क्रिकेटर दिलीप सरदेसाई पांच साल की मेहनत में गोवा से इकलौते इंटरनेशनल क्रिकेटर बने। किरदार में ख्वाबों का पूरा करने के लिए मेहनत है, निष्ठा है और खूब सारा टैलेंट। खूब सारा प्यार भी है, होने वाली पत्नी से मीलो दूर था तो उसके लिए 90 से ज्यादा प्रेम पत्र लिख डाले।
‘भुवनेश्वर एयरपोर्ट में सीआईएसएफ के एक जवान ने रोकते हुए कहा- सर, मेरे साथ वीआईपी लॉन्ज में चलिए। मुझे लगा शायद उसने मुझे टीवी की वजह से पहचान लिया हो, लेकिन अगले ही पल उसने कहा, दिलीप सरदेसाई के बेटे हैं न। दिलीप सरदेसाई, ये वाक्या सुनाया था मशहूर पत्रकार और लेखक राजदीप सरदेसाई ने। वो अक्सर कहते हैं कि - ये फक्र की बात है कि मेरे पिताजी को लोग आज भी याद करते हैं।
8 अगस्त, साल 1940 में जन्मा ये क्रिकेटर 16 साल की उम्र तक कभी मैदान पर नहीं उतरे, पांच साल की मेहनत में गोवा से इकलौते इंटरनेशनल क्रिकेटर बने। जिनके किरदार में ख्वाबों का पूरा करने के लिए मेहनत है, निष्ठा है और खूब सारा टैलेंट। सफलता की भूख है, जिन्हें किसी भी हालात में सबकुछ पाना था। आज कहानी दिग्गज क्रिकेटर दिलीप सरदेसाई की। जिनके किरदार में खूब सारा प्यार भी है, होने वाली पत्नी से मीलो दूर थे तो उनके लिए 90 से ज्यादा प्रेम पत्र लिख डाले।
साल 1956, इस दौर में गोवा में किक्रेट के लिए कुछ भी नहीं था। एक ढंग की पिच तक नही थीं। ऐसे में गोवा के मार गांव के रहने वाले 15-16 साल के दिलीप सरदेसाई आंखों में तमाम सपने लेकर मुंबई पहुंचे। न कोई गॉडफादर और न ही कोई मदद करने वाला। बस एक जिद थी क्रिकेटर बनने की।
जिस वक्त दिलीप मुंबई आए, क्रिकेटर विजय मर्चेंट रिटायर हो चुके थे और उनकी जगह विजय मांजरेकर ने मुंबई की बल्लेबाजी की मशाल थाम ली थी।
इस दौरान टेस्ट प्लेयर्स लगातार मुंबई आकर यहां के मैदानों में क्लब क्रिकेट खेला करते।
जब दिलीप सरदेसाई ने पहली बार मांजरेकर को बैटिंग करते देखा तो बड़े प्रभावित हुए और विल्सन कॉलेज चले गए और यहीं पर उन्हें पहला ब्रेक मिला।
पत्रकार और लेखक राजदीप सरदेसाई अपनी किताब डेमोक्रेसी XI में लिखते हैं कि ‘अगर पिताजी कॉलेज में प्रैक्टिस नहीं कर रहे होते थे तो अपनी बिल्डिंग की छत पर पानी से भीगी हुई टेनिस बॉल से बल्ला चला रहे होते। छत पर मिली ट्रेनिंग ने पिताजी को मदद की।’
इसी कड़ी ट्रेनिंग के बाद दिलीप सरदेसाई विल्सन कॉलेज में धूंआधार रन बनाने लगे। साल 1958 में कॉलेज टीम की तरफ से बेहद मजबूत हिन्दू जिमखाना टीम के खिलाफ मैच खेला।
टीम के कप्तान वीनू मांकड़ थे। जब सरदेसाई ने 90 रन नॉट आउट बनाए। तो मांकड़ को विश्वास हो गया था कि वो जो देख रहे थे, आम बल्लेबाज़ी नहीं थी।’
राजदीप सरदेसाई के किताब के मुताबिक ‘उस शाम मांकड़ ड्रेसिंग रूम में आए और पिताजी से बोले, बेटा मैं तुम्हें जिमखाना का मेंबर बना रहा हूं। आज से तुम, हमारे लिए खेलोगे। फीस की चिंता मत करना।’
इसके बाद साल 1958 में सरदेसाई मुंबई यूनिवर्सिटी की टीम का हिस्सा बने। अगले तीन सालों में मुंबई के लिए 61 मैच खेले। कोई भी मैच हारे नहीं। सभी ड्रॉ रहे या फिर उनकी टीम विजेता बनी।
सब ठीक था लेकिन तभी सरदेसाई के पिता का निधन हो गया। तंगी बढ़ी, 1200 रुपये महीने की नौकरी की। लेकिन क्रिकेट खेलना नहीं छोड़ा।
राजदीप सरदेसाई की किताब के मुताबिक ‘साल 1960 में यूनिवर्सिटी की टीमों से खिलाड़ी चुने जाने थे। जिसे पाकिस्तान से आई एक मेहमान टीम के खिलाफ खेलना था। दिग्गज क्रिकेटर लाला अमरनाथ चीफ सेलेक्टर थे। लाला अमरनाथ दिलीप सरदेसाई की बल्लेबाजी देखकर दंग रह गए। उन्होंने सरदेसाई की प्रतिभा को पहचाना और पाकिस्तान के खिलाफ खेलने के लिए चुन लिया। दिलीप ने 87 रन बनाए और बोर्ड प्रेसिडेंट एकादश के लिए चुने गए। शतक मारा और अगले होने वाले टेस्ट मैच के लिए टीम में जगह मिली।’
साल 1961, 21 साल के दिलीप सरदेसाई को मुंबई में आए हुए पांच साल का वक्त हो चुका था। और दिलीप सरदेसाई सिर्फ पांच साल के कड़े संघर्ष के बाद इंग्लैंड के खिलाफ अपना पहला टेस्ट मैच खेलने जा रहे थे।
साल 1962 वेस्ट इंडीज गए थे। वेस्टइंडीज की खतरनाक तेज गेंदबाजी के आगे इंडियन बल्लेबाजों टिकना मुश्किल था। ओपनर बल्लेबाज नारी कॉन्ट्रैक्टर के सिर में चोट लग गई। कोई बल्लेबाज जाने के लिए तैयार नहीं हुआ तो दिलीप सरदेसाई आगे आए, तेज गेंदबाजी का सामना किया।
1964-65 में न्यूजीलैंड के खिलाफ सरदेसाई ने मुंबई में दोहरा शतक और बेहद कम गेंदों में जड़ा।
राजदीप सरदेसाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘साल 1971 में पिताजी एक बार फिर वेस्टइंडीज गए और उन्होंने इतिहास रचा। किंग्सटन में हुए पहले टेस्ट मैच में इंडिया टीम महज 75 रन के स्कोर पर पांच विकेट गंवा चुकी थी। उस वक्त पिताजी ने 212 रन की पारी खेली।’
विदेशी धरती में दोहरा शतक बनाने वाले वो पहले भारतीय क्रिकेट बने। इस जीत के बाद सरदेसाई को "भारतीय क्रिकेट का पुनर्जागरण पुरुष" कहा गया।
क्रिकेट से संन्यास लेने के बाद सरदेसाई अपना वक्त मुंबई और गोवा में बने अपने घरों में बिताते। जिंदगी के आखिरी दिनों में किडनी के बीमारी से पीड़ित थे। सीने में संक्रमण हुआ तो अस्पताल में भर्ती होना पड़ा। 2 जुलाई साल 2007 को उनका निधन हो गया। 66 साल की उम्र ये क्रिकेटर दुनिया छोड़कर चला गया।
दिलीप सरदेसाई प्यार करने वाले इंसान भी थे। पूर्व क्रिकेट एडमिनिस्ट्रेटर मकरंद वयंगंकर की किताब 'गेट्स एंड ग्लोरी' के मुताबिक दिलीप सरदेसाई जब अपनी पत्नी नंदिनी पंत से मिले तब ही उन्हें वेस्टइंडीज टूर के लिए जाना पड़ा। इस दौरान सरदेसाई ने नंदिनी के लिए करीब 90 प्रेम पत्र लिख डाले।
सोशियोलॉजी की प्रोफेसर नंदिनी पंत ने सेंसर बोर्ड की सदस्य भी रहीं। सरदेसाई के तीन बच्चे हैं। बेटा राजदीप, और दो बेटियां। राजदीप एक जर्नलिस्ट और पूर्व क्रिकेटर भी हैं। राजदीप की पत्नी सागरिका घोष भी एक जर्नलिस्ट हैं।
दिलीप सरदेसाई की बेटियों में से एक, शोनाली वाशिंगटन डीसी में साइंटिस्ट हैं।
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