B.R. Chopra : एक पत्रकार जो बन गए फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर

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बलदेव राज चोपड़ा (Baldev Raj Chopra) ने अपनी पहली ही फिल्म से बता दिया था कि वो लीक से हटकर फिल्में बनाते हैं और वो फिल्मों के जरिये समाज में कोई न कोई संदेश देना चाहते हैं।

एक दिन मैं किसी रेस्टोरेंट में चाय पी रहा था। मुझे आईएस जौहर मिले और उन्होंने पूछा

'आजकल तुम क्या कर रहे हो?'

मैंने कहा- 'न पैसा हैन एक्सपीरिएंस हैन नॉलेज... मैं कर ही क्या सकता हूं?'

तब आईएस जौहर ने मुझे एक स्टोरी बताईजो मुझे अच्छी लगी। ये स्टोरी मैंने लाहौर के गौतम दास अग्रवाल को सुनाई।

गौतम दास अग्रवाल बोले - 'स्टोरी अच्छी है, मैं पैसा लगाने के लिए तैयार हूं।'

मैंने शुक्रिया कहा, फिल्म की कास्ट और डायरेक्टर तलाशने की बात भी कही।

तब गौतम दास अग्रवाल ने कहा - 'नहीं... पैसा मैं तब लगाऊंगा, जब फिल्म को तुम ही डायरेक्ट करोगे।'

मैंने कहा - 'मैंने स्टूडियो का मुंह तक नहीं देखा, कभी किसी का असिस्टेंट नहीं रहा और आप कहते हो फिल्म बना लो।'

तब गौतम दास अग्रवाल ने कहा - 'देखो चोपड़ा... ये रहा 50 हजार रुपया... बनाना है तो बना लो, नहीं तो भूल जाओ।'

फिर मैं फिल्म बनाने के लिए राजी हो गया। और इस तरह से बनी साल 1951 की फिल्म 'अफसाना'

जिसके बाद बॉलीवुड को मिला एक ऐसा फिल्म डायरेक्टर और प्रोड्यूसर जिन्होंने अपनी पहली ही फिल्म से बता दिया था कि वो लीक से हटकर फिल्में बनाते हैं और वो फिल्मों के जरिये समाज में कोई न कोई संदेश देना चाहते हैं।

चाहे वो ब्लैक व्हाइट सिनेमा हो या फिर कलर। सोलो हीरो की फिल्म रही हो या फिर मल्टीस्टारर। फिल्म मैगजीन, बड़ा पर्दा, या फिर टीवी इन्होंने बदलता हुआ हर दौर देखा और सभी मैं ये अव्वल रहे।

आज कहानी बैडमिंटन और वॉलीबॉल खेलने के शौकीन बलदेव राज चोपड़ा यानी बीआर चोपड़ा की। जिन्होंने समाज के हर मुद्दे को बड़ी बेबाकी उठाया।

22 अप्रैल, 1914, पंजाब के राहों में जन्म हुआ। पढ़ाई में अच्छे थे। लाहौर यूनिवर्सिटी से इंग्लिश लिटरेचर में एमए किया।

पिता विलायती राज चोपड़ा जो एक सरकारी अफसर थे, चाहते कि बेटा भी बड़ा सरकारी अफसर बने। बीआर चोपड़ा ने आईसीएस की परीक्षा की तैयारी भी की। पर पेपर के दौरान तबीयत बिगड़ गई। फेल हुए तो खूब रोए। पिता ने कहा, लंदन जाकर तैयारी करो। पर बीआर चोपड़ा ने मना कर दिया।

साल 1944 में 'सिने हेराल्ड' फिल्मी मैग्जीन में बतौर फिल्म जर्नलिस्ट करीब तीन साल काम किया। अपने आर्टिकल में वो फिल्म मेकर्स को सोशल इश्यूज पर फिल्म बनाने की सलाह देते पर एक दिन वो खुद ही फिल्में बनाने लगे।

वजह बना 1947 का बंटवारा। जब उन्हें लाहौर से जालंधर अपने पैतृक गांव आना पड़ा।

बीआर चोपड़ा ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'पिताजी के कुछ दोस्तों ने फिल्म बनाने की सलाह दी। उन्होंने पैसा लगा दिया और इस तरह हम बॉम्बे आ गए। हम पांच पार्टनर थे, फिल्मों को लेकर हमारे विचार अलग-अलग थे। वो कहते जो चल रहा है, वो बनाओ, मैं कहता कि कुछ अलग बनाते हैं। पलड़ा उनका भारी रहा। ऐसे साल 1949 की फिल्म 'करवट' बनी जो बुरी तरह फ्लॉप हो गई।'

फिर एक्टर, डायरेक्टर और राइटर आई एस जौहर का साथ मिला तो साल 1951 में एक्टर अशोक कुमार के साथ फिल्म 'अफसाना' बनाई।

जब फिल्म रिलीज हो रही थी बीआर चोपड़ा की पत्नी प्रकाश चोपड़ा बेहद डरी हुई थीं। उन्होंने बताया था कि 'मैं तो फिल्म के प्रीमीयर पर ही नहीं गई। मैंने कहां लोगों ने आपके ऊपर अंडे फेंकने हैं। लेकिन एक ही हफ्ते में पता लग गया कि फिल्म सुपर-डुपर हिट है।'

बीआर चोपड़ा वो समाज को पारिवारिक और साफ-सुथरी कहानियों वाली फिल्में परोसना चाहते थे। साल 1957 की फिल्म 'नया दौर' में इंसान और मशीन के काम करने के अंतर को दिखाया।

बीआर चोपड़ा ने औरतों के अन्याय के मुद्दे को लेकर भी बिना डरे फिल्में बनाई। चाहे वो साल 1955 की 'एक ही रास्ता' में विधवा पुनर्विवाह का मुद्दा हो या साल 1980 की 'इंसाफ का तराज़ू' में नारी शोषण हो या फिर साल 1982 की फिल्म 'निकाह' में मुस्लिम औरतों के साथ दुर्व्यवहार।

साल 1959 की फिल्म 'धूल का फूल' से अपने छोटे भाई यश चोपड़ा को बतौर डायरेक्टर मौका दिया और एक ऐसी औरत की समस्याओं और यातनाओं को दिखाया जो बिना शादी के मां बन जाती है।

बीआर चोपड़ा ने साल 1965 की 'वक्त' हो या फिर साल 1980 की 'द बर्निंग ऑफ ट्रेन' ये मल्टीस्टारर फिल्मों को बनाने का भी चलन शुरू करते हैं।  

बीआर चोपड़ा 'हमराज', 'इत्तेफाक', 'धुंध', 'गुमराह', 'आवाम' जैसी थ्रिलर फिल्में तो बनाते ही साल 1976 की 'छोटी सी बात' हो या फिर 1978 की 'पति पत्नी और वो' जिसमें एक्स्ट्रामैरिटल अफेयर को भी बड़े ही कॉमिक अंदाज में दिखाते हैं।

बीआर चोपड़ा वो बना गए जो शायद ही कोई दोबारा  बना पाए। साल 1988 का टीवी सीरियल 'महाभारत'

जब घर में लोग शांति से बिना सांस लिए एक टक टीवी पर अपनी नजरें गड़ाए बैठे रहते थे। सड़क सूनी हो जाती थी। उनका कमाल ही था कि 'महाभारत' के हर किरदार को लोग सच समझ बैठे थे।

बीआर चोपड़ा ने प्रकाश चोपड़ा से शादी की।तीन बच्चे हुए। जिसमें से एक डायरेक्टर रवि चोपड़ा हैं, जिन्होंने साल 2003 की बागवान जैसी फिल्म को डायरेक्ट किया है।

साल 1960 में 'नेशनल अवार्ड', साल 1961 में 'प्रेसिडेंट सिल्वर मेडल' और 'फिल्मफेयर' का बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड जीता। साल 1998 में 'दादा साहेब फाल्के' और साल 2001 में 'पद्म भूषण' से नवाजे गए। साल 2003 में 'फिल्मफेयर' से लाइफटाइम अचीवमेंट सम्मान पाने वाले बीआर चोपड़ा ने छह दशकों तक फिल्में बनाई और 05 नवंबर साल 2008, 94 की उम्र में दुनिया छोड़ कर चले गए।

बीआर चोपड़ा की साल 1961 की फिल्म 'धर्मपुत्र' में साहिर लुधियानवी ने एक गीत लिखा जो दशकों बाद आज भी उतना ही प्रासंगिक है –

'तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा,

इंसान की औलाद है इंसान बनेगा'

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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