'फिल्म डायरेक्टर के. विश्वनाथ पिताजी को बहुत मानते थे। उन्होंने अपनी फिल्म ‘संजोग’ और ‘ईश्वर’ के गीत लिखवाए, जो सुपरहिट हुई। एक बार डायरेक्टर अर्जुन हिरानी, धर्मेंद्र और पिताजी के साथ बैठे हुए थे। कान से थोड़ा कम सुनाई देता था, इसलिए उन्होंने हिरानी से कहा, आप मुझे एक कान की मशीन दिलवा दीजिए, मेरे पैसे में से काट लीजिएगा। ये बात धर्मेंद्र को छू गई।'
ये किस्सा गीतकार समीर ने अपने पिता अंजान के बारे में बताई थी।
गीतकार अंजान, जो बनारस से मुंबई पहुंचे, रहने के लिए जगह नहीं थी तो प्लेटफार्म तो कभी अपार्टमेंट की सीढ़ियों के नीचे रातें काटीं, दसियों साल संघर्ष किया। बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर गुजारा किया।
एक दिन किस्मत पलटी। इनके लिखे गीत पन्नों से बाहर निकले तो छा गए। इनके गीतों में खुशी, गम, मोहब्बत, बिछड़न, हार, जीत जिंदगी के हर रंग की खुशबू आती है। आज कहानी 300 से ज्यादा फिल्मों के लिए करीब 1500 गीत लिखने वाले गीतकार अंजान की, जिन्हें कड़े संघर्ष के बाद नाम, सम्मान और पैसा सब कुछ मिला पर फिर भी मरते वक्त तक इन्हें मलाल रहा।
बनारस के ओदार गांव में शिवनाथ पांडेय और इंदिरा देवी रहते। इन्हीं के घर 28 अक्टूबर साल 1930 को लालजी पांडेय का जन्म हुआ। गरीबी और मुफलिसी में बचपन बीता। हालातों से जूझते पर पढ़ाई से समझौता नहीं किया। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से एम कॉम किया। शादी की, तीन बच्चे हुए जिसमें एक मशहूर गीतकार समीर भी हैं।
अंजान के बेटे समीर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'पिताजी को गीत और कविता लिखने का शौक था। धीरे-धीरे वो इसी शौक से दोस्तों में काफी लोकप्रिय हो गए और दोस्तों ने ही उन्हें 'अंजान' नाम दे दिया।'
एक बार एक कार्यक्रम में सिंगर मुकेश से मुलाकात हुई। इस मुलाकात में मुकेश ने अंजान की कुछ कविताएं सुनी तो बोले- ‘आप यहां क्या कर रहे हैं, आपको मुंबई में होना चाहिए।’
उसके बाद तो अंजान पर मुंबई जाने की धुन सवार हो गई। दरअसल अंजान अस्थमा से पीड़ित थे। डॉक्टर सलाह देते अपनी आबोहवा बदलो, किसी दूसरी जगह बसों, जहां समुद्र हो। फिर क्या था अंजान साल 1953 में मुंबई चले गए। पर वो बेखबर थे आने वाले मुश्किल भरे दिनों से।
मुंबई पहुंचे तो सिंगर मुकेश ने डायरेक्टर और एक्टर प्रेम नाथ से मिलवाया, प्रेम नाथ ने ‘प्रीजनर ऑफ गोलकुंडा’ फिल्म में गीत लिखने का मौका। फिल्म के लिए 500 रुपये मिले। फिल्म भी पिटी और गाने भी नहीं चले।
फिर दिन बीते, महीने बीते और देखते-देखते 10 साल बीत गए। म्यूजिक डायरेक्टरों के पास जाया करते पर काम नहीं मिलता। पैसे नहीं थे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते। जहां ठिकाना मिलता सो जाते, किसी न किसी दोस्त के यहां खाना खा लेते।
उनके बेटे समीर ने एक इंटरव्यू में बताया था कि 'स्ट्रगल के दौर में पिताजी के पास दो जोड़ी पैंट-शर्ट थे, जिनको धोकर बारी-बारी पहना करते थे। उन्हें सफेद शर्ट, सफेद पैंट और सफेद चप्पल या जूता बहुत पसंद था।'
स्ट्रगल जारी रहा था, फिर साल 1963 की फिल्म गोदान के लिए गीत लिखे। पर सफलता अभी भी नहीं मिली। फिर 1969 में फिल्म 'बंधन' के गीत लिखे। जिसके बाद उनकी जोड़ी म्यूजिक डायरेक्टर कल्याण जी – आनंदी जी से बन गए।
और उनके स्ट्रगल के दौर धीरे-धीरे खत्म होने लगे। उस दौर के हर बड़े एक्टर और म्यूजिक डायरेक्ट साथ काम किया।
साल दर साल हेराफेरी, खून-पसीना, मुकद्दर का सिकंदर, दो अनजाने, हीरा और पत्थर, डॉन, डिस्को डांसर, डांस-डांस, साहेब, याराना, लावारिस, स्वामी दादा जैसी 300 से ज्यादा फिल्मों के गीत लिखे।
पर उन्हें हमेशा मलाल रहा। एक से बढ़कर एक सदाबहार हिट गीत लिखने के बावजूद इन्हें कभी फेल्म-फेयर अवॉर्ड नहीं मिला।
जिंदगी के आखिरी दिनों में वो अपने घर बनासर आ गए। 13 सितंबर साल 1997, 66 साल की उम्र में गीतकार अंजान इस दुनिया को अलविदा कह गए।
लेकिन गीतों के रूप में इनका बेशकीमती खजाना आज भी लोगों की जुबां पर ताजा है। अंजान के छोटे बेटे समीर भी गीतकार हैं और सबसे ज्यादा गाने लिखने के मामले में ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज करा चुके हैं।
समीर अक्सर कहते हैं कि पिताजी अंजान उनसे कहते थे कि मुंबई जा तो रहे हो पर स्ट्रगल से घबराना नहीं।
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