Actor Prem Chopra : नेकदिल ‘विलेन’ की कहानी | Manchh न्यूज़

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प्रेम चोपड़ा ने 60 सालों में 300 से भी ज्यादा फिल्में की। हीरो बने, विलेन बने, कैरेक्टर रोल किए और कॉमेडियन बनकर हंसाया भी। पर्दे पर भले ही वो बुरे किरदार निभाते थे असल में वो बहुत अच्छे इंसान हैं।

साल था 1973, फिल्म थी ऋषि कपूर और डिंपल कपाड़िया की ‘बॉबी’। फिल्म में उनका एक छोटा सा रोल था और सिर्फ एक लाइन का डायलॉग बोला। ‘प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा’ ये डॉयलॉग इतना हिट हुआ कि इनकी पहचान बन गया और सालों बाद आज भी हम सबकी जुबान पर है। आज कहानी एक्टर प्रेम चोपड़ा की।

ये वो दौर था जब भारत-पाकिस्तान बंटा नहीं था। लाहौर में रणबीर लाल चोपड़ा रहते वो सरकारी नौकरी करते थे। उनकी पत्नी रूपरानी चोपड़ा घर के साथ अपने पांच बच्चों का ख्याल रखतीं। इन्हीं पांच बच्चों में से एक थे, 23 सितंबर साल 1935 को जन्में प्रेम चोपड़ा।

साल 1947 में हुए बंटवारे के कुछ वक्त पहले ही रणबीर लाल चोपड़ा पूरी फैमिली को लेकर शिमला आ गए। दरअसल उन्हें पता था कि बंटवारे के चलते मुल्क के हालात बिगड़ने वाले हैं।

शिमला के सनातन धर्म वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय से प्रेम चोपड़ा ने पढ़ाई की। स्कूल में नाटकों में हिस्सा लेते, गांव की रामलीला में भाग लेते। तो एक्टिंग का शौक जागा। धीरे-धीरे जब बचपन से जवानी के पढ़ाव पर पहुंचे तो यही शौक जुनून बना। पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और वहां भी हिंदी, अंग्रेजी, पंजाबी, उर्दू भाषाओं में होने वाले नाटकों में हिस्सा लिया।

वक्त गुजरा तो फिल्मों में एक्टिंग करने का सपना देखा। दिक्कत ये थी पिता रणबीर लाल चोपड़ा चाहते थे कि प्रेम चोपड़ा एक्टर नहीं, डॉक्टर या कोई बड़े अफसर बनें। प्रेम चोपड़ा दोराहे पर थे। वो पिता के खिलाफ नहीं जा सकते थे और एक्टर भी बनना चाहते थे। पर कहते हैं कि आपका जुनून पक्का हो, पूरी काबिलियत हो, तो कोई रोक नहीं सकता।

हुआ यूं कि, एक बार पिता रणबीर लाल चोपड़ा प्रेम चोपड़ा का नाटक देखने चले गए और जब उन्होंने प्रेम चोपड़ा की एक्टिंग देखी तो देखते रह गए। पिता रणबीर लाल चोपड़ा ने बेटे प्रेम चोपड़ा से कहा कि ‘गलती मेरी है, मैं तुम्हें एक्टर बनने से रोक रहा था। तुम मुंबई जाओ। मैं तुम्हें नहीं रोकूंगा।’ साथ में एक सलाह भी दी ‘फिल्मों में काम ढूंढने के साथ अपना खर्च निकालने के लिए कोई नौकरी भी कर लेना।’

प्रेम चोपड़ा खुश थे। पिताजी की इजाजत थी, जोश था, उमंग थी, आत्मविश्वास था, रंगमंच में काम करने का एक्सपीरियंस था। तो फिर क्या, पहुंच गए मुंबई। लगा कि फिल्म वाले हाथों-हाथ ले लेंगे, बड़ी आसानी से काम मिल जाएगा, पर दिन बीते, हफ्ते बीते, महीनों बीत गए। काम तो दूर डायरेक्टर-प्रोड्यूसर को देख तक नहीं पाए। रहने के लिए जो कमरा लिया था उसका किराया देना था, रोटी खानी थी। पैसे घर से मांगते तो शर्म आती। ऐसे में पिता की नसीहत काम आई। टाईम्स ऑफ इंडिया के सर्कुलेशन डिपार्टमेंट में नौकरी की। पैसे की दिक्कत दूर हुई।

लंच टाइम और जब ऑफिस की छुट्टी होती तो फिल्मों में काम की तलाश में डायरेक्टर और प्रोड्यूसर के ऑफिस जाते। फिर किस्मत ने साथ दिया। एक बार वो किसी प्रोडक्शन हाउस गए थे वहां से  ट्रेन से वापस लौट रहे थे, तभी उनके हाथों में फोटोग्राफ्स देखकर

एक आदमी ने पूछा – क्या, आप एक्टर बनना चाहते हैं?’

प्रेम चोपड़ा ने कहा – ‘जी, कोशिश तो यही है।’

उस व्यक्ति ने बोला – ‘काम करोगे?, एक पंजाबी फिल्म है।’

प्रेम चोपड़ा झट से बोले – ‘जी, जरूर कर लूंगा, मुझे भाषा से कोई समस्या नहीं है।’

फिर क्या था उस व्यक्ति ने प्रेम चोपड़ा के हाथ में थमा दिया रणजीत स्टूडियो का पता।

प्रेम चोपड़ा रणजीत स्टूडियो गए और प्रोड्यूसर जगजीत सेठी से मिले। बतौर हीरो साल 1960 की फिल्म ‘चौधरी करनैल सिंह’ में काम मिला।

एक इंटरव्यू में प्रेम चोपड़ा ने बताया था कि ‘मुझे लग रहा था कि फिल्म ‘चौधरी करनैल सिंह’ का पता नहीं क्या होगा। बन भी पाएगी या नहीं। इसलिए नौकरी नहीं छोड़ी।’

ये फैसला सही भी रहा, फिल्म को बनने में वक्त लगा। पर जब फिल्म रिलीज हुई तो नेशनल अवॉर्ड के लिए नॉमिनेट हुई।

प्रेम चोपड़ा ने बतौर हीरो, 1962 की ‘शादी करने चला’, 1963 ‘ये धरती पंजाब की’ और ‘सपनी’ जैसी पंजाबी फिल्में और साल 1965 की हिंदी फिल्म ‘सिकंदर-ए-आजम’ में काम किया। पर कुछ खास मुकाम नहीं मिला। कुछ हिंदी फिल्मों में रोल किए पर कुछ खास मुकाम नहीं मिला।

फिर एक्टर मनोज कुमार की साल 1965 की फिल्म ‘शहीद’ में क्रांतिकारी सुखदेव के रोल ने प्रेम चोपड़ा को पहचान दिलाई। फिल्म हिट हुई और प्रेम चोपड़ा नौकरी छोड़ पुरी तरह बॉलीवुड में करियर बनाने जुट गए। प्रेम चोपड़ा को बतौर विलेन रोल ऑफर हुए और जिस फिल्म में वो विलेन बनती वो सुपरहिट होती इसलिए उस दौर का हर हीरो उन्हें अपनी फिल्म में विलेन के रोल में लेना चाहता था।

प्रेम चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘मैं हीरो बनना चाहता था, पर उसमें कॉम्पिटिशन था। इसलिए जो भी रोल्स ऑफर हुए, मैं करता गया। मुझे समझ में आ गया कि, अगर बॉलीवुड में टिकना है, तो हीरो बनने का ख्वाब छोड़ दो।’

इनकी एक्टिंग का आलम ये था कि, फिल्मों में विलेन के रोल देखकर लोग इनसे सच में डरते। एक इंटरव्यू में प्रेम चोपड़ा बताते हैं कि ‘एक बार मैं चंडीगढ़ गया। जहां कुछ लोग मुझे देख कर घबरा गए और अपने साथ की महिलाओं को छिपाने लगे। मैंने पास बुलाकर समझाया तब उन लोगों को लगा कि प्रेम चोपड़ा भी उन लोगों की तरह ही एक सामान्य इंसान हैं।’

प्रेम चोपड़ा ने पृथ्वीराज कपूर से लेकर रणबीर कपूर तक यानी कपूर खानदान की चार पीढ़ियों के साथ काम किया है।

सलमान खान के पिता सलीम खान ने बताया था कि ‘प्रेम चोपड़ा बेहद जिंदादिल इंसान हैं, उनसे सबकी दोस्ती थी। वो कभी यहां की बात वहां नहीं करते। न ही किसी खेमेबाजी में भरोसा करते। स्वभाव इतना अच्छा कि हर कलाकार उनके साथ काम करना चाहता। हमेशा अपनी शर्तों पर काम करते, लेकिन नखरे नहीं करते।’

ढेरों अवार्ड से सम्मानित प्रेम चोपड़ा ने 60 सालों के करियर में 300 से भी ज्यादा फिल्में की। हीरो बने, विलेन बने, कैरेक्टर रोल किए और कॉमेडियन बनकर हंसाया भी।

प्रेम चोपड़ा की शादी साल 1969 में उमा चोपड़ा से हुई। उमा चोपड़ा एक्टर राज कपूर की पत्नी कृष्णा कपूर, एक्टर प्रेम नाथ, राजेंद्र नाथ और नरेंद्र नाथ की बहन हैं। प्रेम चोपड़ा और उमा चोपड़ा की 3 बेटियां हैं। प्रेरणा जोशी जो कि एक्टर शरमन जोशी की पत्नी हैं। दूसरी पुनीता चोपड़ा जो एक्टर और सिंगर विकास भल्ला की पत्नी हैं और तीसरी बेटी हैं रिकिता नंदा जिनके पति का नाम है राहुल नंदा है।

बेटी रिकिता नंदा ने प्रेम चोपड़ा की बायोग्राफी लिखी है – प्रेम नाम है मेरा, प्रेम चोपड़ा।साल 2014 मे किताब के विमोचन के दौरान रितिका नंदा कहा था – किताब में मैंने पिताजी के किसी अफेयर का जिक्र नहीं किया है। असल में ऐसा कभी कुछ नहीं था। वो अपनी पत्नी और बच्चों को बहुत प्यार करते हैं। पर्दे पर भले ही वो बुरे इंसान का किरदार निभाते थे लेकिन असल जीवन में वो बहुत अच्छे इंसान हैं। हम सबको उन पर बहुत गर्व है।

आज प्रेम चोपड़ा 88 साल की उम्र में फैमिली के साथ मुंबई में रहते है और वक्त-वक्त अपनी एक्टिंग जलवा बिखेरते रहते हैं।

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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