आत्मनिर्भर की ओर बढ़ते डिफेंस सेक्टर में एक ओर Submarine शामिल होगी. जो पानी के अंदर खुद से चलने वाली यानी रोबोटिक Submarine है. इसमें हाईटेक टेक्नोलॉजी का Use किया गया है. ताकि समुद्र में दुश्मन किसी भी तरह की साजिश को रचे तो पता लग जाए. दुश्मन की हर नापाक चाल से पहले सूचना Submarine से मिल जाएगी. जैसे-जैसे टेकनोलॉजी हाईटेक हो रही है वैसे-वैसे इंडियन नेवी की भी नजरें भविष्य पर है. नेवी ने अगले 10 साल में अलग-अलग साइज और टाइप के ऑटोनॉमस एरियल, सरफेस और अंडरवाटर प्लेटफॉर्म को शामिल करने का प्लान बनाया है.
समुद्र के अंदर निगरानी और जासूसी करने के लिए पहला ऑटोनॉमस अंडरवाटर व्हीकल यानी AUV लॉन्च किया जा रहा है. मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस के अंडर में एक पब्लिक सेक्टर Garden Reach Shipbuilders and Engineers यानी GRSE ने अपने ट्विटर हैंडल पर बताया कि पूरी तरह से स्वदेशी AUV को बंगाल की खाड़ी में उतारा जाएगा. ये कंपनी कोलकाता में है.
According to India Today News
समुद्री निगरानी रीयल टाइम में की जा सकेगी.
इस काम में ये AUV या ड्रोन मदद करते हैं.
भारत में बना AUV बेहद किफायती है और हाईटेक है.
ये समुद्र के अंदर लंबे समय तक खुद-ब-खुद निगरानी करता है.
इससे बड़े जहाजों, तकनीकों, यंत्रों और जवानों को लगाने का खर्च बच जाएगा.
ये रीयल टाइम मॉनिटरिंग के लिए फायदेमंद है. इसके अंदर एडवांस सेंसर्स लगे हैं.
कटिंग एज कैमरा लगे हैं. रडार हैं. साथ ही इंफ्रारेड टेक्नोलॉजी लगी है.
जो इसे हर तरह की निगरानी और जासूसी के लिए Suitable बनाता है.
अभी समुद्र की निगरानी या तो जहाजों से होती है या फिर विमानों से होती है.
AUV के लॉन्च होने के बाद नौसेना, कोस्टगार्ड इन सबको निगरानी और जासूसी करने में आसानी होगी.
Autonomous Unmanned Vessels से लेकर नई जेनरेशन के कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम, सॉफ्टवेयर-डिफाइंड रेडियो और ऐडवांस्ड डेटा लिंक्स भी डंडियन नेवी तैयार कर रही है.
इंडियन नेवी ने साइबर, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), बिग डेटा एनालिटिक्स और अन्य कटिंग-एज टेक्नोलॉजी का जमकर इस्तेमाल शुरू किया है. नवंबर में मुंबई से गोवा के बीच ISR यानी इंटेलिजेंस, सर्विलांस और रीकानिसन्स से लैस अपनी पहली ऑटोनॉमस बोट का टेस्ट होने वाला है.
इसे नेवी के वेपंस एंड इलेक्ट्रॉनिक्स सिस्टम इंजिनियरिंग इस्टैब्लिशमेंट यानी WESEE और भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड BEL ने डिवेलप किया है.15 मीटर लंबी नाव का ये पहला सी ट्रायल होगा.
इन देशों में भी इस्तेमाल
अमेरिका और चीन जैसे देश अनमैन्ड नावों पर काफी समय से प्रयोग कर रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा समय तक सतह और पानी के नीचे रहने की क्षमता वाली ये नावें काफी सस्ती पड़ती हैं. हाइपरसोनिक और डायरेक्टेड-एनर्जी वेपंस की तरह इनसे युद्ध का तरीका बदल सकता है.
खतरे को भांपने की भी क्षमता
इंडियन नेवी जल्द ही स्वदेशी कॉम्बेट मैनेजमेंट सिस्टम यानी CMS की टेस्टिंग शुरू करेगी. ये किसी युद्धपोत का 'नर्व सेंटर' बनेगा. इसमें रडार, सोनार समेत सभी सेंसर्स और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम को इंटीग्रेट किया जाएगा.
सूत्रों के मुताबिक, 'इन-बिल्ट AI एल्गोरिदम के जरिए CMS 24-29 तेजी से खतरे को भांप सकता है, फिर यह युद्धपोत को सुझाता है कि कौन सा हथियार चलाना चाहिए. ये सभी युद्धपोतों के वर्तमान CMS से बात भी कर सकता है'
Source- TOI
अब वो दिन दूर नहीं है जब समुद्री रक्षा के लिए देश को नया सिपहसालार मिल जाएगा. जो दुश्मनों की हर नापाक चाल पर नजर रखेगा.
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