इन दिनों कुदरत अपना रौद्र रूप दिखा रही है. आसमान से बरसती आफत ने उत्तर भारत के लोगों की मुश्किलों को बढ़ा दिया है. पहाड़ों पर हो रही बारिश से नदियां उफान पर है. यमुना का रौद्र रूप देखने को मिला है जिसने दिल्लीवालों की टेंशन को बढ़ा दिया है. नदी के बढ़ते जलस्तर से कई इलाके डूब गए है. बाढ़ का पानी रेड फोर्ट यानी लाल किला, सुप्रीम कोर्ट, ITO, राजघाट समेत कई इलाकों में भारी जलजमाव ने लोगों की नींद उड़ा दी है. आज यमुना का पानी का राजघाट के समाधि स्थ्ल पर पर भी पहुंच गया है, तो सड़कों पर कमर तक पानी भर गया है इसलिए लोगों के दिल-दिमाग में केवल एक ही सवाल घूम रहा है कि आखिर युमना शांत कब होगी? इस बीच ऐसा कहा जा रहा कि लाल किला जब बना था तो वे यमुना नदी के किनारे था. यानी नदी का क्षेत्र रेड फोर्ट के पास तक था और अब नदी का जलस्तर जब बढ़ा पूरा लाल किला का एरिया जलमग्न हो गया. कुछ लोगों का ये कहना है कि नदियां अपने पुराने रास्ते पर आ चुकी है.
देश का दिल यानी दिल्ली इस वक्त भारी बारिश की मार सह रहा है. लोगों का जनजीवन प्रभावित है. रेड फोर्ट के आस-पास झरने जैसा सीन दिखाई दे रहा है. ये रिंग रोड से सलीम गढ़ के बाईपास का इलाका है. यहां पानी का हाल ऐसा है कि शायद आपको लगे कि ये हरिद्वार का दृश्य है. वहां इसी तरह का पानी का फ्लो देखा जाता है. इस बीच लाल किले की एक पुरानी तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल है. जिसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि लाल किले के आस-पास आज से सैकड़ों पहले पानी होता था. दरअसल लाल किले में इस कदर हालात देख एक बार फिर मुगल बादशाह शाहजहां का जिक्र किया जा रहा है. कहा जा रहा है कि नदी कभी भी अपना रास्ता नहीं भूलती, वो लौट कर जरूर आती है. लेकिन ये बात किस आधार पर कही जा रही है, ये सवाल मन में जरूर उठता है. तो उसका जवाब है डेवलेपमेंट. नाली बनती है, फ्लाईओवर बनते हैं लेकिन बरसात होते ही जल वहीं आ जाता है. ये सभी जानते हैं कि असल में जहां पानी भरता है, वो अरावली से चलकर नजफगढ़ में मिलने वाली साहबी नदी का हजारों साल पुराना मार्ग है, नदी सुखाकर सड़क बनाई लेकिन नदी भी इंसान की तरह होती है, उसकी याददाश्त होती है, वो अपना रास्ता कभी नहीं भूलती.
अब लोग कहते है कि उसके घर-मोहल्ले में जल भर गया, जबकि नदी कहती है कि मेरे घर में इंसान बलात कब्जा किए हुए हैं. देश के छोटे-बड़े शहर-कस्बों में कंक्रीट के जंगल बोने के बाद जलभराव एक स्थाई समस्या है और इसका मूल कारण है कि वहां बहने वाली कोई छोटी नदी, बरसाती नाले और जोहड़ों को अस्तित्वहीन समझ कर मिटा दिया. ये तो अब समझ आ रहा है कि देश और धरती के लिए नदियां और बरसाती नाले कितना जरूरी हैं, लेकिन अभी ये समझ में आना बाकी है कि छोटी नदियों और बरसाती नालों पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी है.
जब लाल किले का निर्माण 29 अप्रैल 1638 में शुरू हुआ था. तब लाल किले के आस-पास पानी भरा होता था. 10 साल बाद 1648 में इसका निर्माण हुआ. उस वक्त इसका नाम रखा गया किला-ए-मुबारक. किले का निर्माण यमुना किनारे किया गया. लेकिन समय के साथ दिल्ली में यमुना का आकार इंफ्रस्टक्चर के आगे छोटा होने लगा.
क्लाइमेट चेंज के bad effects तो अब सामने आ रहे हैं. और डेवलेपमेंट का नतीजा ये है कि सड़कों पर पानी ही पानी है. हाल ही में, NGT ने अपने फैसले में निर्देश दिया था कि यमुना बाढ़ क्षेत्र को सभी अतिक्रमणकारियों से मुक्त किया जाना चाहिए और सीसीटीवी कैमरे लगाकर, सुरक्षा गार्ड तैनात करके और चारदीवारी का निर्माण करके भूमि को संरक्षित किया जाना चाहिए. लेकिन इन सबके बावजूद नदी की धारा की बची हुई जमीन पर अतिक्रमणकारी लगातार पनप रहे हैं. 2015 और फिर 2019 में NGT ने अपने आदेश में संवेदनशील यमुना बाढ़ क्षेत्र में किसी भी तरह की खेती पर प्रतिबंध लगा दिया थ. हालांकि, टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक गीता कॉलोनी, मदनपुर खादर और जैतपुर में खेती अभी भी जारी है.
बाढ़ क्षेत्र के लिए खेती ही चिंता का एकमात्र कारण नहीं है. इससे भी ज्यादा गंभीर चिंता नदी के ज़ोन-ओ पर कॉलोनियों और तीन-चार मंजिला ऊंचे घरों का अवैध निर्माण है. जामिया नगर में अवैध कॉलोनियां अब नदी के किनारे तक फैल गई हैं.
जतीपुर एक्सटेंशन में, नदी से सिर्फ 500 मीटर की दूरी पर कई इमारतों का निर्माण किया गया है. कुछ नवनिर्मित मकान हैं, जबकि कुछ निर्माणाधीन हैं.
'यमुना जिये अभियान' के संयोजक मनोज मिश्रा ने TOI को बताया "कुछ किसानों को राष्ट्रमंडल खेल गांव से भी हटा दिया गया था, जबकि नए जैव विविधता पार्क के पास कुछ झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया गया था. लेकिन अनधिकृत कॉलोनियों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई."
आप विश्वास नहीं करेंगे यमुना नदी के निचले इलाक़े में तमाम बड़ी-बड़ी बिल्डिंग बनायी गई हैं. यमुना नदी पर कई इलाकों में नदी से कुछ दूरी पर मकान बन गए है. कुछ साल पहले तक ये पूरा इलाक़ा ख़ाली था. सरकारें तो कई आईं लेकिन समाधान अभी तक कोई न हो सका. अब भले ही यमुना का जलस्तर भले ही कम हो रहा हो लेकिन दिल्ली में सैलाब का संकट अब भी बरकरार है. यमुना नदी अब भी खतरे के निशान से 3 मीटर ऊपर बह रही है. ऐसे में राजधानी के कई इलाके अभी भी जलमग्न हैं. अब ये पानी कब तक हटता है. दिल्लीवासियों को कब तक राहत मिलती है. ये देखना होगा. आपका इस पर क्या कुछ कहना है. कमेंट्स करके जरूर बताएं
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