शम्मी कपूर (Actor Shammi Kapoor) इंडियन सिनेमा के पहले रॉकस्टार थे। अपनी एक्टिंग और डांस में मस्ती का तड़का लगाया। इनका निजी किरदार विद्रोही था। जिसने जिंदगी के आखिरी वक्त असहनीय दर्द झेला।
साल 1949, फिल्म ‘बरसात’ रिलीज हुई। फिल्म की शूटिंग के वक्त राज कपूर और नरगिस की अफेयर की खबरें थीं। एक दिन नरगिस रो रहीं थी। तब उनसे एक 15-16 साल के लड़के वजह पूछी।
नरगिस बोलीं – 'मैं चाहती हूं, राज कपूर की अगली फिल्म ‘आवारा’ में मैं ही काम करूं, पर घर वाले इसके खिलाफ हैं।'
नरगिस ने उस लड़के से कहा 'तुम भगवान से प्रार्थना करो। अगर, ये फिल्म मुझे मिलती है। मैं, तुम्हें KiSS करूंगी।'
लड़के ने कहा 'आप रोइए मत, मैं भगवान से प्रार्थना करूंगा।'
वक्त गुजरा। नरगिस आवारा की हीरोइन बनीं। जब उनका बड़े हो चुके उस लड़के से सामना हुआ तो वो घबरा गईं।
उसने कहा आप घबराइए नहीं – 'मुझे KISS नहीं चाहिए, इसके बदले मुझे ग्रामोफोन चाहिए।'
नरगिस ने ग्रामोफोन के साथ वेस्टर्न म्यूजिक के 20 रिकॉर्ड भी दिलवाए। ये लड़का जो आगे इंडियन सिनेमा का पहला रॉकस्टार बना। अपने एक्टिंग और डांस में मस्ती का तड़का लगाया। आज कहानी ग्रेट एक्टर शम्मी कपूर की।
जिनका निजी किरदार विद्रोही था। क्योंकि उन्होंने घर छोड़ दिया। पत्नी के निधन का सदमा लगा तो फिल्में छोड़ अध्यात्म की राह पकड़ ली। जिसने जिंदगी के आखिरी वक्त असहनीय दर्द झेला।
ग्रेट एक्टर और उससे भी बड़े एक थियेटर आर्टिस्ट पृथ्वीराज कपूर पाकिस्तान से मुंबई आ गए। रामसरनी से शादी की और ‘पृथ्वी थिएटर’ नींव रखी। वो नाटक देखने वालों से कोई टिकट नहीं लेते। नाटक खत्म होने के बाद गेट पर झोला लेकर खड़े हो जाते जिसकी मर्जी वो पैसे डाल देता। स्टूडियो का सारा काम खुद करते। पृथ्वी राज कपूर के तीनों बेटे भी थियेटर से जुड़े।
सबसे बड़े राजकपूर और सबसे छोटे बेटे शशि कपूर एक्टिंग के साथ स्पॉट बॉय से लेकर फर्श पर झाड़ू लगाने तक का सारा काम करते। दोनों बेटों ने पिता की सभी शर्तों को माना। लेकिन 21 अक्टूबर साल 1931 को जन्मे शम्मी कपूर ने पिता पृथ्वीराज कपूर से कह दिया कि, मैं सिर्फ फिल्म में एक्टर बनना चाहता हूं। और थियेटर छोड़कर चले गए। पिता ने कहा - जा तो रहे हो पर वापस मत आना।
वरिष्ट पत्रकार पीटर अली जॉन एक पत्रिका में लिखते हैं कि साल था 1953, फिल्म थी ‘रेल का डिब्बा’। अपने दम पर शम्मी कपूर को एक्ट्रेस मधुबाला के साथ पहली फिल्म मिली। शम्मी ने खूब मेहनत की। लेकिन प्रोड्यूसर ने शम्मी को फीस नहीं दी। वो निराश हुए। चाहते तो पिता के पास वापस जा सकते थे, माफी मांग सकते थे। लेकिन वो हारे नहीं।
इधर फिल्मी दुनिया को जैसे-जैसे पता चला कि शम्मी कपूर, पृथ्वीराज कपूर के बेटे और राज कपूर के भाई हैं, तो शम्मी को कुछ फिल्मों में काम मिला। लेकिन सभी फिल्में फ्लॉप हुईं। ऐसे चार साल गुजर गए।
दुबले-पतले शम्मी बेरोजगारी के हालात झेल रहे थे। वो हॉलीवुड एक्टर एल्विस प्रेस्ली और क्लिफ रिचर्ड से प्रभावित थे। उन्हीं की तरह डांस करते। कपड़े और हेअर स्टाइल भी उन्हीं की तरह रखते।
साल 1957 डायरेक्टर नासिर हुसैन की फिल्म 'तुमसा नहीं देखा' मिली। बतौर लीड एक्टर शम्मी कपूर की ये पहली बड़ी हिट थी। शम्मी कपूर को 'द रिबेल स्टार' का खिताब मिला।
उस दौरान दिलीप कुमार, देव आनंद और राज कपूर का दबदबा था। उदासी, मायूसी और देवदास टाइप ट्रेडिशनल एक्टिंग को नकार शम्मी ने अपनी एक्टिंग में मस्ती डाली।
वेस्टर्न म्यूजिक पर ऐसे थिरके की मजबूरी में इन सभी को अपनी फिल्मों में डांस करना पड़ा।
फिल्म ‘तुमसा नहीं देखा’ के बाद शम्मी कपूर के पास फिल्मों की बाढ़ आ गई। साल दर साल 'जंगली', 'बदतमीज', 'जानवर' और 'पगला कहीं का' 'प्रोफेसर', 'प्रिंस' 'राज कुमार', 'प्रीतम' और 'सच्चाई' जैसी शानदार फिल्में की।
साल साल 1966 में जब डायरेक्टर विजय आनंद की फिल्म 'तीसरी मंजिल' में बतौर एक्टर किरदार निभाया तो शम्मी पीक पर पहुंच गए।
फिर साल 1968 की 'ब्रह्मचारी' में एक्टर बने तो पहला फिल्मफेयर अवार्ड मिला।
शम्मी ऐसे एक्टर थे जिन्हें नई एक्ट्रेस के साथ काम करने में दिक्कत नहीं थी।
फिल्म 'तुमसा नहीं देखा' में अमीता, 'प्रोफेसर' में कल्पना, 'दिल देके देखो' में आशा पारेख, 'कश्मीर की कली' में शर्मिला टैगोर और 'जंगली' में सायरा बानो ने जब फिल्मों में डेब्यू किया तो पहली बार शम्मी कपूर के साथ काम किया।
शम्मी कपूर एक्ट्रेस मुमताज से शादी करना चाहते थे। पर ये रिश्ता नहीं हो पाया। फिर शम्मी की जिंदगी में गीता बाली आईं। साल 1955 में दोनों ने एक फिल्म की शूटिंग के दौरान शादी कर ली।
कहा जाता है कि सिंदूर नहीं था तो शम्मी ने गीता का मांग में लिपस्टिक लगा दी। शम्मी और गीता के दो बच्चे हुए आदित्य राज कपूर और कंचन कपूर। गीता और शम्मी का साथ सिर्फ 10 साल रहा। वजह गीता का चेचक से निधन हो गया। शम्मी कपूर सदमे से निकल नहीं पाए। पहाड़ियों में चले गए। चार साल बाद लौटे।
अब शम्मी का रूप बदल गया था। वजन बढ़ गया। बाल-दाढ़ी भी बढ़ गई। गले में कई मालाएं पहन थीं। फिर उनके जीवन ने एक बार फिर करवट ली जब उनको बचपन की दोस्त नीलदेवी का साथ मिला। साल 1969 में दोनों ने शादी की। धीरे धीरे दोबारा से फिल्मों में भी काम किया।
अपने छह दशक लंबे करियर में शम्मी कपूर ने करीब 140 फिल्मों में काम किया।
ये संयोग ही कहेंगे कि इंडियन सिनेमा के पहले रॉकस्टार कहे जाने वाले शम्मी कपूर की आखिरी फिल्म साल 2012 की रॉकस्टार थी।
किताबें और कंप्यूटर को लोगों के लिए जरूरी मानने वाले शम्मी कपूर की जिंदगी का आखिरी वक्त बहुत ही दर्दनाक था। दोनों किडनी फेल हो गईं। लेकिन उनका जीने का उत्साह कम नहीं था। वो कार खुद चलाते। अपने ज्यादातर काम खुद ही करते। लेकिन बढ़ता वजन रोक न पाए। एक दिन व्हीलचेयर पर आ गए।
शम्मी मानते थे कि 'आपको मरते दम तक जीना है, जिंदा रहते हुए भी मरने का क्या फायदा?
14 अगस्त साल 2011, 80 साल की उम्र ये ग्रेट एक्टर दुनिया छोड़कर चला गया।
जाते-जाते साल 1966 की फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ का वो गाना जिसे आरडी बर्मन ने अपनी धुन से सजाया, मजरूह सुल्तानपुर ने लिखा, और रफी साहब ने गाया था।
तुमने मुझे देखा, होकर मेहरबान
रुक गई ये जमीं, थम गया आसमां
जानेमन, जाने जां,
तुमने मुझे......
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