न कोई अश्लीलता, न कोई दिखावा अपनी लाजवाब कॉमिक टाइमिंग के दम पर एक्टर देवेन वर्मा लोगों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देते थे। 50 सालों तक फिल्मों में काम किया लेकिन करियर के आखिरी पड़ाव में ये नई पीढ़ी के कलाकारों से क्यों दुखी हुए।
‘एक बार एक फिल्म की शूटिंग के दौरान एक महिला असिस्टेंट सिगरेट पीते हुए पास आई और चुटकी बजाते हुए बोली, चलिए सर आपका शॉट रेडी है। ये बात मुझे नागवार गुजरी और फिर मैंने बॉलीवुड से खुद को अलग कर लिया।’
ये बातें एक इंटरव्यू में उन्होंने कही थी जो शानदार कलाकार थे। न कोई अश्लीलता, न कोई दिखावा अपनी लाजवाब कॉमिक टाइमिंग के दम पर लोगों को हंसा-हंसा कर लोटपोट कर देते थे।
आज कहानी एक्टर देवेन वर्मा की। जिन्होंने 50 सालों तक फिल्मों में काम किया
लेकिन करियर के आखिरी पड़ाव में ये नई पीढ़ी के कलाकारों के बर्ताव से दुखी हुए तो बॉलीवुड से दूरी बना ली।
मुंबई में अपनी पत्नी सरला देवी के साथ रहते थे बलदेव सिंह वर्मा, जो पहले चांदी के व्यापारी और बाद में फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर का काम करते थे। इन्हीं के घर 23 अक्टूबर साल 1936 को एक बेटे का जन्म हुआ, नाम रखा - देवेंदु वर्मा।
इनकी चार बहनें थीं दो बड़ी - निरुपमा और तुषार, दो छोटी अमिता और पारुल। शुरुआती पढ़ाई के बाद पुणे के नवरोज वाडिया कॉलेज से पढ़ाई की। यहीं पर उन्होंने अपना नाम देवेंदु वर्मा से देवेन वर्मा कर लिया।
माता-पिता चाहते बेटा पढ़ लिख कर वकील बने। देवेन वर्मा ने लॉ की पढ़ाई भी शुरू कर दी। पर कॉलेज में वो स्टेज शोज करते और इसी दौरान उनका रुझान एक्टिंग की तरफ गया।
एक्टिंग में रच बस चुके देवेन वर्मा को एक वक्त के बाद लगने लगा कि वो किताबों के बीच फंसकर रह गए हैं। पढ़ाई से मन उचटा तो कॉलेज छोड़कर एक ड्रामा ग्रुप से जुड़े।
एक शो दौरान जब देवेन वर्मा परफॉर्म कर रहे थे। सामने भीड़ में बैठे थे फिल्म डायरेक्टर बीआर चोपड़ा जो उस वक्त अपनी फिल्म ‘धर्मपुत्र’ पर काम कर रहे थे।
बीआर चोपड़ा, देवेन वर्मा की कला से प्रभावित हुए। उन्होंने फिल्म ‘धर्मपुत्र’ के लिए देवेन वर्मा को साइन कर लिया। इस फिल्म के लिए देवेन वर्मा को 600 रुपये फीस मिली।
साल 1961 की फिल्म ‘धर्मपुत्र’ से देवेन वर्मा ने बॉलीवुड में डेब्यू कर दिया। साल 1947 के बंटवारे पर बेस्ड ये फिल्म फ्लॉप हो गई। और देवेन वर्मा फिर से स्टेज शोज की तरफ मुड़ गए। पर बीआर चोपड़ा देवेन वर्मा की प्रतिभा से अच्छी तरह वाकिफ थे। उन्होंने दो साल बाद साल 1963 की फिल्म ‘गुमराह’ में देवेन वर्मा को एक बार फिर से मौका दिया।
इस फिल्म के बाद देवेन वर्मा को थियेटर और फिल्म में से किसी एक को चुनना था और उन्होंने फिल्मों की तरफ कदम बढ़ाया।
साल 1964 की फिल्म ‘कव्वाली की रात’ की तो देवेन वर्मा पहली बार नोटिस किए गए। साल 1966 की ‘देवर’ और ‘अनुपमा’ जैसी फिल्मों बाद वो एक अच्छे एक्टर के रूप में साबित हो गए।
पर सफलता की बुलंदी का मुकाम आने में 14 साल लग गए। फिल्म थी, साल 1975 की ‘चोरी मेरा काम’। इसके बाद तो फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर की भीड़ इनके घर में जमा हो गई। हर कोई इन्हें अपनी फिल्म में लेना चाहता था।
देवेन वर्मा को साल 1975 की ‘चोरी मेरा काम’, साल 1979 की ‘चोर के घर चोर’ और साल 1983 की ‘अंगूर’ के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट कॉमेडियन का खिताब मिला।
इनका स्वभाव ही था कि ये किसी को भी न नहीं कह पाते। इसलिए एक साथ 16 फिल्में साइन कर लीं और उन पर काम भी शुरू कर दिया।
इस वक्त का जिक्र करते हुए देवेन वर्मा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘उन दिनों मैं रात के वक्त में फिल्म ‘आहिस्ता आहिस्ता’ की शूटिंग मुंबई में करता, फिर सुबह फ्लाईट पकड़ कर हैदराबाद जाकर फिल्म ‘प्यासा सावन’ की शूटिंग करता और फिर वहां से निकलकर चार बजे दिल्ली जाता जहां यश चोपड़ा की ‘सिलसिला’ का काम चल रहा था और रात को फिर से ‘आहिस्ता आहिस्ता’ की शूटिंग के लिए मुंबई जाना पड़ता।’
करीब पांच दशक के सफर में देवेन वर्मा ने करीब 150 से ज्यादा फिल्में की। आखिरी बार साल 2003 की फिल्म ‘कलकत्ता मेल’ में नजर आने वाले देवेन वर्मा ने ‘यकीन’, ‘नादान’, ‘बेशर्म’, ‘चटपटी’, ‘बड़ा कबूतर’ और ‘दाना पानी’ जैसी फिल्मों को प्रोड्यूस और डायरेक्ट भी किया।
देवेन वर्मा ने हर बड़े एक्टर और डायरेक्टर के साथ किया। सभी लोग उनके स्वभाव को चाहते थे।
कभी-कभी एक्टर अशोक कुमार के घर वो खाना खाने चले जाते, जहां
उनकी मुलाकात अशोक कुमार की बेटी रूपा गांगुली से हुई। रूपा और देवेन एक दूसरे को दिल दे बैठे। पहले तो अशोक कुमार इस रिश्ते के खिलाफ थे, पर वक्त के साथ वो मान गए। साल 1967 में रूपा गांगुली और देवेन वर्मा ने शादी कर ली और दोनों का साथ मरते दम तक रहा।
साल 2003 में देवेन वर्मा ने बॉलीवुड से दूरी बना ली। जिसके बारे में एक बार, उन्होंने बताया था कि ‘मैं नई पीढ़ी के आर्टिस्टों के साथ काम करने में खुद को असहज महसूस करता और उनका तरीका मुझे रास नहीं आता।’
देवेन वर्मा को मीठा खाने का बहुत शौक था। उन्होंने कहा था कि ‘मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मेरा ये शौक एक दिन मुझे बहुत रुलाएगा। सीढ़ियां चढ़ने-उतरने, भागने-दौड़ने में दिक्कत होने लगी।’
जिंदगी के आखिरी वक्त डायबिटीज और किडनी की बीमारी से परेशान हुए। दो दिसंबर, साल 2014, दिल का दौरा पड़ने से 78 साल की उम्र में देवेन वर्मा दुनिया को अलविदा कह गए।
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