Actor Pradeep Kumar : अपनों से नफरत मिली, गैरों से प्यार

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गुजरे जमाने के दिग्गज एक्टर प्रदीप कुमार जिनके बारे में कहा जाता था कि वो फिल्मी पर्दे पर बादशाहों का किरदार उनसे बेहतर कोई और नहीं निभा सकता था। अपनी कला के दम पर पर्दे के एक–एक पैसे के मोहताज हो गए।

 

कोलकाता में एक फ्लैट में एक बुजुर्ग रहते। गरीबी और मुफलिसी तो थी ही, वो लकवे की बीमारी के कारण बिस्तर में लेटे रहते। बिल्कुल तंहा और अकेले, साथ में कोई भी अपना नहीं। वजह जानें क्या रही होगी पर तीन बेटियां और एक बेटा जो पैसे वाले भी थे और जाने-माने भी, उनकी कोई मदद नहीं करते। उनको देखने तक नहीं आते।

उन बुजुर्ग के पास खुद का घर नहीं। इलाज के पैसे नहीं। जिस फ्लैट में वो रहते उसका इंतजाम कोलकाता के एक व्यापारी ने किया था। जो उन बुजुर्ग को पहले से जानते और उनकी इज्जत करते। देखभाल के लिए एक लड़का भी लगाया। उनका खर्च भी वही उठाते। अक्सर मिलने भी चले चाते।

देखभाल करने वाला लड़का भी उन बुजुर्ग बेहद ख्याल रखता। उन्हें ‘पापाजी’ कहता। ‘पापाजी’ के पास इस लड़के को देने के लिए कुछ नहीं था। एक दौर होता था, जब दौलत, शोहरत, नामक्या नहीं था इन बुर्जग के पास। अब सिर्फ जीने के लिए चंद सांसे ही बची थी।

ये बुजुर्ग कोई और नहीं 50 दशक के सफर में 200 से ज्यादा फिल्में करने वाले गुजरे जमाने के दिग्गज एक्टर प्रदीप कुमार जिनके बारे में कहा जाता था कि वो फिल्मी पर्दे पर बादशाहों का किरदार उनसे बेहतर कोई और नहीं निभा सकता था।

प्रदीप कुमार जो अपनी कला के दम पर पर्दे के राजा बने पर जिंदगी के आखिरी वक्त पर एक–एक पैसे के मोहताज हो गए। बंगाली ब्राह्मण फैमिली में 4 जनवरी,  साल 1925 को शीतल बटबयाल यानी प्रदीप कुमार का जन्म हुआ।

बचपन में अशोक कुमार की फिल्में देखी तो उसी में मन लग गया। जब वो 17-18 बरस के हुए तो माता-पिता से कहा – ‘मैं फिल्मों में काम करना चाहता हूं।’

ये बात कहते ही मानों घर में तूफान आ गया। घरवालों ने मना किया। प्रदीप कुमार ने उनकी मर्जी के खिलाफ ही फिल्मी दुनिया की तरफ कदम बढ़ा दिया। 

प्रदीप कुमार ने एक इंटरव्यू में बताया था कि मैंने असिस्टेंट कैमरामैन के तौर पर फिल्मी सफर शुरू किया। फिर फिल्मकार देबकी बोस मुझे कैमरे के सामने ले आए। साल 1947 की बंगाली फिल्म ‘अलकनंदा’ में जब मैंने काम किया, वहां से मुझे लोगों ने नोटिस किया। उस वक्त मेरी उम्र कोई 21-22 बरस की रही होगी। इसके बाद मैं मुंबई आ गया। वहां शशधर मुखर्जी और अशोक कुमार ने फिल्मिस्तान स्टूडियो शुरू किया था। उनके साथ जुड़ गया।’

पर रास्ता इतना आसान नहीं था, चार-पांच साल संघर्ष किया। करीयर के शुरुआती दौर में फिल्मिस्तान स्टूडियो के बैनर तले बनीं साल 1952 की ‘आनंद मठ’, साल 1953 की ‘अनारकली’ और साल 1954 की फिल्म ‘नागिन’ की इसके बाद इनका फिल्मी सफर चल पड़ा।

एक दौर वो भी आया, जब प्रदीप कुमार की एक साल में 10-10 फिल्में रिलीज हुई। साल 1955 की ‘आदिल-ए-जहांगीर’ और 1967 में ‘नूरजहां’ जैसी फिल्मों में मीना कुमारी के साथ बादशाह जहांगीर के तौर पर नजर आए।

साल 1983 की फिल्म ‘रजिया सुल्तान’ बनाते वक्त कमाल अमरोही को बादशाह के किरदार के लिए प्रदीप कुमार के अलावा किसी दूसरे एक्टर का ख़्याल तक नहीं आया।

प्रदीप कुमार बांग्ला भाषी थे। पर उर्दू और हिंदी यूँ बोलते थे कि, इन जुबां को अपना कहने वाले भी एक बार उन्हें सुनने को बेचैन रहते।

कहते हैं कि प्रदीप कुमार की कद-काठी, शक्ल-ओ-सूरत एक शहजादे की तरह लगती जब वो बादशाहों का किरदार करते तो लोग उन पर फिदा हो जाते।

उस दौर में एक ही हीरोइन के साथ बार-बार काम करने से हीरो बचते थे पर माला सिन्हा के साथ करीब आठ और मीना कुमारी के साथ करीब सात फिल्में कीं। जब फिल्मों में हीरो के रोल मिलना कम हुए तो वो कैरेक्टर भूमिकाएं करने लगे।

‘फिल्मी पर्दे के बादशाह’ प्रदीप कुमार कभी ‘बॉक्स ऑफिस के शहंशाह’ नहीं बन सकें। उन्होंने फिल्मों से जितनी मशहूरियत कमाई, उतनी दौलत नहीं कमा सके।

प्रदीप कुमार फिल्मी पर्दे पर जितना प्यार मिला,  उनका निजी जीवन उतना ही दुख भरा रहा। उनके बच्चों ने उन्हें लकवे की हालत में अकेला छोड़ दिया। जब भी इस बारे में उनसे पूछा जाता तो वो खामोश रहते।

एक इंटरव्यू में बताया था कि पत्नी गुजर चुकी हैं। तीनों बेटियां बीना, रीना, मीना और बेटा देबी प्रसाद में से कोई भी पत्नी के निधन के बाद कभी मुझसे मिलने तक नहीं आया।’

प्रदीप कुमार की तीन बेटियों में एक एक्ट्रेस बीना मुखर्जी है, जिन्होंने कई हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियल में काम किया है। बीना मुखर्जी ने बंगाली एक्टर अजय विश्वास मुखर्जी से शादी है। इनके बेटे सिद्धार्थ मुखर्जी जो फिल्मों में असिस्टेंट डायरेक्टर हैं।  

प्रदीप कुमार जिंदगी के आखिरी में लकवे की बीमारी से जूझे। वो कोलकाता आ गए। रहने का कोई ठिकाना न मिला, तो व्यापारी प्रदीप कुंडलिया ने उनकी देखरेख की। सागर चौधरी नाम का लड़का प्रदीप कुमार की सेवा करता। उनके पास न पैसा था न घर और न ही कोई अपना, एक रोज सांसों ने भी साथ छोड़ दिया। 27 अक्टूबर साल 2001, 76 साल की उम्र में वो दुनिया छोड़कर चले गए।

 

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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