Actor Bharat Bhushan : जिनका सबकुछ बिक गया

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गुड लुक्स और चार्मिंग पर्सनालिटी का हर कोई दीवाना था। राज कपूर, देव आनंद और दिलीप कुमार का दौर होते हुए भी इन्होंने बेहतरीन एक्टिंग से पहचान बनाई। 150 से ज्यादा फिल्मों में काम कर खूब पैसा कमाया। लेकिन, एक दिन अर्श से फर्श पर आ गिरे। लीड एक्टर से साइड एक्टर, साइड एक्टर से जूनियर आर्टिस्ट बने। और जब ये भी रोल मिलने बंद हो गए तो गार्ड बन गए। हर किसी ने मुंह मोड़ लिया था। अब महंगे बंगले की जगह किराये का घर था और लग्जरी गाड़ी की जगह बस का धक्के भरा सफर। एक सुकून था वो एक चीज उनके पास थी। लेकिन जब रोटी के लिए उसको भी बेचना पड़ा तो उनकी आत्मा झकझोर गई। आज कहानी एक्टर भारत भूषण की। जिंदगी के आखिरी दिनों में पाई-पाई के मोहताज हो गए। न कोई इलाज कराने वाला था। न कोई अर्थी उठाने वाला।

यूपी के मेरठ में रायबहादुर मोतीलाल भल्ला रहते थे। वो नामी वकील थे। 14 जून साल 1920 को जन्में अपने बेटे भारत को भी वो वकील बनाना चाहते थे। लेकिन, भारत फिल्मों में काम करना चाहते थे। शुरुआती पढ़ाई करने के बाद अलीगढ़ से ग्रेजुएशन किया। फिर अपने सपनों को रंग भरने के लिए मुंबई आ गए। भारत जब मुंबई पहुंचे तो उनके पास डायरेक्टर महबूब खान के लिए एक सिफारिशी लेटर था। वो महबूब खान से मिले। उन्हें सिफारशी लेटर दिखाया। लेकिन, महबूब खान ने नजरअंदाज करते हुए भारत को काम देने से मना कर दिया। करीब एक साल भटकने के बाद वो डायरेक्टर केदार शर्मा से मिले। केदार शर्मा ने साल 1941 में रिलीज हुई अपनी फिल्म ‘चित्रलेखा’ में भारत को एक छोटे से रोल में कास्ट किया। और यहीं से उनका फिल्मी सफर शुरु हो गया।

फिर डायरेक्टर रामेश्वर शर्मा की साल 1942 में रिलीज हुई फिल्म ‘भक्त कबीर’ में बतौर लीड एक्टर काम मिला।

अगले 10 सालों में ‘भाई चारा’, ‘सावन’, ‘जन्माष्टमी’, ‘हमारी शान’ जैसी फिल्में कीं। लेकिन, असल पहचान साल 1952 में रिलीज हुई फिल्म ‘बैजू बावरा’ से मिली।

साल 1954 की ‘मिर्जा गालिब’ के बाद से तो भारत की किस्मत चमक गई। उन्होंने मिर्जा गालिब के किरदार को इतना बखूबी निभाया कि हर कोई उनका दीवाना हो गया।

50 और 60 के दशक में भारत फिल्मों से अच्छे पैसे कमाते। बंद्रा में कई बंगले खरीदे, महंगी गाड़ियों से चलते। जिंदगी बेहद अच्छी गुजर रही थी।

अपने बड़े भाई रमेश चंद्र भल्ला के कहने पर वो फिल्म प्रोडक्शन में उतरे। साल 1956 की ‘बसंत बहार’ और साल 1960 की ‘बरसात की रात’ बनाई। दोनों ही फिल्में सुपरहिट हुईं। जिसके बाद भारत भूषण खूब पैसा बनाया। 

लेकिन वक्त ज्यादा दिनों तक एक जैसा नहीं रहता। भारत भूषण ज्यादा पैसे कमाने के लिए कर्जा लेकर फिल्में बनाते रहे। लेकिन, सभी फिल्में फ्लॉप होने लगी। साल 1964 में फिल्म 'दूज का चांद' बनाई। जिसके बाद बहुत नुकसान हुआ। लगातार फ्लॉप होती फिल्मों ने उनकी प्रोडक्शन कंपनी को डुबो दिया।

इधर राजेश खन्ना और धर्मेंद्र जैसे एक्टर्स का दौर शुरू हो चुका था। तो भारत को लीड रोल मिलना भी बंद हो गए। इसलिए मजबूरी में आकर सिर्फ 49 साल की उम्र में उन्हें साल 1969 की फिल्म 'प्यार का मौसम' में शशि कपूर के पिता का रोल करना पड़ा।

90 के दशक में जूनियर आर्टिस्ट के रोल करने पड़े। एक दिन उन्हें जूनियर आर्टिस्ट के रोल मिलना भी बंद हो गए।

आखिरी बार साल 1993 में रिलीज हुई फिल्म ‘आखिरी चेतावनी’ में उन्होंने एक जज का रोल किया था।

एक दौर में जिस स्टूडियो में हर आदमी भारत भूषण को सलाम करता था। उसी स्टूडियो में बहुत समय तक गार्ड की नौकरी की। ऐसे में तंगहाली ऐसी थी कि, भारत को एक वक्त के खाने के लिए भी परेशान होना पड़ा।

कंगाली की कगार पर आ चुके भारत का कार-बंगला सब कुछ बिक गया। भारत भूषण के सबसे प्यारा बंगला था आशीर्वाद। जिसे उन्होंने एक्टर राजेंद्र कुमार को बेचा। फिर राजेंद्र कुमार ने सुपरस्टार राजेश खन्ना को बेच दिया। किराए के घर में रहने लगे। लग्जरी गाड़ियों की जगह अब बसों में धक्के खाते। लेकिन अब भी सुकून था कि उनकी किताबें उनके साथ थीं। एक रोज तंगहाली ने ये साथ भी छीन लिया। भारत को भूख मिटाने के लिए किताबें रद्दी के भाव बेचनी पड़ीं। किताबों को बेचना उनके लिए सबसे बड़ा दुख था।

भारत की किस्मत इस तरह रूठी कि वापस उनकी तरफ नहीं देखा। आखिरी वक्त में वो बहुत बीमार हो गए। न कोई उनका इलाज करवाने वाला था और न कोई अर्थी उठाने वाला। एक दिन इस दर्द का अंत हो गया। करीब 72 साल की उम्र में 27 जनवरी साल 1992 को उनकी मौत हो गई।

भारत भूषण ने इस दुनिया से जाते-जाते एक ही बात कही थी – ‘मौत तो सबको आती है पर जीना सबको नहीं आता, और मुझे तो बिल्कुल नहीं आया।’

भारत भूषण ने मेरठ के जमींदार राय बहादुर बुद्ध प्रकाश की बेटी सरला से शादी की थी। साल 1960 में दूसरी बेटी को जन्म देने के बाद सरला का निधन हो गया। भारत ने 1967 में एक्ट्रेस रत्ना से शादी की। रत्ना ने भी भारत का कुछ सालों बाद साथ छोड़ दिया।

भारत की दो बेटियां थीं, पहली बेटी अनुराधा को पोलियो हो गया था। दूसरी अपराजिता थीं। बेटी अपराजिता ने अपने पति के निधन के बाद एक्टिंग की तरफ रुख किया। जिसमें से एक उन्होंने रामानंद सागर के टीवी सीरियल में रामायण मंदोदरी का किरदार निभाया।

 

साल 1955 में बेस्ट एक्टर का फिल्म फेयर का अवार्ड जीतने वाले भारत भूषण की जिंदगी इस बात का सबूत रही कि शोहरत और लोकप्रियता कुछ पल की होती है।

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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