आशुतोष राणा अपनी जिंदगी की चुनौतियों को कभी संघर्ष नहीं माना और न ही किसी भी व्यक्ति को अपना दुशमन। ये मतभेद तो रख सकते हैं पर मनभेद नहीं रख सकते हैं। अध्यात्म से जुड़ाव और जीवन में अपने गुरु को महत्व देते हैं।
'यहां पर कोई विपक्ष में नहीं, क्योंकि हर आदमी का अपना एक पक्ष होता है। यहां पर कोई आदमी झूठ नहीं बोलता, क्योंकि हर आदमी का अपना एक सच होता है।' ये विचार इंडियन सिनेमा के उस एक्टर के हैं जिनको सबसे ज्यादा शोहरत और पहचान साल 1998 की फिल्म 'दुश्मन' और 1999 की फिल्म 'संघर्ष' से मिली।
वर्तमान को बड़े आनंद से जीते
इन्होंने अपनी जिंदगी की चुनौतियों को कभी संघर्ष नहीं माना और न ही किसी भी व्यक्ति को अपना दुशमन। ये मतभेद तो रख सकते हैं पर मनभेद नहीं रख सकते हैं। अध्यात्म से जुड़ाव और जीवन में अपने गुरु को महत्व देते हैं। आज कहानी भूत और भविष्य की चिंता छोड़, वर्तमान को आनंद से जीने वाले एक्टर आशुतोष राणा की।
खुद रखा अपना नाम
10 नवंबर साल 1967 को मध्य प्रदेश के गाडरवारा में एक साधारण परिवार में जन्म हुआ। माता पिता ने नाम रखा – रामनारायण निखारा। जब 11 वीं में पहुंचे तो भगवान शिव के प्रति आस्था बढ़ी और खुद से अपना नाम बदलकर आशुतोष राणा रख लिया।
गुरु के कहने पर एमएसडी चले गए
एक्टिंग का शौक था तो सागर यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन करने के दौरान ड्रामा में भाग भी लेते। एक दिन अपने परमपुज्य आध्यात्मिक गुरु के कहने पर दिल्ली आ गए और साल 1991 में एनएसडी में एडमिशन ले लिया। आशुतोष राणा मानते हैं कि जितना बड़ा सपना उनती बड़ी चुनौतियां।
संघर्ष शब्द से भी नहीं रखते इत्तेफाक
वो कहते हैं कि 'अगर मैं किसी दूसरे व्यक्ति या समाज के काम के लिए अपना खून पसीना बहाऊं, अपना शरीर गलाऊं, तब वो काम संघर्ष की श्रेणी में आता है। खुद के सपनों को पूरा, आप ही नहीं करेंगे, तो कौन करेगा, खुद का सपना पूरा करने को किए जाने वाले काम संघर्ष की श्रेणी में नहीं आते।'
पैर छूने पर भड़क उठे महेश भट्ट
फिर अपने गुरु जी के कहने पर वो महेश भट्ट से मिले। और उन्हें साल 1995 में 'स्वाभिमान' टीवी सीरियल मिल गया। जिसके बाद उनकी एक्टिंग का सफर चल निकला। आशुतोष राणा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'जब मैं फिल्म डायरेक्टर महेश भट्ट से मिलने गया। तब मैंने उनके पैर छू लिए। पांव छूते ही महेश भट्ट भड़क गए। क्योंकि उन्हें पैर छूने वाले इंसान पसंद नहीं थे। उन्होंने मुझे सेट से बाहर निकलवा दिया।'
'मैं अपने संस्कार नहीं छोड़ सकता'
पर इसके बाद भी आशुतोष राणा जब भी महेश भट्ट से मिलते उनके पैर छूने के लिए आगे बढ़ जाते। फिर एक दिन महेश भट्ट ने पैर छूने का कारण पूछ लिया। तब आशुतोष राणा ने जवाब देते हुए कहा कि 'बड़ों के पैर छूना मेरे संस्कार में है, जिसे मैं छोड़ नहीं सकता।'
रेणुका को देखते ही दिल दे बैठे
आशुतोष राणा ने साल 2001 में एक्ट्रेस रेणुका शहाणे से शादी की। पहली ही मुलाकात में रेणुका को देखते ही आशुतोष को प्यार हो गया था। एक इंटरव्यू में आशुतोष राणा ने बताया था कि 'साल 1998 में पहली बार रेणुका से मिला तो मैंने कहा कि, हम आपके बड़े प्रशंसक हैं। ये सुनकर वो बेहद खुश हुईं। वक्त गुजरने के साथ धीरे-धीरे हम करीब आ गए। मैंने ठान लिया था कि मैं रेणुका को आई लव यू कहने को मजबूर कर दूंगा।'
जब रेणुका ने कहा - I LOVE YOU
आशुतोष राणा बताते हैं कि 'एक दिन मैंने उन्हें फोन पर एक कविता सुनाई। इस कविता में इकरार, इनकार, खामोशी, खालीपन और झुकी निगाहें, सब कुछ लिखा था। कविता को सुनने के बाद रेणुका ने मुझे आई लव यू कह दिया। ये सुनकर मैं खुशी से पागल हो गया था।'
तलाकशुदा थीं रेणुका शहाणे
तब रेणुका शहाणे तलाकशुदा थीं। उनकी पहली शादी मराठी थिएटर के डायरेक्टर विजय केनकरे से हुई थी। रेणुका के मन में शादी को लेकर कुछ असमंजस था। लेकिन मुलाकात के करीब ढाई साल बाद साल 2001 में दोनों ने शादी कर ली। इनके दो बेटे हैं - शौर्यमान राणा, सत्येंद्र राणा।
हमेशा दिल में रहती हैं मां...
आशुतोष राणा को अपनी मां की याद कभी नहीं आती। इसके पीछे कारण ये है कि वो अपनी मां को कभी भूले ही नहीं। उनकी मां उनके साथ हमेशा रहतीं। उनके दिल मैं, उनके मन में। वो कहते हैं कि 'मुझे जो विचार मिले हैं वो मेरी मां से मिले हैं, और जो साहस मिला है वो मेरे पिता से मिला है। इस वजह से मैं बड़े साहस के साथ अपने विचार रखता हूं।'
100 से ज्यादा फिल्मों में किया काम
चाहे 'दुश्मन' का 'गोकुल पंडित' हो, 'संघर्ष' का 'लज्जा शंकर पांडे', फिल्म 'हम्टी शर्मा की दुल्हनिया' के 'कमलजीत प्रताप सिंह' हों या फिर 'मुल्क' के 'संतोष आनंद', 'भीड़' के 'इंस्पेक्टर यादव' या फिर 'पठान' और 'टाइगर 3' के 'कर्नल सुनील लुथरा' आशुतोष राणा ने अपने 27 साल के करियर में 100 से ज्यादा हिंदी, तेलुगु, मलयालम, बंगाली, पंजाबी भाषा की फिल्मों में एक से एक बेहतरीन किरदार निभाए। बेस्ट विलेन के लिए दो बार फिल्मफेयर का अवार्ड मिला।
लिखकर मिटाना, मिटाकर लिखना...
वो एक सवाल के जवाब में कहते हैं कि 'एक विद्यार्थी के रूप में लर्निंग से ज्यादा जरूरी होती है अनलर्निंग। तभी सीखने की तैयारी होती। लिखकर मिटाना, मिटाकर लिखना। ये सतत प्रक्रिया है। एक एक्टर के रूप में मैं मानता हूं कि अभिनय की यात्रा बाहरी जगत की यात्रा नहीं होती ये अंतर्जगत की यात्रा होती है। मैं कभी भी प्रयास नहीं करता कि मैं किसी किरदार को बनाऊं।'
खुद के अंतर्मन की करनी होगी यात्रा
'मेरी कोशिश रहती है कि, मैं खुद को मिटा दूं, जब खुद का किरदार मिट जाएगा इसके बाद एक दूसरा किरदार खड़ा होगा। खुद को मिटाने के लिए खुद को जानना होगा और खुद को जानने के लिए खुद के अंदर रहना और उसकी यात्रा करनी होगी।'
दो किताबें लिखी
आने वाले वक्त में वो कई सारे प्रोजेक्ट में काम कर रहे हैं। वो किताबें पढ़ने के भी बेहद शौकीन हैं। 'मौन मुस्कान की मार' और 'रामराज्य' जैसी किताबों के लेखक भी हैं।
अकेले ही रहना करते पसंद
आशुतोष राणा जिंदगी के उतार चढ़ाव से डरते नहीं हैं वो कहते हैं कि किसी पार्टी या फंक्शन में अकेले ही जाना चाहिए। क्योंकि, जब आपका करियर अच्छा चल रहा होता है तो आप भीड़ से घिरे रहते हैं पर बुरे दौर में लोग आसपास नहीं रहते। आप अकेले रहते हैं तो कोई भाप नहीं पाता कि आप अकेले हैं तो ये आपका अच्छा दौर है या बुरा।
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