Actor Sanjeev Kumar : एक्टिंग सीखने के लिए मां ने जेवर तक गिरवी रख दिए

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25 सालों तक जिनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस में धूम मचाती रहीं। किरदार कोई भी उसमें अपनी एक्टिंग से जान डाल देते। इनका जलवा किसी सुपरस्टार से कम नहीं। लेकिन वो साधारण कपड़े पहना करते। जीने का तरीका बेहद सादा। इसकी वजह शायद उनकी निजी जिंदगी में संघर्ष रहा होगा। कम उम्र में पिता को खोया, एक्टिंग सीखने के लिए मां ने जेवर तक गिरवी रख दिए। काम नहीं मिला तो बी ग्रेड फिल्में की।

आज कहानी जिंदगी के आखिरी दिनों में तन्हाई और बीमारी से अकेले जूझने वाले शानदार एक्टर संजीव कुमार की। जिनके तीन सपने अधूरे रह गए। फिर भी उनके चेहरे में हमेशा मुस्कान रहती।

गुजरात के रहने वाले जेठालाल जरीवाला और शांताबेन के घर 9 जुलाई साल 1938 को बेटे हरिहर जेठालाल जरीवाला का जन्म हुआ। जब ये छह-सात साल के हुए तो उनकी फैमली जरदोजी के काम के सिलसिले में मुंबई शिफ्ट हो गई। बचपन में ही पिता की मौत हो जाने से उनकी मां ने संघर्ष घर चलाया। मां चाहती थी कि बेटा पढ़ लिख कर डॉक्टर या वकील बने। पर हरीलाल को एक्टिंग का शौक था। डायरेक्टर शशधर मुखर्जी के एक्टिंग स्कूल की फीस देने के पैसे नहीं थे तो उनकी मां ने जेवर गिरवी रख दिए। वो थियेटर से जुड़े। बेहतरीन थियेटर आर्टिस्ट के रूप में उभरे।

कुछ ब्री ग्रेड मूवी करने के बाद बॉलीवुड में पहला मौका 1960 की फिल्म ‘हम हिंदुस्तानी’ में मिला। सुनील दत्त और आशा पारेख की इस फिल्म में उनका रोल बेहद छोटा सा था। फिर भी उनकी एक्टिंग को सहारा गया। उन्हें लगा की अपना स्क्रीन नाम बदलना होगा। उनकी मां का नाम शांताबेन था। तो एस अक्षर को चुनते हुए पहले नाम रखा संजय कुमार।

उनकी दूसरी फिल्म 'आओ प्यार करें' 1964 में रिलीज हुई और इसमें उनका क्रेडिट संजय कुमार ही गया। इसी साल ‘दोस्ती’ फिल्म हिट हो गई और इस फिल्म से संजय खान नाम के एक्टर स्थापित हो गए। तो ऐसे में उन्होंने फिर से नाम बदलकर संजीव कुमार रख लिया।

पांच साल तक फिल्मों में सपोर्टिंग रोल करने के बाद 1965 की फिल्म ‘निशान’ में बतौर लीड एक्टर नजर आए। लेकिन ये फिल्म नहीं चली। पांच साल का और वक्त लगा और साल आया 1970। इस साल रिलीज हुई ‘खिलौना’ के बाद से तो वो लोगों के दिलों में बस गए। इसी साल उनकी एक और फिल्म दस्तक रिलीज हुई। सुपरहिट हुई जिसके लिए उन्हें नेशनल अवार्ड मिला।

1974 की फिल्म ‘नया दिन नई रात’ में संजीव कुमार ने नौ रोल इस खूबसूरती से निभाए कि उनके फैन्स की भरमार हो गई 1972 की ‘सुबह और शाम’ फिल्म देखकर गुलजार ने संजीव कुमार के साथ कम से कम एक फिल्म में साथ काम करने का मन बनाया। लेकिन जब वो उनसे मिले तो एक नहीं छह फिल्मों में साइन कर लिया।

एक वो दौर आया जब संजीव कुमार के पास फिल्मों की झड़ी लग गई। लीड एक्टर में हिट होने के बाद भी संजीव कुमार कभी करैक्टर रोल करने से मना नहीं करते। संजीव कुमार के छोटे से रोल को न सिर्फ नोटिस किया गया। बल्कि जमकर तारीफ भी की गई।

साल 1975 में उनकी मौसम, आंधी और शोले रिलीज हुई। इन तीनों फिल्मों ने उन्हें दुनिया में पहचान दिलवाई। वो एक तरफ गंभीर रोल करते लेकिन जब बात कॉमेडी की आई तो ‘बीवी ओ बीवी’ और ‘अंगूर’ जैसी फिल्मों के जरिए लोगों को हंसाने पर मजबूर कर दिया।

उनकी सबसे हिट जोड़ी जया भादुड़ी के साथ रही। 1972 की फिल्म कोशिश में जया के पति बने, 1972 की परिचय में पिता, 1973 की अनामिका में प्रेमी, 1975 की शोले में ससुर और 1981 की फिल्म ‘सिलसिला’ में जया के भाई का रोल निभाया।

संजीव कुमार ने रियल जिंदगी में कई एक्ट्रेस से प्यार किया। 1969 की फिल्म ‘देवी’ में एक्ट्रेस नूतन के साथ काम कर रहे थे दोनों के अफेयर के किस्से मीडिया में आए। इस बात से नाराज नूतन ने संजीव को थप्पड़ तक मार दिया।

1975 की ‘शोले’ की शूटिंग के दौरान वो हेमा मालिनी के प्यार में आए। उन्होंने हेमा को कई बार प्रपोज किया, लेकिन हर बार जवाब न ही आया। इस बात से संजीव का दिल इस कदर टूटा कि वो शराब के नशे में डूब गए।

साल 1975 की ‘उलझन’ से एक्ट्रेस सुलक्षणा पंडित ने डेब्यू किया तो उनके पहले हीरो संजीव कुमार ही थे। इसी दौरान वो उनको दिल दे बैठीं और एक रोज प्रपोज कर दिया। पर हेमा की वजह से ताउम्र शादी न करने का फैसला ले चुके संजीव कुमार चाहकर भी हां न कह पाए। इसके बाद सुलक्षणा ने भी आजीवन शादी न करने की कसम खा ली।

संजीव कुमार के तीन अधूरे सपने कभी पूरे नहीं हुए। न शादी हुई, तमाम कोशिशों के बाद भी मुंबई में बंगला नहीं ले पाए और न ही वो 50 साल से ज्यादा जी पाए।

संजीव के दोनों भाइयों की बेहद कम उम्र में मौत हो जाने की वजह से वो हमेशा कहते थे कि ‘मेरे फैमिली में कोई भी ‘आदमी’ 50 साल पूरे नहीं कर पायामैं भी नहीं कर पाऊंगा।’

बूढ़े होने की तमन्ना की वजह से ही उन्होंने कई फिल्मों में बुजुर्गों का किरदार निभाया। करियर चमकते दौर में महज 37 साल की उम्र में पहला अटैक आया। लेकिन लाइफ स्टाइल में बदलाव नहीं किया और जल्द ही दूसरा अटैक आया। अमेरिका जाकर ओपन हार्ट सर्जरी कराई। उम्मीद थी वो ठीक हो जाएंगे। लेकिन फंसे हुए प्रोजेक्ट को पूरा करने में वो आराम नहीं कर पाए।  

अपनी मां को बेहद प्यार करने वाले संजीव कुमार ने अपनी मां के ही पुण्यतिथी वाले दिन 6 नवंबर, साल 1985 को सिर्फ 47 साल की उम्र में दुनिया से अलविदा कह दिया। निधन के 7 साल बाद तक उनकी फिल्में रिलीज हुई। 1993 की फिल्म 'प्रोफेसर की पड़ोसन' उनकी आखिरी फिल्म थी।

संजीव कुमार फिल्म सितारों की तरह पहनावे पर बहुत खर्च नहीं करते थे। इसलिए शायद उन्हें बेहद कंजूस कहा जाता था। लेकिन सच दूसरा है।

संजीव कुमार की जिंदगी पर लिखी लेखक हनीफ ज़ावेरी और सुमंत बत्रा की किताब 'एन एक्टरर्स एक्टर' के मुताबिक

संजीव कुमार फिल्म प्रोड्यूसर से अपने पैसों का हिसाब किताब लिखित में नहीं रखते थे इस वजह से जब इनका निधन हुआ उसके बाद तमाम फिल्म प्रोड्यूसर को करीब 95 लाख रुपये देने थे। जो इस इंडस्ट्री ने उनके परिवार को वापस नहीं किए।

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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