Sapna Didi जो पति की मौत का बदला लेने के लिए Dawood Ibrahim से भिड़ बैठी

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मुंबई को समझने वाले और मशहूर लेखक हुसैन जैदी अपनी किताब माफिया क्वींस ऑफ मुंबई में रुडयार्ड किपलिंग का हवाला देते हुए लिखते है  'इस प्रजाति की मादा नर की तुलना में अधिक घातक है' दरअसल वो मुंबई के अंडरवर्ल्ड में कुछ महिलाओं पर बात करते हुए इस कोट को अपनी बुक में हैं.
ये बात है 80 के दशक की जब मुंबई के अंडरवर्ल्ड में दाऊद इब्राहिम एक बड़ा नाम बन चुका था 85 केबाद उसने अपना ठीकाना दुबई बना लिया था. वहीं से वो अपनी D-कंपनी को चलाता था. जो कहानी हम आपको बताने वाले वो इसी D-कंपनी के ईर्द गिर्द घूमती है. लेकिन एक महिला की है. जिसकी वजह से दाऊद भी खौफ खाने लगा था. ये कहानी है उस बदले की जिसमें एक महिला साधारण परिवार से ताल्लुक रखती थी. लेकिन दाऊद से बदला लेने के लिए सारी सरहदों को पार कर दिया था और उसे मारने की सौगंध खा ली थी. आज कहानी अशरफा खान उर्फ सपना दीदी की.  
बात है 80 के दशक की हुआ कुछ यूं था कि अपने दोस्त की शादी में महमूद कालिया ने अशरफ को देखा और देखते ही एक दूसरे से प्यार करने लग गए कुछ दिनों बाद ही जब महमूद ने शादी की बात की तो बिना हिचकिचाए अशरफा ने अपनी तरफ से हां कह दी. महमूद और अशरफा ने शादी के बाद 5 साल एकसाथ गुजारे, अशरफ को सिर्फ इतना पता था कि उसका पति उसको बहुत प्यार करता है और उसको रानी की तरह रखता है. उस पर अपनी जान छिड़कता है. ये वो वक्त था जब दाऊद के नाम से मुंबई में हर कोई कांप उठता था. लेकिन एक वक्त वो भारत से भाग निकल उसने दुबई को अपना बेस बना लिया था वहां बैठकर वो इंडिया में महमूद कालिया जैसे लोकल गैंगस्टर के जरिए अपना साम्राज्य D-कंपनी चला रहा था. मासूम अशरफा ने अपनी जिंदगी में कभी दाऊद का नाम तक नहीं सुना था. वो इस बात से बेखर थी कि कैसे ये एक नाम उसकी गहरी नींद में एक बुरा सपना बनने वाला था जिससे वो शायद ही कभी उठ पाएगी. अशरफ को पता नहीं था कि उसकी हर ख्वाइश को पूरा करने के लिए महमूद करता क्या था. इतने पैसे कहां से लाता था. उसे बस इतना पता था कि जिन लोगों के साथ महमूद रहता था वो सही लोग नहीं थे. इसी बीच एक रात महमूद ने अशरफ से कहा कि उसे कुछ काम से दुबई जाना पड़ेगा और फिर वो दुबई चला गया.
एक-दो दिन बीते, रात का वक्त था अशरफा सो रही थी. तभी दरवाजे पर खटखटाने की आवाज आई तो अशरफा को लगा की फिर कोई पुलिस ऑफिसर या महमूद के साथ काम करने वाले कोई आया होगा. लेकिन दरवाजा खोलने पर पता लगा उनके बगल में रहने वाला पड़ोसी है और जो अशरफ को महमूद के फोन के लिए बुलाने आया था. अशरफ फोन अटैंड करती है. महमूद उसे बताता है कि कल वो मुंबई एयरपोर्ट आ रहा है. तुम वहीं आ जाना. अशरफ खुश थी. उसकी खुशी 7वें आसमान पर थी. लेकिन उसे क्या पता था कि आगे क्या होने वाला है.
अशरफा शान्ताक्रूज एयरपोर्ट पहुंचती है महमूद की फ्लाइट लैंड करती है. जब वो बाहर आ रहा होता है तो गोली चल जाती है. जिसके बाद अफरा-तफरी का माहौल हो जाता है. अशरफा महमूद की राह देख रही होती है. लेकिन उसे महमूद नहीं दिखता, इस बीच वो मायूस हो जाती है. तभी उसको पता लगता है कि एक युवक का एनकाउंटर हो गया है. वो परेशान हो जाती है. वो सीधा पुलिस के पास पहुंचती है उसे ये पता लगता है कि एक युवक को JJ अस्पताल भेजा गया है. अशरफा अस्पताल पहुंचती है. जहां पूछताछ में पता चलता है कि एक गैंगस्टर महमूद कालिया को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया है. अशरफा टूट के बिखर जाती है. उसका रो-रोकर बुरा हाल हो जाता है. महमूद को दफनाया जाता है. इसी बीच उस्मान से अशरफा खान की मुलाकात होती है और वो दाऊद-महमूद के रिश्तों और बिजनेस के बारे में बताते हैं और बताते हैं कि महमूद की  हत्या के पीछे दाऊद इब्राहिम है. क्योंकि महमूद डॉन के एक काम को करने लिए मना कर दिया, जिसके चलते महमूद का दाऊद ने पुलिस संग मिलकर एनकाउंटर करवा दिया.
अब अशरफा के सामने दो रास्ते थे या तो वो सब भूल जाए या फिर.... जो वो उस दरमियान सोच रही थी उसे पूरा करें. यानी Revenge मतलब बदला... लेकिन वो बदला कैसे लेती. उसे दाऊद से बदला लेने के लिए एक मजबूत साथी की जरूरत थी जो उसकी मदद कर सकें. इस बीच उसकी मुलाकात उस शख्स से होती है जो दाऊद का सबसे बड़ा दुश्मन था. हुसैन उस्तरा.. वैसे उस्तरा शब्द को हम रेजर के नाम से जानते है. ऐसा दावा किया जाता है कि हुसैन अपने दुश्मनों को उस्तरे से मौत के घाट उतार देता था. जिसके चलते उसका नाम हुसैन उस्तरा हो गया.
अब कहानी में आगे बढ़ते हैं. हुसैन और अशरफा दोनों का एक ही मकसद था दाऊद इब्राहिम. अशरफा बदले की आग में जल रही थी. क्योंकि उसने दाऊद को मारने की सौगंध खाई थी. वो बदला लेने के लिए खुद को मजबूत बनाती है. अब अशरफा धीरे-धीरे बुर्का का त्याग कर देती है और बदले के लिए हथियार चलाने और सेल्फ डिफेंस सीखती है.
ऐसा कहा जाता है कि ये वो समय था जब  मुंबई में दाउद का सबसे बड़ा दुश्मन अरुण गवली भी हुआ करता था. सपना दीदी ने अरुण गवली से मिलकर दाउद को खत्म करने के लिए मदद मांगी. लेकिन अरुण गवली ने अशरफा को इनकार कर दिया. इसके बाद अशऱफा का साथ हुसैन उस्तरा देता है. जिसके बाद सपना दीदी जुर्म की दुनिया में पांव रखती है और धीरे-धीरे दाऊद के साम्राज्य को दीमक की तरह खत्म करने की कोशिश करती है. और पुलिस को भी दाउद के गुर्गों के बारे में जानकारी देने लगी. सपना की इंफोर्मेंशन इतनी करेक्ट होती कि दाउद के कई गुर्गे या पकड़ लिए गए या फिर मारे गए. दाऊद के जुएं के कारोबार को भी मुंबई में सपना दीदी ने काफी हद तक बंद करवा दिया. हालांकि इस वक्त तक खुद सपना दीदी भी मुंबई पुलिस के निशाने पर आ गई थी और पुलिस ने कई बार उससे सरेंडर करने के लिए भी कहा लेकिन ऐसा हो न सका.
इसी बीच हुसैन उस्तरा ने सपना को एक गुड न्यूज दी और बताया कि दाउद का काफी कारोबार नेपाल में इललीगल है जिसे मिटाने के लिए सपना ने प्लान बनाया और पुलिस को इंफार्मेशन देना शुरू कर दिया. लेकिन एक वक्त ऐसा भी आया जब 1991 में हुसैन उस्तरा के साथियों ने सपना पर हमला कर दिया. फिर सपना और उस्मान के बीच दरार आ गई है. सपना को आगे बढ़ना था उसने मुस्लिम युवाओं को अपने साथ जोड़ा और फिर वो सबकी सपना दीदी बन गई. अब वो बदला लेने के बहुत करीब थी.
सपना को जानकारी हुई कि दाऊद दुबई में रहता है लेकिन ओकेशनल वो बाहर भी जाता है. सपना ने पूरा प्लान बनाया. कहा जाता है कि दाउद को मारने के लिए सपना दीदी शारजहां पहुंच गई. यहां सपना ने अपने कुछ साथियों की मदद से दाउद को ठिकाने लगाने की पूरी योजना बना ली थी. योजना के मुताबिक दाउद शारजहां में भारत-पाकिस्तान का क्रिकेट मैच देखने आने वाला था और इसी दौरान उसकी हत्या की तैयारी की गई थी. इत्तिफाक से दाउद को सपना की इस चाल का पहले ही पता चल गया और उसने अपने सबसे खास गुर्गे छोटा शकील की मदद से सपना का कत्ल करवा दिया. इस कत्ल के साथ सपना का बदला अधूरा रह गया. पुलिस ने जांच की लेकिन कोई भी पुख्ता सबूत न होने पर कुछ न हो सका. सपना दीदी बस नाम ही रह गया जिसे आज भी कई मर्तबा याद किया जाता है. 

कानपुर का हूं, 8 साल से पत्रकारिता के क्षेत्र में हूं, पॉलिटिक्स एनालिसिस पर ज्यादा फोकस करता हूं, बेहतर कल की उम्मीद में खुद की तलाश करता हूं.

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