दिल्ली के पॉल्यूशन से आजकल कोई बेखबर नहीं है, AQI 500 के पार है। इस डेंजरस लेवल पर पहुंच चुके पॉल्यूशन से राहत दिलाने की कोशिशें लगातार जारी हैं और इसी सिलसिले में राजधानी में आर्टिफिशियल रेन यानी कृत्रिम बारिश कराने की तैयारी की जा रही है। दिल्ली में 20 और 21 नवंबर को पहली बार कृत्रिम बारिश हो सकती है। इन दो दिनों में राजधानी में हल्के बादलों की संभावना भी है। इसलिए ट्रायल की तैयारियां इन दो दिनों के लिए की जा रही हैं। इसके लिए दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय और बाकी अधिकारियों ने आईआईटी कानपुर की टीम के साथ दूसरी मीटिंग की। इस बारे में पहली मीटिंग 12 सितंबर को हुई थी। दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय के मुताबिक, जिसमें दिल्ली सरकार ने आईआईटी कानपुर से गुजारिश की थी कि सर्दियों के मौसम में प्रदूषण के दौरान कम बारिश को लेकर एक प्लान तैयार करें और प्रस्ताव सरकार के सामने रखें। क्योंकि आईआईटी कानपुर ने जुलाई में मानसून के दौरान कृत्रिम बारिश का ट्रायल किया है, ऐसे में सरकार ने प्रस्ताव मांगा था कि सर्दियों के दौरान कृत्रिम बारिश किस तरह करवाई जा सकती है? इसी को लेकर दूसरी मीटिंग बुलाई गई थी।
हालांकि IIT कानपुर ने दिल्ली सरकार को पूरा प्लान सौंपा है और अब दिल्ली सरकार सुप्रीम कोर्ट को इसकी जानकारी देगी। सुप्रीम कोर्ट से दिल्ली सरकार कृत्रिम बारिश कराने में केंद्र सरकार का सहयोग दिलाने की गुजारिश करेगी। हालांकि, बीते दिनों दिल्ली में पॉल्यूशन की कंडीशन्स को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी सवाल खड़े किए थे।
क्या है आर्टिफिशियल रेन
आर्टिफिशल बारिश केमिकल एजेंट्स जैसे सिल्वर आयोडाईड, ड्राई आइस और साधारण नमक के छिड़काव से कराई जाती है। आसमान में ये छिड़काव एयरक्राफ़्ट की मदद से किया जाता है। जिससे सिल्वर आयोडाइड हवा और मौजूद बादलों के संपर्क में आता है। सिल्वर आयोडाइड बर्फ़ की तरह होती है, जिससे नमी वाले बादलों में पानी की मात्रा बढ़ती है और तेज़ स्पीड से बादल बनने लगते हैं। इन्हीं बादलों से बारिश होती है। इसे क्लाउड सीडिंग भी कहा जाता है।
साइंटिस्ट्स के अकॉर्डिंग, इस प्रक्रिया के लिए प्राकृतिक बादलों का मौजूद होना सबसे जरूरी है। नवंबर में राजधानी में बादलों की मौजूदगी सबसे कम रहती है। इसकी वजह से क्लाउड सीडिंग में समस्या रह सकती है। अभी तक इसके ज्यादा एविडेंस नहीं हैं कि इस तरह की बारिश प्रदूषण कितना कम करेगी। इस तरह की बारिश करवाने में एक बार में करीब 10 से 15 लाख रुपये का खर्च आता है। ये प्रयोग अब तक करीब 53 देशों में हो चुका है।
कानपुर में इस तरह के कुछ ट्रायल हुए हैं, जो छोटे एयरक्राफ्ट से किए गए। इनमें से कुछ में बारिश हुई तो कुछ में हल्की सी बूंदाबांदी। इससे पहले साल 2019 में भी कृत्रिम बारिश की तैयारियां की गई थीं। लेकिन बादल की मौजूदगी के अभाव और इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन की मंजूरी भी मुद्दा रही।
कैसे होती है आर्टिफिशियल रेन
- वॉर्ड जहाज के जरिए सिल्वर आयोडाइड के हाई प्रेशर सिल्वर आयोडाइड के हाई प्रेशर वाले घोल का छिड़काव करना होता है। तय इलाके में जहाज हवा की उल्टी दिशा में चलाया जाता है।
- सही बादल से सामना होते ही बर्नर चालू कर दिए जाते हैं। पानी जीरो डिग्री सेल्सियस तक ठंडा हो जाता है, जिससे हवा में मौजूद पानी के कण जम जाते हैं।
- कण इस तरह से बनते हैं, जैसे वो कुदरती बर्फ हो। इसके लिए बैलून, विस्फोटक रॉकेट का भी प्रयोग किया जाता है। इसके बाद बारिश होती है।
अगर बात करें आर्टिफिशियल रेन के इतिहास की, तो साल 1945 में आर्टिफिशियल बारिश को सबसे पहली बार विकसित किया गया था। भारत में क्लाउड सीडिंग का पहला प्रयोग 1951 में हुआ था। भारतीय मौसम विभाग के पहले महानिदेशक एस के चटर्जी जाने माने बादल विज्ञानी थे। उन्हीं के नेतृत्व में भारत में इसके प्रयोग शुरू हुए थे। उन्होंने तब हाइड्रोजन गैस से भरे गुब्बारों में नमक और सिल्वर आयोडाइड को बादलों के ऊपर भेजकर कृत्रिम बारिश कराई थी। भारत में क्लाउड सीडिंग का प्रयोग सूखे से निपटने और डैम का वाटर लेवल बढ़ाने में किया जाता रहा है। साल 1951 में ही टाटा फर्म ने वेस्टर्न घाट में कई जगहों पर इस तरह की बारिश कराई थी। साल 1973 में आंध्र प्रदेश में सूखे से निपटने के लिए कृत्रिम बारिश कराई गई। हालांकि इसके बाद भी प्रयोग होते रहे। साल 1993 में तमिलनाडु और साल 2003-04 में कर्नाटक में आर्टिफिशियल रेन कराई गई। इसके बाद साल 2008 में चीन ने बीजिंग ओलम्पिक्स के दौरान 21 जहाजों से क्लाउड सीडिंग का प्रयोग किया था।
गोपाल राय ने बताया कि अगर सुप्रीम कोर्ट से हमें मंजूरी मिल जाती है तो हम उनसे कई तरह की परमिशन लेने में भी मदद मांगेंगे। इसके लिए राज्य के अलावा केंद्र सरकार से भी कई तरह की परमिशन लेनी होती है। हमें लगता है कि इस परमिशन को लेने के लिए 20 नवंबर तक का समय पर्याप्त होगा और 20-21 नवंबर तक राजधानी में कृत्रिम बारिश का पहला पायलट हो सकता है।
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