मणिपुर पर संसद में चल रहा संग्राम अभी थमा नहीं है. इस बीच विपक्षी गठबंधन INDIA के सदस्य मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की बात कही है. ऐसा दूसरी बार होगा जब PM मोदी के लिए अविश्वास प्रस्ताव लाया जाएगा. इससे पहले जुलाई 2018 में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था. 11 घंटे चली बहस के बाद वोटिंग हुई थी और मोदी सरकार ने आसानी से अपना बहुमत साबित कर दिया था. अब तक लोकसभा में 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया जा चुका है, जिसमें से केवल तीन बार ही सरकारें गिरी हैं.
विपक्षी नेताओं का मानना है कि अविश्वास प्रस्ताव सरकार को मणिपुर पर लंबी चर्चा के लिए मजबूर करेगा और इस दौरान पीएम को जवाबदेह ठहराया जाएगा. अविश्वास प्रस्ताव जिसे इंग्लिश में नो कॉन्फिडेंस मोशन कहते है. कॉन्स्टिट्यूशन में इसका जिक्र आर्टिकल-75 में है. अविश्वास प्रस्ताव को लाने के लिए कुछ नियम भी है. सबसे पहले ये जानते है कि आखिर ये है क्या.
क्या है अविश्वास प्रस्ताव?
जब लोकसभा में विपक्ष के किसी दल को लगता है कि मौजूदा सरकार के पास बहुमत नहीं है या फिर सरकार सदन में विश्वास खो चुकी है, तो वो अविश्वास प्रस्ताव लाता है.
आर्टिकल-75 के मुताबिक- केंद्रीय मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति जवाबदेह है. अगर सदन में बहुमत नहीं है, तो प्रधानमंत्री समेत पूरे मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना होता है.
लोकसभा में अब तक 27 बार अविश्वास प्रस्ताव आ चुके है, पिछली बार जुलाई 2018 में विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव लाया था जो फेल हो गया था, प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि खिलाफ 325 सांसदों ने वोट किया.
पहला अविश्वास प्रस्ताव 1963 में लाया गया.
जे बी कृपलानी नेहरू सरकार के खिलाफ लेकर आए थे.
ये अविश्वास 347 वोटों से गिर गया और नेहरू सरकार सत्ता पर बरकरार रही.
इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े जबकि विरोध में 347 वोट पड़े थे.
सबसे ज्यादा बार प्रस्ताव इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ लाए गए
इंदिरा सरकार के खिलाफ 15, लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव सरकारों के खिलाफ 3-3
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया.
राजीव गांधी, वी.पी सिंह, चौधरी चरण सिंह, मनमोहन सिंह और मोदी की सरकार एक-एक बार इसका सामना कर चुकी है.
भले ही लोकसभा के इतिहास में 27 बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया हो, लेकिन केवल तीन बार ही सरकारें गिरी हैं.
अविश्वास प्रस्ताव से तीन बार गिरी सरकारें
1990 में वी.पी सिंह सरकार
7 नवंबर 1990 में बीजेपी के समर्थन लेने के बाद वी.पी सिंह के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया गया, जिसमें सरकार के पक्ष में 152 वहीं उनके खिलाफ 356 वोट पड़े
1997 में एच.डी. देवेगौड़ा सरकार
दूसरी बार 11 अप्रैल 1997 में देवेगौड़ा सरकार के पक्ष में 190 और खिलाफ में 338 वोट पड़े और सरकार गिर गई.
1999 में अटल बिहारी सरकार
तीसरी और आखिरी बार 17 अप्रैल 1999 के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया जिसमें उनकी सरकार एक सिर्फ एक वोट से हार गई. सरकार के पक्ष में 269 वोट पड़े थे जबकि खिलाफ 270.
कानून की भाषा में अविश्वास प्रस्ताव
लोकसभा के कानूनी नियमों में अविश्वास प्रस्ताव की बड़ी अहमियत है. लोकसभा के प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमावाली के नियम 198(1) से 198(5) तक इसका जिक्र है. ये प्रस्ताव केवल एक लाइन का है.
जिसमें 'यह सदन मंत्रिपरिषद में अविश्वास व्यक्त करता है' कहा जाता है.
नियम 198(1)(क): इस नियम के तहत जो सदस्य अविश्वास लाना चाहता है वो स्पीकर के बुलाने पर सदन से अनुमति मांगता है.
नियम 198(1)(ख): सदस्य को प्रस्ताव की लिखित सूचना सुबह 10 बजे तक लोकसभा सेक्रेटरी को देनी होती है.
नियम 198(2): अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन होना चाहिए, वरना स्पीकर इसकी अनुमति नहीं देते.
नियम 198(3): स्पीकर की अनुमति मिलने के बाद इस पर चर्चा के लिये एक या अधिक दिन को तय किया जाता है.
नियम 198(4): अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के अंतिम दिन स्पीकर वोटिंग कराते हैं और फैसला की घोषणा करते हैं.
यहां एक बात और क्लीयर कर दें कि राज्यसभा के सांसद अविश्वास प्रस्ताव की वोटिंग नहीं कर सकते है. अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग होने पर सरकार अपने सांसदों के लिए व्हिप जारी कर सकती है, जिसके बाद समर्थन न करने वाले सांसद को अयोग्य माना जा सकता है. अविश्वास प्रस्ताव में सदन में मौजूद सदस्यों में आधे से एक ज्यादा ने भी अगर सरकार के खिलाफ वोट दे दिया तो सरकार गिर जाती है. अब बात करते हैं कि अगर विपक्ष अभी मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आए तो क्या होगा. फिलहाल
लोकसभा की मौजूदा स्थिति
लोकसभा में मोदी सरकार बेहद मजबूत स्थिति में है. सरकार बड़ी आसानी से विश्वास मत हासिल कर लेगी.
लोकसभा में बीजेपी के पास 301 और पूरे एनडीए के पास 333 सांसद हैं.
विपक्ष के पास कुल 142 लोकसभा सदस्य हैं. सबसे ज्यादा 50 सांसद कांग्रेस के हैं.
हालांकि NDA के अंतिम नंबर में थोड़ा कम-ज्यादा हो सकता है क्योंकि बीजेपी के कुछ सांसद बीमार हैं या विदेश में हैं. लेकिन इसके बाद भी मोदी सरकार आसानी से अविश्वास प्रस्ताव को गिरा सकती है. अब आगे क्या होता है ये देखना होगा.
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