दुनिया भर की निगाहें चंद्रयान - 3 पर हैं। जो भारत और ISRO यानी Indian Space Research Organization के लिए बेहद जरूरी है। भारत को चांद पर ले जाने की जिम्मेदारी दो पर है -
पहले - रोवर की - जिसका नाम प्रज्ञान है।
और दूसरे लैंडर की - जिसका नाम विक्रम है।
रोवर का नाम प्रज्ञान - संस्कृत भाषा का शब्द है। जिसका मतलब 'बुद्धिमता' यानी wisdom होता है।
चंद्रमा पर अपनी बुद्धिमता का परिचय देकर ‘प्रज्ञान रोवर’ वहां की चीजों के बारे में पता लगाएगा।
दूसरा लैंडर - जो रोवर ‘प्रज्ञान’ को चंद्रमा की सतह पर उतारने का काम करेगा।
लैंडर का नाम विक्रम – ग्रेट साइंटिस्ट और इंडियन स्पेस प्रोग्राम के जनक डॉ विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है।
विक्रम साराभाई ने देश को अंतरिक्ष में पहुंचाने का सपना देखा। जिनके पिता कई मिल्स के मालिक थे। फिर भी सब छोड़कर लंदन से पढ़ाई की और साइंस से जुड़े। कई बड़े इंस्टीट्यूशन खोले। पूरी जिंदगी देश के नाम कर दी। और सिर्फ 52 साल की उम्र में दुनिया छोड़ दी। इनके जीवन का एक पहलू पत्नी के दुख का कारण भी बना। फिर भी पत्नी को कोई नफरत नहीं। वो चाहतीं कि उनके जीनियस पति को हमेशा जीनियस की तरह ही याद किया जाए। आज कहानी अपने आप में ही एक विराट संस्था डॉ विक्रम अंबालाल साराभाई की।
गुजरात के अहमदाबाद में अंबालाल साराभाई अपनी पत्नी सरला साराभाई के साथ अपने पुश्तैनी बंगले "द रिट्रीट" में रहते। कई मीलों के मालिक अंबालाल साराभाई बड़े रईस और रसूखदार थे। उन्ही के घर 12 अगस्त साल 1919 को विक्रम साराभाई का जन्म हुआ। वो आठ-बहनों में एक थे। विक्रम चाहते तो पूरी जिंदगी अमीरों की तरह जीते पर उन्होंने खुद को इससे दूर रखा।
मां सरला साराभाई ने एक मोंटेसरी स्कूल की नींव रखी। उसी स्कूल से शुरुआती पढ़ाई की। बचपन से ही साइंस को लेकर दिलचस्पी थी इसलिए साल 1937 में इंग्लैंड चले गए। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, लंदन से कॉस्मिक रे में डॉक्टरेट किया। साल 1940 को भारत लौटे और बेंगलुरु के Indian Institute of Science में नोबेल प्राइज विनर डॉक्टर सी.वी रमन के साथ काम करने लगे।
साल 1945 ये वो दौर था जब सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद दुनिया भर में एक और जंग छिड़ी थी। ये जंग थी स्पेस में अपना दबदबा बनाने की। अमेरिका और सोवियत संग इसके लिए दिन-रात काम कर रहे थे। इसी दौरान विक्रम साराभाई ने भी देश को अंतरिक्ष में ले जाने का सपना देखा। और जिस साल देश आजाद हुआ उसी साल अहमदाबाद में फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी की नींव रखी।
विक्रम साराभाई की तरह ही एक और साइंटिस्ट होमी जहांगीर भाभा भी एक सपना देख रहे थे। देश को न्यूक्लियर पावर बनाने का। वो जानते थे देश के लिए न्यूक्लियर पावर एक उज्जवल भविष्य का रास्ता है। दोनों मिले, पर दोनों में काफी मतभेद था।
विक्रम साराभाई की बेटी भरतनाट्यम् डांसर मल्लिका साराभाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि
'दोनों के विचारों में काफी मतभेद था। लेकिन ये बात उनकी दोस्ती के रास्ते में कभी नहीं आई।'
साल 1957 जब रूस ने रॉकेट अंतरिक्ष में भेजा तो विक्रम साराभाई के प्रयास के बाद 1962 में Indian National Committee for Space Research का गठन हुआ। जो बाद में ISRO के नाम से जाना गया। पहला रॉकेट लॉन्च 21 नवंबर, 1963 को किया गया जिसमें होमी भाभा ने उनकी मदद की।
साल 1966 में होमी भाभा की रहस्यमय मौत हो गई। उनके बाद विक्रम एटॉमिक एनर्जी कमीशन के चेयरमैन बने और होमी भाभा के कामों को आगे बढ़ाया।
साल 1966 में विक्रम साराभाई और नासा के बीच एक करार हुआ, जिसके तहत नासा भारतीय लॉन्चिंग स्टेशन से एक सैटेलाइट अंतरिक्ष में भेजने में भारत की मदद करेगा। इंडियन साइंटिस्ट साल 1975 में अपनी पहली सैटेलाइट ‘आर्यभट्ट’ को स्पेस भेजने में कामयाब रहे| लेकिन ये लॉन्चिंग देखने के लिए साराभाई जिंदा नहीं थे।
ये विक्रम साराभाई ही थे, जिन्होंने space Research के साथ textile, management, atomic energy, electronics और कई क्षेत्रों में महत्वपूर्ण काम किया।
कई इंस्टीट्यूशन के साथ विक्रम साराभाई ने Indian Institute of Management अहमदाबाद की भी नींव रखी।
IIM अहमदाबाद की नींव रखने का किस्सा है जो उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा है।
दरअसल, विक्रम साराभाई ने अपनी पत्नी मृणालिनी साराभाई को पहली बार चेन्नई में देखा था। यहीं वो पहली नजर में उनको दिल दे बैठे। मृणालिनी को भारत और विदेशों में डांस आइकन की तरह जाना जाता था। मुलाकातें बढ़ीं और साल 1942 में दोनों ने शादी कर ली। दोनों के दो बच्चे हुए। बेटा कार्तिकेय और बेटी मल्लिका।
सब कुछ ठीक था लेकिन तभी कमला चौधरी की एंट्री होती है। कमला चौधरी मृणालिनी की दोस्त थीं।
कमला चौधरी के पति लाहौर में पोस्टेड थे वहीं पर उन्हें किसी ने गोली मार दी थी। कमला ने यूएसए से सोशल साइकोलॉजी में एमए किया था।
प्रोफाइल अच्छी थी तो मृणालिनी के कहने पर विक्रम ने कमला को अपने Space Applications Centre में नौकरी पर रख लिया। कमला और विक्रम अक्सर मिला करते। नतीजा ये हुआ कि एक लव स्टोरी का जन्म हुआ।
कमला चौधरी के भतीजे सुधीर कक्कड़ की किताब ‘A book of Memory’ के मुताबिक, जब कमला को पता चला कि, वो मृणालिनी और विक्रम के बीच में आ गईं हैं। उन्होंने नौकरी और अहमदाबाद छोड़ने का फैसला लिया। विक्रम नहीं चाहते थे कि, कमला उनसे दूर जाएं। विक्रम ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से आग्रह किया कि, वो आईआईएम अहमदाबाद में ही खोलें। उसी वक्त विक्रम ने कमला को इंस्टीट्यूशन की रिसर्च डायरेक्टर अपॉइंट करने की बात भी कर ली। इसके बाद कमला को अहमदाबाद में ही रुकना पड़ा।
विक्रम साराभाई की बेटी मल्लिका साराभाई ने एक इंटरव्यू में बताया था कि ‘पिता ने मां को बहुत दुख दिया। हालांकि, बाद में उनका रिश्ता थोड़ा ठीक हो गया।’
पद्म भूषण और पद्म विभूषण से सम्मानित विक्रम साराभाई थुंबा रेलवे स्टेशन के उद्घाटन के सिलसिले में केरल गए थे। वो अक्सर कोवलम के रिसोर्ट्स में रुकते।
31 दिसंबर साल 1971 को वो जब रात में अपने कमरे में सोए। तो नींद में उनकी मौत हो गई। सुबह वो अपने बिस्तर में मृत मिले।
लेखिका अमृता शाह की किताब ‘विक्रम साराभाई - ए लाइफ’ के मुताबिक ''मृणालिनी अपने पति विक्रम से बहुत प्यार करतीं। उनके दिल में उनके लिए कोई नफरत नहीं। वो कहती थी कि विक्रम सबसे ज्यादा इंटेलिजेंट इंसान थे। जिनसे वो अपनी पूरी जिंदगी में मिली थीं। वो ऐसे इंसान थे जो भी उनके संपर्क में आता, उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। ऐसा इसलिए था क्योंकि वो लोगों के दिल में अपने लिए आदर और विश्वास की जगह बना लेते और उन पर अपनी ईमानदारी की छाप छोड़ जाते।''
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