1897 में शुरू हुआ, जब ब्रिटिश सिविल इंजीनियर चार्ल्स जेम्स ने पहला बायोगैस प्लांट लगाया था। तब वो मुंबई के माटुंगा में होमलेस लीपर असाइलम के ड्रेनेज सिस्टम पर काम कर रहे थे। वहां से बायोगैस का मामला अब कंप्रेस्ड बायोगैस तक पहुंच गया है। सीबीजी काफी हद तक सीएनजी की तरह है। सीबीजी के उत्पादन में पराली सहित बायोमास का इस्तेमाल किया जाता है। सीबीजी प्लांट्स की संख्या बढ़ने से दिल्ली-एनसीआर समेत देश के कई इलाकों में पराली जलाने से होने वाला प्रदूषण कम हो जाएगा।
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