जैसे-जैसे एमपी में विधानसभा चुनाव का वक्त करीब आ रहा है वैसे-वैसे बीजेपी और कांग्रेस के दिग्गज नेताओं की टेंशन बढ़ती जा रही है. हालांकि दोनों दलों की अपने-अपने वोट बैंक पर भी नजर हैै. ऐसे में 230 सीटों वाली एमपी विधानसभा के लिए सत्ताधारी बीजेपी ने अपने सारे उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी सीटों पर अपने प्रत्याशी उतार दिए हैं. इनमें से दोनों ही पार्टियों ने अपने कुछ नाराज चेहरों को खुश करने की कोशिश की तो दल-बदल कर आए नेताओं को भी टिकट बांटे गए है लेकिन अभी भी दलों में टिकट को लेकर विरोध थमने का नाम नहीं ले रहा है. लेकिन इस बीच अहम सवाल मुस्लिम पॉलिटिक्स को लेकर उठ रहा है. क्योंकि अभी तक जारी की गई प्रत्याशियों की लिस्ट के मुताबिक तो कांग्रेस और बीजेपी दोनों दलों ने मुस्लिमों को साइड लाइन कर दिया है. ये हम नहीं कह रहे आंकड़े खुद इस बात की गवाही दे रहे हैं. अगर प्रत्याशियों की लिस्ट पर गौर करें तो बीजेपी ने अब तक चुनाव में एक भी मुस्लिम कैंडिडेट को टिकट नहीं दी है. वहीं कांग्रेस ने एक-आद सीट पर मुस्लिम उम्मीदवार को उतारा है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस बार क्या हार्ड हिंदुत्व के दांव से मुस्लिम हाशिए पर आ गए हैं. 2024 लोकसभा चुनाव से पहले सियासत का सेमीफाइनल माने जा रहे विधानसभा चुनावों में बीजेपी बेहतर प्रदर्शन करने के लिए बेचैन है. लेकिन इस बार गुजरात, कर्नाटक और यूपी वाला फॉर्मूला अपनाते हुए किसी भी मुस्लिम चेहरे को चुनावी मैदान में नहीं उतारा है. जबकि कांग्रेस की मुस्लिम पॉलिटिक्स भी पूरी तरह से बदली हुई नजर आ रही है. कमलनाथ ने जिस तरह से हिंदुत्व के मुद्दे पर अपनी सियासी पिच को मजबूत करने की पूरी फील्डिंग सजाई है उसके बाद साफ है कि कांग्रेस अपनी मुस्लिम परस्त वाली छवि को बदलने की कोशिश में है. कांग्रेस ने एक मात्र मुस्लिम नेता को प्रत्याशी बनाया है. भोपाल मध्य सीट से कांग्रेस ने मौजूदा विधायक आरिफ मसूद को फिर टिकट दिया है.
जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में तीन मुस्लिम प्रत्याशियों को कांग्रेस ने उतारा था। इनमें से दो विधायक ही जीते थे. लेकिन इस बार के चुनाव में कांग्रेस ने अपना मुंह मुस्लिमों की ओर से मोड़ लिया है. खुद को हनुमान भक्त बताने के लिए कमलनाथ खुलकर हिंदुत्व कार्ड खेल रहे हैं. हिंदू राष्ट्र की वकालत करने वाले धीरेंद्र शास्त्री के प्रवचन छिंदवाड़ा में करा चुके हैं और शिवकथा वाचक प्रदीप मिश्रा का कार्यक्रम भी कराया. इतना ही नहीं कांग्रेस ने मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवारों की पहली लिस्ट नवरात्र के पहले दिन जारी की. इस तरह वो सॉफ्ट हिंदुत्व ही नहीं बल्कि बीजेपी की तरह हार्ड हिंदुत्व का दांव खेल रही है, जिसके चलते मुस्लिमों से दूरी बनाते हुए नजर आ रही है
.
साल 2011 की जनगणना के मुताबिक मध्य प्रदेश में मुस्लिम आबादी 7 फीसदी हैं, जो अब करीब 9-10 फीसदी होनी चाहिए। 1962 के विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सात मुस्लिम विधायक चुने गए थे. इसके बाद 1972 और 1980 में 6-6 मुस्लिम विधायक बने थे जबकि 1985 में 5 मुस्लिम चुनाव जीते थे.
मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 1990 के चुनाव से मुस्लिमों का प्रतिनिधित्व एमपी में घटने का सिलसिला शुरू हुआ तो आजतक नहीं उभर सका. 1993 के विधानसभा चुनाव में एक भी मुस्लिम विधायक नहीं जीत सका था और उसके बाद विधायकों की संख्या दो और एक तक ही सीमित रही. 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने तीन और बीजेपी ने एक मुस्लिम प्रत्याशी उतारे थे, जिनमें से कांग्रेस के दो विधायक जीतने में सफल रहे.
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक,
एमपी की आबादी 2023 की स्थिति में 8.77 करोड़ है. इसका 6.57 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है, जो लगभग 60 लाख है. करीब 50 लाख मतदाता हैं.
एमपी में 230 विधानसभा में से करीब 45 विधानसभा ऐसी हैं, जहां 20 हजार से ज्यादा (करीब 10 प्रतिशत) मुस्लिम वोटर्स हैं. 70 से ज्यादा ऐसे क्षेत्र हैं, जहां विधानसभा में 57 प्रतिशत मुस्लिम वोटर्स हैं, लेकिन सीट आरक्षित होने के बावजूद जीत हार में निर्णायक भूमिका में होते हैं.
मुस्लिम बहुल कही जाने वाली इन 33 सीटों पर कुल मुस्लिम वोट करीब 15 लाख हैं, जो कुल वोटर का 1=2 प्रतिशत होते हुए भी सरकार बनाने या बिगाड़ने का काम करते हैं.
भोपाल, इंदौर, जबलपुर और बुरहानपुर में मुस्लिमों की आबादी बड़ी संख्या में है
.
भोपाल की मध्य, भोपाल उत्तर, सिहौर, नरेला, देवास की सीट, जबलपुर पूर्व, रतलाम शहर, शाजापुर, ग्वालियर दक्षिण, उज्जैन नार्थ, सागर, सतना, रीवा, खरगोन, मंदसौर, देपालपुर और खंडवा की विधानसभा की सीटों पर मुस्लिम मतदाता अहम रोल अदा करते हैं.
हालांकि इस बार चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी ने 'M.O.' वोटर्स यानी महिला और ओबीसी पर खास फोकस किया है. अब सियासी ऊंट किस ओर करवट लेता है ये देखने वाली बात होगी
Comment
0 comment