Actor Prithviraj Kapoor : 'न खड़े हुए, न दुआ-सलाम की'

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एक्टर पृथ्वीराज कपूर जिन्हें सब प्यार से 'पापा जी' कहते। वो पृथ्वीराज कपूर जिन्होंने संघर्ष और मेहनत के बाद एक मुकाम बनाया। शादी के बाद पत्नी से बेहद मोहब्बत की। फिर दोनों कैंसर हो गया। और 16 दिनों के अंतराल में दोनों ही दुनिया छोड़कर चले भी गए।

 

साल 1941 की फिल्म 'सिकंदर : द ग्रेट' की शूटिंग चल रही थी। फिल्म के डायरेक्टर सोहराब मोदी थे, वो फिल्म में पोरस का किरदार भी निभा रहे थे।

लेखिका मधु जैन अपनी किताब ‘द कपूर्स’ में लिखती हैं कि, 'एक बार सिकंदर का कॉस्टयूम पहने पृथ्वीराज कपूर सेट में बैठे थे कि तभी सोहराब मोदी आ गए। उन्हें देखकर पृथ्वीराज कपूर न खड़े हुएन दुआ-सलाम की।'

इस बात से सोहराब मोदी उखड़ गए। अपनी रौबदार आवाज में पृथ्वीराज कपूर से इस बे-अदबी की वजह पूछी। तो पूरे इत्मीनान से पृथ्वीराज कपूर ने जवाब दिया। कहा कि 'आप इस वक्त सिकंदर से बात कर रहे हैं और सिकंदर किसी सोहराब मोदी को नहीं जानता।' ये सुनना था कि सोहराब मोदी के तेवर बदल गए और वो पृथ्वीराज कपूर के सिकंदर के किरदार में इस तरह से डूबने से हैरान भी हुए और उनसे प्रभावित भी। उन्होंने पृथ्वीराज कपूर को सैल्यूट करते हुए कहा कि 'लेकिन मैं अपने सिकंदर को अच्छी तरह जानता हूं।'

आज कहानी कपूर खानदान की रीढ़ कहे जाने वाले पृथ्वीराज कपूर की। जिन्हें सब प्यार से 'पापा जी' कहते। क्योंकि वो बॉलीवुड के पहले 'शो-मैन' राज कपूर के पिता थे। वो पृथ्वीराज कपूर जिन्होंने संघर्ष और मेहनत के बाद अपना मुकाम बनाया। फिल्म में तो काम करते ही थे पर थियेटर उनका पहला प्यार था। अंदाज बेबाक था तो नेहरू सरकार में करीब आठ साल राज्यसभा सदस्य रहे।

पृथ्वीराज कपूर की प्रेम कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। शादी के बाद पत्नी से बेहद मोहब्बत की। एक-दूसरे ने साथ निभाया। और संयोग ये देखिये दोनों पांच सालों तक कैंसर की बीमारी से जूझे। और सिर्फ 16 दिनों के अंतराल में दोनों ही दुनिया छोड़कर चले भी गए।

अंग्रेजों की हुकूमत में पंजाब का एक कस्बा होता था लायलपुर, आज ये जगह पाकिस्तान के फैसलाबाद में। वहीं समुद्री नाम की एक जगह है, जहां 03 नवंबर, साल 1906 को पृथ्वीराज कपूर का जन्म हुआ।

पिता बशेश्वरनाथ अंग्रेजों की 'इंपीरियल पुलिस' में अफसर थे और दादा जी केशवमल कपूर तहसीलदार। उस वक्त इस तरह की फैमिली वाले लोग बहुत हैसियत रखते। कहा जाता था ऐसे परिवार के बच्चे भी समाजी और सरकारी तौर पर बड़ा ओहदा हासिल करेंगे पर पृथ्वीराज कपूर ने इस मिथक को तोड़ा और नई कहानी शुरू की। वो अदाकारी की दुनिया के साथ दिल लगा बैठे।

साल 1923, जब पृथ्वीराज कपूर 17 साल के हुए तो घरवालों ने 15 साल की रामसरनी मेहरा से शादी करा दी। एक साल बाद यानी साल 1924 को वो राज कपूर के पिता भी बन गए। तब वो पेशावर के एडवर्ड कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहे थे। आठ भाई-बहनों में सबसे बड़े पृथ्वीराज कपूर पढ़ाई में तेज थे। परिवार का दबाव था वकील बनो।

लेकिन, ये तमाम बाधाएं पृथ्वीराज कपूर को रोक नहीं पाईं, अपने एक रिश्तेदार से 75 रुपये उधार लेकर पेशावर से लाहौर और फिर लाहौर से मुंबई पहुंचे। लेकिन खानदानी रसूखदार पृथ्वीराज कपूर का ये सफर आसान नहीं था। एक नाटक मंडली से दूसरी नाटक मंडलीदूसरी से तीसरी गए पर काम नहीं मिला। वजह थी किवो पढ़े-लिखे थे। और तब पढ़े लिखे लोग इस पेशे में नहीं आते थे।

फिर साल 1928 में इंपीरियल फिल्म कंपनी से जुड़े और भीड़ में शुमार होने वाले एक्स्ट्रा कलाकार की हैसियत से फिल्म 'दो धारी तलवारमें काम किया। किस्मत ने साथ दिया और साल 1929 की फिल्म 'सिनेमा गर्लमें बतौर हीरो नजर आए फिर एक के बाद एक नौ मूक फिल्में की।

इसके बाद एक बड़ा मौका तब आयाजब पहली बोलती फिल्म बनी - 'आलम-आरा ', जिसमें पृथ्वीराज कपूर सपोर्टिंग एक्टर थेलेकिन उनका रोल अहम था। साल 1934 की फिल्म 'सीताकिसी भी इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में दिखाई जाने वाली पहली इंडियन फिल्म थी। उस फिल्म में राम का किरदार निभाया तो पहली बार पहचान मिली। साल 1941 की फिल्म 'सिकंदरसे सुपरस्टार बने और साल 1960 की 'मुगल ए आज़ममें अकबर के रोल ने पृथ्वीराज कपूर को अमर कर दिया।

अपने 45 सालों के करियर में 'इशारा', 'भलाई', 'आनंद मठ', 'छत्रपति शिवाजी', 'फूल', 'एक रात', 'आज का हिंदुस्तान', 'दीपक महल' 'दहेज', 'जिंदगी', 'तीन बहुरानियां' और 'कल आज और कल' में दमदार अभिनय किया। लेकिन उनके लिए फिल्में नहीं बल्कि थियेटर पहले था। वो जो फिल्मों से पैसे कमाते उसे थियेटर में लगाते।

साल 1944 में 'पृथ्वी थिएटर' की नींव रखी। 16 सालों तक पूरे देश में करीब 27 सौ नाटकों का मंचन किया। कहते हैं कि पृथ्वीराज कपूर शो के बाद गेट पर एक थैला लेकर भिखारी की तरह खड़े हो जाते। जिसका मन होता, वो उस थैले में पैसे डाल देता। इन पैसों से थियेटर में काम करने वाले कर्मचारियों की मदद की जाती।

पृथ्वीराज कपूर के बाद 'पृथ्वी थिएटर' की देखरेख उनके सबसे छोटे बेटे शशि कपूर ने की, फिर शशि कपूर की बेटी संजना कपूर ने।

पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी मेहरा के छह बच्चे हुए। तीन बेटे - राज कपूरशम्मी कपूरशशि कपूर और एक बेटी - उर्मिला कपूर। वहीं दो बच्चे जिनका बीमारी की वजह से बचपन में निधन हो गया।

पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी के बीच हमेशा प्यार रहा। जितना पृथ्वीराज अपनी पत्नी को समझते थेउतना ही रामसरनी भी परिवार और पति के प्रति समर्पित थीं। जीवन चल ही रहा था 48 साल दोनों एक दूसरे का हाथ थामे रहे।

लेकिन इसी बीच पृथ्वीराज कपूर और रामसरनी, दोनों को कैंसर हो गया। पांच साल तक इस बीमारी से लड़ते-लड़ते 29 मई साल 1972 को 65 साल की उम्र में पृथ्वीराज कपूर दुनिया छोड़ गए। ठीक 16 दिन बाद 14 जून 1972 को रामसरनी का भी निधन हो गया।

1954 में संगीत नाटक अकादमी फेलोशिप, 1956 में संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, 1969 में पद्म भूषण और साल 1971 में दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित पृथ्वीराज कपूर के जाने के बाद उनकी आगे की पीढ़ी ने उनकी विरासत को आगे बढ़ाया।कहते हैं कि राज कपूर की कामयाबी इतनी बढ़ गई थी कि पृथ्वीराज कपूर को लोग उनके नाम से नहीं, राज कपूर के पिता के तौर पर पुकारने लगे।

वरिष्ठ फिल्म जर्नलिस्ट जयप्रकाश चौकसे राजकपूर को लेकर अपनी किताब में लिखते हैं,

'कई बार आधी रात के बाद नशे में राज कपूर अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के घर के बाहर आकर उनको आवाज देतेपृथ्वीराज कपूर जब बालकनी में आते तो राजकपूर कहते - आप नीचे नहीं आइएमैं ही कोशिश करूंगा कि आपके बराबर आ सकूं।'

राज कपूर को पूरी जिंदगी ऐसा नहीं लगा कि वो अपने पिता से बेहतर हो पाए हैं।

 

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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