Actor Ajit Khan : 20 साल हीरो, 30 साल विलेन

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एक्टर अजीत खान 20 साल तक बतौर हीरो काम करने के बाद विलेन बने। ये विलेन पढ़ा-लिखा था, सूट और बूट पहनता था। इन्हें सारी दुनिया 'लायन' के नाम से जानती हैं। जबरदस्त फैन फालोइंग, फिर भी न जानें क्यों कई सारे बड़े फिल्मकारों ने काम नहीं दिया।

 

'आओ विजय बैठो और हमारे साथ स्कॉच पियो... हम तुम्हें खा थोड़ी जाएंगे ... वैसे भी हम वेजिटेरियन हैं।'

इस तरह के न जाने कितने डायलॉग्स को बोलने वाले एक्टर अजीत खान फिल्मों में करीब 20 साल तक बतौर लीड हीरो काम करने के बाद जब विलेन बने तो सभी मानक तोड़ दिया।

ये जिस फिल्म में विलेन बनते उस फिल्म के हीरो को हर मामले में टक्कर देते। ये विलेन अनपढ़ नहीं था पढ़ा-लिखा होता था, सूट और बूट पहनता था।

कई कलाकारों की तरह अजीत खान की भी निजी जिंदगी उतार-चढ़ाव से भरी थी। नाले में डाले जाने वाली सीमेंट के पाइप में सोते थे। सपना था किसी भी तरह फिल्मों में काम मिल जाए। इसके लिए कई साल संघर्ष किया।

जर्नलिस्ट इकबाल रिजवी की किताब – 'अजीत -  द लॉयन' के मुताबिक, अपने दौर की बेहद खूबसूरत एक्ट्रेस बेगम पारा ने एक बार बहुत दिलचस्प बात कही थी कि 'किसी मर्द के बारे में अगर कोई औरत कुछ कहती है तो उससे उसकी असली शख्सियत का पता चलता है। वो कहती थीं कि 'अजीत ऐसे शख्स थे जिनकी सोहबत में औरतें कभी खतरा नहीं महसूस करती थीं।'

आज कहानी, एक्टर अजीत खान की जिसे सारी दुनिया 'लायन' के नाम से जानती हैं। इनकी जबरदस्त फैन फालोइंग थी, फिर भी न जानें क्यों कई सारे बड़े फिल्मकारों ने अपनी एक भी फिल्म में काम नहीं दिया।

ये 20 का दशक था, हैदराबाद में निजाम की सेना में काम करते वाले बशीर अली खान हैदराबाद के गोलकुंडा में रहते थे। इन्हीं के घर 27 जनवरी, साल 1922 को हामिद अली खान का जन्म हुआ। जिन्हें एक्टर अजीत खान के नाम से जाना जाता है। बचपन में पढ़ाई में मन नहीं लगा और वो पिता की तरह सेना में भी नहीं जाना चाहते।

12-14 साल की उम्र थी वो फुटबॉल खेला करते। लेकिन वक्त गुजरने के साथ उनका रुझान फिल्मों की तरफ गया।

जर्नलिस्ट इकबाल रिजवी अपनी किताब – 'अजीत -  द लॉयन' में लिखते हैं कि 'अजीत के मामा के पास हैदराबाद के दो सिनेमा हॉल्स की कैंटीन का ठेका था। इसलिए, अजीत बिना रोक-टोक फिल्में देखा करते। इसी दौरान उनके अंदर सिनेमा को लेकर जोश पैदा हुआ।'

वो आगे लिखते हैं कि, 'एक वक्त वो आया जब अजीत खान को लगा अब पढ़ाई से कुछ नहीं हो सकता। अब मुंबई जाकर हीरो बनेंगे। सख्त स्वभाव के पिता बशीर अली खान पिटाई करते, फौज में भर्ती करा देते। पिताजी से झूठ बोला कि, उन्होंने परीक्षा पास कर ली है। पिताजी से स्कूल की फीस ली, अपनी सारी किताबें बेच डालीं। कुल 113 रुपये जमा हुए तो टिकट लेकर मुंबई आ गए।'

पर रास्ता इतना आसान नहीं था। अजीत खान मुंबई पहुंचे तो चकाचौंध भरी दुनिया को देखकर चकरा गए। सोचा था फिल्म के डायरेक्टर उनके लिए बाहें फैलाकर खड़े होंगे। पर ये सिर्फ उनका एक सपना था। कई महीने बीत गए काम नहीं मिला। तो नाले के लिए डाले जाने वाले सीमेंट के पाइप में रहकर अपने दिन गुजारे।

वो निजी जीवन में बेहद सरल और सहज थे वक्त के साथ मुंबई ने उन्हें गुंडों की तरह मारपीट करना सीखा दिया। दरअसल रात में पाइप में सोने के दौरान कई बार राह चलते गुंडे उन्हें परेशान करते थे। 

एक इंटरव्यू में एक्टर अजीत खान ने बताया था कि 'मैंने पांच रुपये महीने के किराये पर एक कमरा लिया। वो जगह इतनी छोटी थी कि, मेरे जैसा छह फिट लंबा शख्स टांगे सिकोड़ कर ही उसके अंदर आ पाता था।'

एक मैगजीन में छपे लेख के मुताबिक, एक्टर अजीत खान बताते हैं 'फिल्मों में काम करने की तलाश जारी थी। मेरी मुलाकात मजहर खान से हुई और उन्होंने फिल्म 'बड़ी बात' में एक स्कूल टीचर का रोल दिया। चार-पांच सालों तक बतौर जूनियर आर्टिस्ट करीब छह फिल्मों में काम किया। इस दौरान मेरा स्क्रीन नेम हामिद अली खान ही था।'

खैर अगले, पांच सालों तक अजीत को फिल्मों में छोटे-मोटे रोल मिले। इस दौरान हामिद अली खान फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के. अमरनाथ के संपर्क में आए। उन्होंने उनके साथ एक हजार रुपये महीने का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया। के. अमरनाथ ने ही उनका नाम हामिद अली खान से बदलकर अजीत रख लिया।

साल आया 1950, जब फिल्म 'बेकसूर' में बतौर हीरो काम मिला और उनकी हीरोइन बनीं मधुबाला। उनके काम की तारीफ हुई। अगले 20 सालों में 'नास्तिक', 'बड़ा भाई', 'बारादरी' और 'ढोलक' जैसी कई फिल्मों में हीरो बनें। अपने दौर की हर बड़ी एक्ट्रेस के साथ काम किया। फिल्म 'मुगल ए आजम' में दुर्जन सिंह का रोल काफी पसंद किया गया।

दौर बदला, राज कपूर, देव आनंद, दिलीप कुमार जैसे एक्टर पर्दे पर छाने लगे थे। अजीत खान की मांग कम होने लगी। एक वजह उनकी बढ़ती उम्र भी बनी जिससे वो बतौर हीरो अपने करियर के अंतिम पड़ाव पर थे। तभी उनकी किस्मत ने एक बार और पलटी मारी। उनके सहारा बने उनके दोस्त एक्टर राजेंद्र कुमार। राजेंद्र कुमार के कहने पर ही वो साल 1965 की फिल्म 'सूरज' में विलेन के रोल के लिए राजी हुए इसी फिल्म के बाद उन्हें इंडस्ट्री में टिके रहने का जज्बा मिला। अपने पांच दशक के फिल्मी सफर में 200 से ज्यादा फिल्मों में काम किया।

साल 1995 की फिल्म 'क्रिमिनल' उनकी आखिरी फिल्म थी। अजीत खान ने विलेन की डायलॉग डिलीवरी को एक सॉफ्ट टच दिया। ये उस तरह के विलेन थे, जो कड़े से कड़ा फैसला लेते हुए भी अपनी आवाज ऊंची नहीं करते। उनके हर डायलॉग स्क्रीन पर मशहूर हुए।

फिल्म 'कालीचरण' में बोला गया डायलॉग 'सारा जहां मुझे लायन के नाम से जानता है' ने उनको फेमस कर दिया।

जर्नलिस्ट इकबाल रिजवी अपनी किताब – 'अजीत -  द लॉयन' में लिखते हैं कि 'फैशनेबल कपड़े, सिगार और पाइप पीने, लंबी कार पर चलने और विनम्र ठंडे हावभाव को बखूबी अपनाया, जिसने उन्हें लोकप्रिय बना दिया।'

अजीत खान की पॉपुलैरिटी को इससे भी मापा जा सकता है कि फिल्म जर्नलिस्ट राम कृष्ण की किताब 'फिल्म जगत में अर्धशती का रोमांच' के मुताबिक भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई भी अजीत खान के बहुत जबरदस्त फैन थे।

अजीत का ये दुर्भाग्य रहा उनके दौर के डायरेक्टर और प्रोड्यूसर जैसे वी शांताराम, राज कपूर, महबूब खान, गुरुदत्त और बिमल रॉय ने कभी काम नहीं दिया। डायरेक्टर के. आसिफ को छोड़कर मनमोहन देसाईमनोज कुमार और फिरोज खान ने भी उन्हें काम नहीं दिया।

सुभाष घई की पहली फिल्म 'कालीचरण' अजीत ने काम किया था। फिल्म हिट भी हुई, इसके बावजूद उन्होंने अजीत को कोई और फिल्म में रिपीट नहीं किया। प्रकाश मेहरा की पहली फिल्म 'जंजीर' भी बहुत सफल रही उन्होंने भी अजीत के साथ दोबारा काम नहीं किया। बीआर चोपड़ा ने अजीत के साथ एक ही फिल्म 'नया दौर' की। उसी तरह यश चोपड़ा ने भी एक फिल्म 'आदमी और इंसान' में साइन किया। पर हां देवानंद और चेतन आनंद ने अजीत खान की एक्टिंग को क्षमता को पहचान कर उन्हें अपनी कई फिल्मों में रोल दिए।

अजीत खान ने पहली शादी एक फ्रेंच लेडी ग्लेन डेमोंटे से की थी, फिर उन्होंने दूसरी शादी शाहिदा अली खान से की थी। उनके तीन बेटे थे शाहिद अली खान, जाहिद अली खान और आबिद अली खान। उनके बेटे शाहिद अली खान ने एक बार बताया था कि 'निजी जिन्दगी में अजीत बहुत ही मृदुभाषी और विनम्र व्यक्ति थे। वो कभी-कभार ही गुस्सा करते। वो अपने ड्राइवर और नौकरों को भी 'जी' या 'साहब' कहकर पुकारते।'

वो आगे बताते हैं कि 'शेरो शायरी का शौक रखने वाले अजीत खान बेहद उसूलपसंद इंसान थे। छिछोरी बातें करना तो दूर वो वो फिल्मों में उस तरह के रोल भी नहीं करते थे। रेप सीन से हमेशा ये कहकर बचते रहे कि, वो मेरे सम्मान के खिलाफ है।'

22 अक्टूबर, साल 1998, दिल का दौरा पड़ने से 76 साल की उम्र में अजीत खान दुनिया छोड़कर चले गए।

अजीत के वन लाइनर डायलॉग जैसे 'लीली डोंट बी सीली' 'मोना डार्लिंग' और 'रॉबर्टआज भी याद किए जाते हैं। एक्टर अजीत खान खुद कहते 'मेरे प्रशंसक मेरे बोले डायलॉग के दीवाने थे।'

 

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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