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China की चालबाजियों पर नजर रखने के लिए Ladakh में बन रहा न्योमा एयरबेस

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लद्दाख रीजन (Ladakh) में चीन की चालबाजियों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए भारत लगातार LAC से लगे एरियाज में डेवलपमेंट पर जोर दे रहा है। LAC के पास सड़कों और सुरंगों का जाल बिछाने के साथ ही मोदी सरकार ने सामरिक लिहाज से इस रीजन में एक बेहद अहम एयरफील्ड पर एयरफोर्स बेस तैयार करने का फैसला किया है। लद्दाख में LAC से महज 50 किमी की  दूरी पर न्योमा वैली में एयरफोर्स का नया बेस तैयार होगा। बार्डर रोड आर्गनाइजेशन 218 करोड़ की लागत से इसे बनाएंगी। जिसका रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) शिलान्यास करेंगे। यह एयरफील्ड दुनिया की दूसरी सबसे ऊंची  एयरफील्ड है। जहां से दो साल के बाद फाइटर जेट भी उड़ान भर सकेंगे। 

लद्दाख में लेह से 180 किमी साउथ ईस्ट में स्थित न्योमा वैली में मोदी सरकार एयरबेस बनाएगी। 13700 फीट की ऊंचाई पर बन रहे इस एयरबेस का सामरिक महत्व है। क्योंकि यह LAC से महज 50 किमी की दूरी पर ही है। दरअसल मोदी सरकार लद्दाख रीजन में लगातार सेना और एयरफोर्स के लिए सामरिक रूप से अहम जगहों पर आने जाने के लिए डेवलपमेंट पर फोकस कर रही है। गलवान वैली में 2020 में भारत और चीनी सेना की झड़प के बाद इस पर और भी गंभीरता से काम शुरू हुआ। जिसके तहत न सिर्फ लेह एयरफोर्स बेस में फाइटर जेट की तैनाती की गई। बल्कि 1962 के यु़द्ध के बाद से जो एयरफील्ड एक्टिव नहीं थी। उनका इस्तेमाल भी शुरू हुआ। इसमें दो एयरफील्ड सबसे अहम हैं। पहली अक्साई चीन और सियाचीन ग्लेशियर के पास 16,614 फीट की ऊंचाई पर स्थित दौलत बेग ओल्डी एयरफील्ड और दूसरी न्योमा एयरफील्ड। इन दोनों की जगहों पर पक्का रनवे नहीं है। यहां सिर्फ एयरफोर्स के C-130 सुपर हरक्यूलिस,AN-32 मालवाहक प्लेन के अलावा हेलीकॉप्टर्स का ही यूज किया जाता है।

हिमाचल में रैंगरिक एयरबेस के निर्माण को मंजूरी दी

हालांकि मोदी सरकार से पहले ही IAF ने इन दोनों ही एयरफील्डस को एक्टिव किया था। 1962 की जंग के बाद डीबीओ एडवांस लैंडिंग ग्राउंड पर 2008 में पहली बार C-130 सुपर हरक्यूलिस को उतारा गया था। जबकि अगले ही साल यानी 18 सितंबर 2008 को न्योमा स्थित एडवांस लैंडिंग  ग्राउंड पर भी AN-32 की सफल लैंडिंग कराई गई थी। ये दोनों ही एयरफील्ड चीन की आंखों की किरकिरी हैं। इसके अलावा केंद्र सरकार ने हिमाचल प्रदेश की स्पीति वैली में भी रैंगरिक एयरबेस के निर्माण को मंजूरी दी है। 

चीन से सटी सीमा पर ताकत दिखाई

दरअसल, चीन लगातार कई दशकों से भारत के साथ लगी अपनी सीमा के आसपास अपना आधारभूत ढांचा मजबूत करता आया है। फिर वो LAC के पास सैन्य अड्डे बनाने हो या एयरपोर्ट और रेल लाइन निर्माण चीन ने इनका बेहद तेजी से निर्माण किया है। चीन की विस्तारवादी नीति को देखते हुए ही मोदी सरकार के आने के बाद चीन से लगी सीमा पर विकास कार्यों को प्राथमिकता दी गई। चीन से लगी 3400 किमी सीमा पर पांच मोर्चों पर खासकर किलेबंदी भारत ने शुरू की है। LAC से लगे इलाकों में रोड कनेक्टिविटी मजबूत हुई। वहीं LAC के करीब एयर कनेक्टिविटी को बढ़ाने के लिए पुराने लैंडिंग ग्राउंड या एयरफील्ड को एयरफोर्स बेस के तौर पर विकसित करने का काम शुरू हुआ है। 

लद्दाख में तैयार होगा सबसे ऊंचा एयरबेस

न्योमा ने एयरबेस बनने के बाद से DBO के बाद यह विश्व का दूसरा सबसे ऊंचाई पर स्थित फाइटर एयरबेस होगा। जिसके जरिए भारत चीन की चलाकियों और चालबाजियों का जवाब ज्यादा बेहतर तरीके से कर सकेगा। चीन से लगी सीमा पर निगरानी बढ़ाने के लिए भारत एडवांस अनमैंड एरियल व्हीकल्स की लगातार तैनाती कर ही रहा है। लददाख रीजन में हाल में ही इन्हे तैनात किया गया है। लद्दाख रीजन में बुनियादी ढांचे को ध्यान में रखते हुए बीते 3 सालों में सरकार ने 1300 करोड़ रुपए खर्च किए हैं। पूर्वी लद्दाख में 55,000 जवानों के रहने के लिए आवास का निर्माण हो या फिर सैनिकों के लिए नए हथियारों की खरीद करनी हो। केंद्र सरकार लद्दाख रीजन में ही 18 बड़ी परियोजनाओं पर काम कर रही है। ऐसे में चीन की परेशानी बढ़ना वाजिब भी है। 

पिछले 10 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं। वैश्विक और राजनीतिक के साथ-साथ ऐसी खबरें लिखने का शौक है जो व्यक्ति के जीवन पर सीधा असर डाल सकती हैं। वहीं लोगों को ‘ज्ञान’ देने से बचता हूं।

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