साल 1945। डायरेक्टर शौकत हुसैन रिजवी एक फिल्म बना रहे थे। एक सीन शूट होना था। जिसमें कुछ एक्स्ट्रा कलाकारों की जरूरत थी। डायरेक्टर शौकत हुसैन रिजवी ने देखा कि सेट पर कुछ स्कूली लड़कियां हैं।
उन्होंने उनसे पूछा कि – ‘इस फिल्म में तुम में से कौन काम करेगा।’
सारी लड़कियां शरमा गईं, लेकिन एक लड़की आगे आई।
उसने बड़ी बेबाकी से कहा – ‘मैं फिल्म में काम करूंगी।’
इनके पास मधुबाला और गीताबाली जैसी शोखी और चुलबुलापन नहीं था। न ही नरगिस और मीना कुमारी जैसी संजीदगी। पर वर्सटाइल एक्टिंग के जरिए एक दमदार एक्ट्रेस बनीं। 40 साल में 150 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया। हर किसी को अपना दिवाना बनाया। लेकिन, एक वो दिन भी आया जब इन्होंने कसम खाई – ‘अब मैं कभी भी किसी फिल्म में काम नहीं करुंगी।’
आज कहानी एक्ट्रेस श्यामा की। जिंदगी के आखिरी दिनों में इनके पास कोई न था। तब ये अकेलेपन से लड़कर अपनी तन्हाई को शान से जीतीं थीं।
पाकिस्तान के लाहौर में 12 जून, साल 1935 को खुर्शीदा का जन्म हुई। 1938 के आसपास इनके पिता जो फलों का काम करते थे वो मुंबई आ गए। मुंबई के एक स्कूल में खुर्शीदा का एडमिशन करा दिया।
उधर एक्ट्रेस नूरजहां को बतौर हीरोइन लेकर डायरेक्टर शौकत हुसैन रिजवी साल 1945 में रिलीज हुई फिल्म 'जीनत' बना रहे थे। एक कव्वाली का सीन शूट होना था। कुछ और कलाकारों की जरूरत थी। तभी उनकी नजर वहां खड़ी कुछ लड़कियों पर गई।
उनसे कहा – ‘फिल्म में काम करना है। 40 रुपये मिलेंगे।’
घर में तंगी थी, नौ भाई-बहन थे। तो 10 साल की खुर्शीदा ने हां कह दी। यहीं से उनका बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट फिल्मी सफर शुरू हुआ। साल 1949 की 'पतंगा', साल 1950 की 'निशाना', साल 1951 की 'पोस्टी' जैसी फिल्मों में खुर्शीदा ने सपोर्टिंग एक्ट्रेस के रूप में काम किया। इसी दौरान खुर्शीदा को नया नाम मिला। श्यामा। ये नाम उन्हें डायरेक्टर विजय भट्ट ने दिया था। इसके बाद डायरेक्टर और एक्टर आईएस जौहर ने उन्हें साल 1952 की फिल्म 'श्रीमतीजी' में बतौर हीरोइन कास्ट किया।
गुरुदत्त के साथ फिल्म 'आर पार' और भूषण कुमार के साथ फिल्म 'मां' में बतौर हीरोइन काम किया तो श्यामा रातों रात स्टार बन गईं।
श्यामा के हीरो अगर कॉमेडियन जॉनी वॉकर थे, तो अशोक कुमार और किशोर कुमार भी थे। एक्टर बलराज साहनी थे तो सुपरस्टार देव आनंद भी। मोतीलाल थे तो राजकुमार भी। उन्होंने अपने दौर के इंडस्ट्री के हर हीरो के साथ काम किया।
दिलीप कुमार की 'दिल दिया दर्द लिया' और सुनील दत्त की 'मिलन' उनकी बेस्ट फिल्मों में से एक थीं।
श्यामा ने अपने करियर में एक्शन, कॉमेडी, थ्रिलर, रोमांटिक हर जोनर की फिल्म की। हीरोइन के रूप में सिक्का जमाने के बावजूद उन्होंने फिल्म 'छोटी भाभी', 'मां बाप', 'भाई-भाई' और 'हम लोग' जैसी फिल्मों में कैरेक्टर रोल किए। फिल्म 'शारदा' के लिए फिल्म फेयर का बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस खिताब मिला।
'गोमती के किनारे', 'प्रभात', 'नया दिन नयी रात', 'चैताली', 'खेल खेल में' जैसी फिल्मों में काम करने का बाद साल 1977 में उन्होंने इंडस्ट्री से एक लंबा ब्रेक लिया।
सालों बाद डायरेक्टर जेपी दत्ता ने साल 1989 में रिलीज हुई 'हथियार' के लिए श्यामा को चुना। जब फिल्म की शूटिंग खत्म होने वाली थी, तब जेपी दत्ता ने उनसे कहा कि – ‘आप रिहर्सल में तो बहुत अच्छी एक्टिंग करती हैं, लेकिन पर्दे पर आपकी एक्टिंग में जान नहीं आती।’
ऐसी बात तो श्यामा से किसी ने तब भी नहीं कही थी, जब वो एक्स्ट्रा करेक्टर के रूप में काम करती थी। श्यामा को अचानक लगा कि फिल्मी दुनिया बदल गई है। उसके बाद श्यामा ने कभी भी फिल्मों में काम न करने की कसम खाई। ये फिल्म उनकी आखिरी फिल्म साबित हुई।
फिल्म इंडस्ट्री में श्यामा के कई दीवाने थे। इसी लिस्ट में एक थे सिनेमेटोग्राफर फली मिस्त्री का। एक दिन फली मिस्त्री ने एक फिल्म की शूटिंग के दौरान सबके सामने श्यामा से प्यार का इजहार कर दिया। श्यामा हक्की-बक्की रह गईं। फली मिस्त्री ने कहा कि – ‘मैं, तुमसे शादी करना चाहता हूं।’ श्यामा ने भी हां कह दी। और साल 1953 में दोनों की शादी हो गई। लेकिन ये साथ 26 सालों का था साल 1979 में पति का निधन हो गया। बाकी 38 साल का जीवन श्यामा ने अकेले बिताया।
निरूपा राय, सितारा देवी, बेगम पारा, शकीला और नादिरा उनकी दोस्त थी। वो अकेलापन दूर करने के लिए अक्सर उनको अपने घर बुलातीं। लेकिन, धीरे-धीरे सब दोस्त अपनी उम्र पूरी कर दुनिया से चले गए। दोनों बेटे अपनी दुनिया में मगन, बेटी अपने फेमिसी व्यस्त थी। लेकिन वो तन्हाई को शान से जीती थीं। हज पर जाने की आखिरी ख्वाहिश लिए 14 नवंबर साल, 2017 को 82 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
अपने दौर की बेहद कातिल अदाओं वाली श्यामा ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि, ‘स्टार बनाए नहीं जाते, स्टार पैदा होते हैं।’
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