शीतकालीन सत्र से संसद खामोश है लेकिन सियासी गलियारों में संसद पर संग्राम मचा हुआ है क्योंकि बीजेपी आरोप लगा रही है कि TMC सांसद महुआ मोइत्रा ने पैसे लेकर सवाल पूछे हैं. ऐसा नहीं कि ये पहली बार हुआ है इससे पहले भी 2005 में कैश के बदले सवाल पूछने के आरोपों के चलते 11 सांसदों को अपना सांसदी गंवानी पड़ी, जिसके बाद देश की सियासत में काफी गहमागहमी में देखने को मिली थी. हालांकि उस समय बीजेपी ने उस फैसले का विरोध किया था. लेकिन हाल फिलहाल महुआ मोइत्रा कैश के बदले सवाल पर घिरती नजर आ रही है. अह मन में सवाल आता है कि आखिर संसद में सवाल पूछने का प्रोसेस क्या है. कौन थे वो एमपी जो 2005 में कैश फॉर क्वेशन मामले में घिर गए थे.
दरअसल लोकसभा की बैठक का पहला घंटा सवाल पूछने के लिए होता है, जिसे प्रश्नकाल कहा जाता है. इसका संसद की कार्यवाही में खास महत्व होता है. प्रश्न पूछना सांसदों का अधिकार है और इन प्रश्नों के आधार पर ही सरकार को कसौटी पर परखा जाता है. इस दौरान किया जाने वाला हर प्रश्न जिस मंत्रालय के जुड़ा होता है तो उसके मंत्री को उत्तर देना होता है.
अब आता है बेहद जरूरी सवाल, जो कि अभी के महुआ मोइत्रा मामले में भी अहम है, कि आखिर प्रश्न पूछने का तरीका क्या होता है?
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो संसद में प्रश्नों की भी अलग-अलग कैटगरी होती है. अगर किसी सदस्य के प्रश्न को मौखिक उत्तर की कैटगरी में रखा गया है, तो वो सदस्य अपने प्रश्न की बारी आने पर सीट से खड़े होते हैं और अपना प्रश्न पूछते हैं. जैसा आपने अक्सर देखा होगा और संबंधित विभाग के मंत्री उस प्रश्न का उत्तर देते हैं. इसके बाद जिस सदस्य ने प्रश्न पूछा था, वे दो अनुपूरक प्रश्न पूछ सकते हैं. यानी उससे जुड़े हुए बीच में इंट्रेप्ट कर सवाल पूछ सकते हैं.
इसके बाद दूसरे सदस्य जिसका नाम प्रश्न करने वाले सदस्य के साथ शामिल किया गया हो, वे एक अनुपूरक प्रश्न पूछ सकते हैं. इसके बाद सदन के अध्यक्ष उन सदस्यों को एक-एक अनुपूरक प्रश्न पूछने की अनुमति देते हैं, जिनका वो नाम पुकारते हैं. ऐसे सदस्यों की संख्या प्रश्न के महत्व पर निर्भर करती है. इसके बाद अगला प्रश्न पूछा जाता है.
प्रश्न काल के दौरान जिन प्रश्नों के उत्तर मौखिक उत्तर हेतु नहीं पहुंचते हैं उन्हें सदन के पटल पर रखा गया माना जाता है. प्रश्न काल के अंत में यानी तमाम मौखिक उत्तर दिए जाने के बाद, अल्प सूचना प्रश्नों को लिया जाता है और इसी तरह उनके भी उत्तर दिए जाते हैं.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सवाल करने के नियम 'लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम' के अंतर्गत 32 से 54 तक दर्ज हैं. ये नियम अध्यक्ष के लोकसभा के निर्देशों में शामिल निर्देश 10 से 18 के जरिए डॉयरेक्ट होते हैं. प्रश्न पूछने के लिए सांसद पहले निचले सदन के महासचिव को संबोधित एक नोटिस देता है. इस नोटिस में वो जाहिर करता है कि उसे प्रश्न पूछना है. नोटिस में आमतौर पर प्रश्न का पाठ, जिस मंत्री को प्रश्न संबोधित किया गया है उसका आधिकारिक पदनाम, वो तारीख जिस पर उत्तर दिया जाना है और यदि सांसद उसी दिन एक से अधिक प्रश्नों के नोटिस देता है तो उनता वरीयता क्रम भी दर्ज होता है.
सदस्य को किसी भी दिन, मौखिक और लिखित उत्तरों के लिए, कुल मिलाकर प्रश्नों की पांच से अधिक नोटिफिकेशन देने की अनुमति नहीं है. एक दिन में किसी सदस्य से पांच से अधिक प्राप्त नोटिसों पर उस सत्र की अवधि के दौरान उस मंत्री से संबंधित अगले दिन के लिए विचार किया जाता है लोकसभा की नियमावली के अनुसार 'लोकसभा में प्रश्नकाल' में आमतौर पर, किसी प्रश्न की सूचना की अवधि 15 दिन से कम नहीं होती है.
तो ये होता है पूरा प्रोसेस, हालांकि एक बात गौर करने वाली है कि हर सवाल पूछना संसद सदस्यों का अधिकार में नहीं है. किसी व्यक्ति के जुड़े ऐसे सवाल नहीं किए जाते जो उसके चरित्र हनन की ओर ले जाते हैं. अब सवाल उठता है कि महुआ मोइत्रा से पहले कभी ऐसा मामला सामने आया अगर आया भी तो क्या कार्रवाई हुई उन पर, वो भी जानते है.
रिपोर्ट्स के मुताबिक बिजनेसमैन दर्शन हीरानंदानी ने कैश के बदले सांसद महुआ मोइत्रा पर लोकसभा में सवाल पूछने का आरोप लगाया है. जिसके बाद बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिखकर महुआ को सांसद पद से निलंबित करने का अनुरोध किया है. पत्र में 2005 की एक मिसाल का भी जिक्र किया गया है. जिसके बाद लोकसभा अध्यक्ष ने मामला एथिक्स कमेटी को भेज दिया है जो कि इस मामले में फैसला लेगी.
एथिक्स कमेटी को आसान भाषा में कहें तो ये कमेटी संसद में अनुशासन और मर्यादा बनाए रखने के लिए काम करती है. वर्तमान में एथिक्स कमेटी के अध्यक्ष बीजेपी के विनोद कुमार सोनकर है हालांकि एथिक्स कमेटी में कुल 15 सदस्य हैं, जिसमें 7 बीजेपी के हैं. अब जानते हैं कि आखिर 2005 में क्या हुआ था
दरअसल 2005 की घटना में 11 सांसद हाथ में पैसे लेते दिखे थे. एक निजी चैनल ने 12 दिसंबर 2005 को ये वीडियो जारी किया था. जिसमें देखा गया था कि वे संसद में अपने मनमुताबिक सवाल पूछने के लिए नकद पैसे ले रहे थे.
इनमें बीजेपी के 6 सांसद और मायावती की पार्टी बीएसपी के 3 सांसद आरोपी थे. इसके अलावा एक कांग्रेसी और एक लालूप्रसाद यादव की पार्टी राजद से सांसद थे. इनमें बीजेपी के वाईजी महाजन, छत्रपाल सिंह लोढ़ा, अन्नासाहेब एमके पाटिल, चंद्र प्रताप सिंह, प्रदीप गांधी, सुरेश चंदेल, बसपा के पास नरेंद्र कुमार खुशवा, लालचंद्र कोल और राजा रामपाल थे. अन्य दो कांग्रेस के रामसेवक सिंह और राजद के मनोज कुमार थे. इनमें लोढ़ा राज्यसभा के सदस्य थे. बाकी लोकसभा के थे.
उस समय लोकसभा के अध्यक्ष बंगाल से सीपीएम सांसद सोमनाथ चट्टोपाध्याय थे. वीडियो सामने आते ही जांच कमेटी गठित कर दी गई. समिति की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद पवनकुमार बंसल ने की. समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट देने के बाद प्रणब मुखर्जी ने इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया. वो उस समय संसद के निचले सदन में कांग्रेस पार्टी के नेता थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह यही प्रस्ताव राज्यसभा में लेकर आये. घटना सामने आने के 10 दिन के भीतर लोकसभा और राज्यसभा में वोटिंग के जरिए 11 सांसदों को निष्कासित कर दिया गया था.
हालांकि, बीजेपी ने वोटिंग का बहिष्कार किया था. उस समय विपक्ष के नेता लालकृष्ण आडवाणी ने वोटिंग को ‘कंगारू कोर्ट’ कहा था. कुछ समय बाद मामला सुप्रीम कोर्ट में भी गया था. जिस पर जनवरी 2007 में, सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने सांसदों को निष्कासित करने के संसद के फैसले को बरकरार रखा. दरअसल सांसदों ने अपने निष्कासन को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी, जिससे यह बहस छिड़ गई कि क्या अदालत संसद की प्रक्रियाओं में हस्तक्षेप कर सकती है.
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