Actor Mehmood : रील और रियल दोनों का राजा

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ये वो फिल्मकार हैं जिन्होंने बड़े पर्दे पर हंसी के रंग के भरे। और बॉलीवुड के पहले कॉमेडी किंग बने। इन्हें हीरो से ज्यादा फीस मिलती, लड़कियों में भी बेहद पॉप्युलर रहते। एक राजा की तरह जिंदगी जीते। लेकिन ये सब पाना आसान नहीं था। एक दो नहीं सात आठ साल मुफलिसी और गरीबी में दिन गुजारे। कई लोगों ने कहा कि आप एक्टर बन ही नहीं सकते। लेकिन हारे नहीं। आज कहानी महमूद अली की जो जिंदगी भर लोगों को हंसाता रहे लेकिन इनका खुद का आखिरी वक्त बेहद दुख भरा था।

29 सितंबर, साल 1933 को महमूद अली खान का जन्म हुआ। पिता मुमताज अली जो 40 और 50 के फेमस थिएटर आर्टिस्ट थे। महमूद की मां का नाम लतीफुन्निसा था। महमूद पिता की तरह ही एक्टर बनने का शौक था। पिता ने सिफारिश की और महमूद को बॉम्बे टाकीज की साल 1943 की फिल्म ‘किस्मत’ में एक्टर अशोक कुमार के बचपन के रोल मिला। कुल आठ भाई बहनों में महमूद दूसरे नंबर पर थे। इतना बड़ा परिवार आर्थिक हालात भी ठीक नहीं तो घर चलाने की जिम्मेदारी महमूद पर आई। वो मुंबई की लोकल ट्रेन में टॉफियां, पेन, कंधी बेचा करते। इसी बीच ड्राइविंग भी सीखी और 

फिल्म प्रोड्यूसर और डायरेक्टर राजकुमार संतोषी के पिता प्रोड्यूसर पीएल. संतोषीफिल्म प्रोड्यूसर ज्ञान मुखर्जी, गीतकार गोपाल सिंह नेपाली, भरत व्यास और राजा मेंहदी अली खान के ड्राइवर बने।

इसी वजह से उनको कई बार फिल्मों की शूटिंग देखने को मिल जाती।

ऐसे ही एक दिन साल 1951 की फिल्म ‘नादान’ की शूटिंग के दौरान एक जूनियर आर्टिस्ट कई रीटेक के बाद भी डायलॉग नहीं बोल पा रहा था।

डायरेक्टर हीरा सिंह ने झल्लाकर पास खड़े महमूद से कहा - जरा तुम डायलॉग बोल कर दिखाओ। महमूद कैमरे के सामने खड़े हो गए और झट से डायलॉग बोल दिए। उनकी एक्टिंग से डायरेक्टर साहब खुश हुए और महमूद को इनाम में 300 रुपये दे दिए।

महमूद को तब ड्राइविंग में महीने में सिर्फ 75 रुपये ही मिलते। महमूद को समझ में आ गया कि एक्टर बनने के बाद अच्छा पैसा और बेहतरीन लाइफ मिल सकती है। ड्राइवर का काम छोड़ एक्टर बनने का ख्वाब देखा। लेकिन इतना आसान नहीं था। आगे कड़ा संघर्ष था। दो बीघा जमीन, जागृति, सीआईडी, प्यासा जैसी फिल्मों में छोटे-मोटे रोल किए पर खास फायदा नहीं हुआ।

इसी दौरान महमूद की मुलाकात एक्ट्रेस मीना कुमारी की बहन मधु से हुई और पहली नजर में वो दिल दे बेठै। साल 1953 में दोनों ने शादी कर ली। काम की तलाश में एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो जाते।

प्रोड्यूसर एवी मयप्पन की एवीएम प्रोडक्शन की टीम ने कहा कि - आप कभी एक्टिंग नहीं कर सकते।

अपने साढ़ू और फिल्म डायरेक्टर कमाल अमरोही के पास गए तो उन्होंने कह दिया –

'आप एक्टर मुमताज अली के बेटे हैं और जरूरी नहीं है कि एक एक्टर का बेटा एक्टर बन सके। आपके पास फिल्मों में काम करने की योग्यता नहीं है।'

ये बात उनके दिल में घर कर गई। बेशख उनकी जिंदगी में तमाम परेशानी थी ये दौर मुफलिसी का था। पर वो हारे नहीं। नये जोश के साथ मेहनत जारी रखी। सात साल संघर्ष के बाद एक रोल मिला। ये रोल साल 1958 की फिल्म ‘परवरिश’ में एक्टर राज कपूर के भाई का था। फिल्म हिट हुई और महमूद की एक्टिंग की भी तारीफ हुई। साल 1959 की फिल्म ‘छोटी बहन’ से तो उनकी गाड़ी चल पड़ी। इसके बाद अगले पांच दशक तक 300 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया। बतौर कॉमेडियन सबसे ज्यादा पसंद किए गए और इंडस्ट्री के कॉमेडी किंग कहलाए। एक वक्त आया जब वो फिल्मों में हीरो से ज्यादा फीस लेते। महमूद ने साल 1965 की फिल्म 'भूत बंगला' से प्रोडक्शन में भी कदम रखा।

पाप्यूलर के शिखर पर होने के बाद भी वो डाउन टू अर्थ थे। वो नए कलाकारों को काम भी देते। जिसमें सबसे पहला नाम राहुल देव बर्मन यानी पंचम दा है और दूसरा नाम अमिताभ बच्चन का है। 

करियर तो अच्छा चल रहा था। पर निजी जिंदगी में काफी उछल-पृथल थी। एक्ट्रेस अरुणा ईरानी से महमूद के अफेयर के किस्से सामने आए। कहा जाता है कि दोनों ने शादी भी कर ली थी पर दोनों ने ही कभी इसको सार्वजनिक कबूल नहीं किया। इधर साल 1967 पहली ने पत्नी मधु का साथ छूट गया।

महमूद के छोटे भाई अनवर अली जो खुद एक एक्टर थे उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि भाईजान की पहली शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चली। उन दोनों के 4 बेटे हुए। भाईजान ने दूसरी शादी यूएस की रहने वाली ट्रेसी से की। जिससे उनकी मुलाकात महाबलेश्वर में 1965 की फिल्म 'भूत बंगला' की शूटिंग के दौरान हुई। दूसरी पत्नी से भी उनके 3 बच्चे हुए। इसके अलावा एक और बेटी भी है जिसे ट्रेसी ने गोद लिया था।

महमूद के कुल आठ बच्चों में जाने माने गायक लकी अली हैँ। महमूद एक राजा की तरह जिंदगी जीते। अनवर अली एक इंटरव्यू में बताते हैं कि भाईजान का तौर-तरीका और रहन-सहन आलीशान था। उनके पास दो घोड़े थे जो वो विदेश से लाए थे। 24 महंगी गाड़ियों का कलेक्शन था। वो अपने वॉचमैन, लिफ्टमैन और पोस्टमैन को विदेशी घड़ियां गिफ्ट करते।

महमूद सभी धर्मों को मानते। अनवर अली आगे बताते हैं कि भाईजान सभी धर्मों में विश्वास करते। उन्होंने कई फिल्म में अपना ऑनस्क्रीन नाम महेश रखा, जो कि भगवान शिव का ही एक नाम है।

पांच बार फिल्म फेयर का अवार्ड जीतने वाले महमूद की आखिरी फिल्म साल 1996 की 'दुश्मन दुनिया का' थी। नेक दिल महमूद को एक लत थी सिगरेट पीने की। जिसने उनको बीमार कर दिया। ज्यादा स्मोकिंग की वजह से फेफड़े खराब हो गए। इलाज कराने यूएस गए। जिसने अपनी पूरी जिंदगी लोगों को हंसाया, उसका आखिरी वक्त सबसे बुरा और दुख भरा था। 23 जुलाई साल 2004 को 72 साल की उम्र में अमेरिका में उनका निधन हो गया। उनके निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को भारत लाया गया। आज एक्टर महमूद हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी फिल्में सालों साल तक हमारा मनोरंजन करती रहेगी।

 

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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