गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी ने आंखों में आंख डालकर कहा, गर्दन पकड़ कर समाज को आइना दिखाया, सच से सामना कराया, जवाब देने और सुधार के लिए मजबूर। इन्होंने औरत की आह को अपनी कलम से जुबां दी, वजह शायद यही थी कि उनकी मां ने बड़े जुल्म सहे।
‘जब हम मिलते थे, तो जुबां खामोश रहती थी। नैन बोलते थे। दोनों बस एक टक, एक-दूसरे को देखा करते और इस दौरान साहिर लगातार सिगरेट पीते रहते। जब वो जाते तो कमरे में उनकी पी हुई सिगरेटों की महक बची रहती। मैं उन सिगरेट के बटों को संभालकर रख लेती और अकेले में उन बटों को सुलगाती। जब मैं उन्हें अपनी उंगलियों में पकड़ती तो मुझे लगता कि, मैं साहिर के हाथों को छू रही हूं।’
गीतकार और शायर साहिर लुधियानवी से अपनी इश्क की इस दास्तां को मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम ने अपनी बायोग्राफी ‘रसीदी टिकट’ में लिखा है।
साहिर लुधियानवी, वो गीतकार जिसने आंखों में आंख डालकर कहा, गर्दन पकड़ कर समाज को आइना दिखाया, सच से सामना कराया, जवाब देने और सुधार के लिए मजबूर किया। कोई समझौता नहीं, कोई डर नहीं।
आज कहानी साहिर लुधियानवी की जिनके लिए औरत का कोई भी रूप हो उसकी आह को अपनी कलम से जुबां दी, इसके पीछे वजह शायद यही थी कि उनकी मां ने बड़े जुल्म सहे।
लुधियाना के जागीरदार, चौधरी फजल मोहम्मद, जो 10 बार शादी कर चुके थे। फिर उनका दिल आया सरदार बेगम पर। चौधरी फसल मोहम्मद और सरदार बेगम को 8 मार्च, साल 1921 को एक बेटा हुआ नाम रखा, अब्दुलहई।
चौधरी फजल मोहम्मद ने 12वीं शादी भी की। जिसके बाद से चौधरी फजल मोहम्मद सरदार बेगम से बुरा बर्ताव करने लगे। तो सरदार बेगम बेटे अब्दुलहई को लेकर घर छोड़कर चली गईं।
सालों मुकदमेबाजी, पिता की अय्याशी, मां की परेशानियों के बीच बचपन से बड़े हुए अब्दुलहई के जहन में कड़वाहट भर गई। जिंदगी की तमाम जद्दोजहद झेलकर सरदार बेगम ने अपने बेटे को पढ़ाया लिखाया।
ऐसे हालात में बड़े हुए अब्दुलहई ने जब अपने दर्द को शायरी के जरिये बाहर निकाला तो वो साहिर लुधियानवी बन गए।
‘देखा है जिंदगी को कुछ इतने करीब से, चेहरे तमाम लगने लगे हैं अजीब से’ की तरह साहिर लुधियानवी की जिंदगी में झांकेंगे तो एक कामयाब शायर नजर आएगा। एक प्रेमी नजर आएगा जिसकी मोहब्बत अधूरी रह गई। वो विद्रोही नजर आएगा जिसके गीत समाज को दिशा दिखाते थे। साहिर पहले ऐसे गीतकार थे जिन्हें अपने गानों की रॉयल्टी मिली। उस दौर में आकाशवाणी पर गीतों के प्रसारण के दौरान सिर्फ सिंगर और म्यूजिक डायरेक्टर का नाम ही बोला जाता। वो साहिर लुधियानवी ही थे, जिनके प्रायसों के बाद ही गीतकारों के नाम भी बोले जाने लगे।
बॉलीवुड के लिए सैकड़ों गीत लिखने वाले साहिर लुधियानवी की जिंदगी उनके गीतों की तरह ही है। माता-पिता अलग हुए तो साहिर को अपनी मां के साथ मुफलिसी में रहना पड़ा। और ये दर्द उनके गीतों में झलका। साहिर की जिंदगी में मोहब्बत थी जो अधूरी रह गई। समाज की बुराइय़ों के लिए आक्रोश है। संघर्ष है, सफलता है। और इस बात की जेहनियत है कि वो सिर्फ पल दो पल के शायर हैं। उनके जाने के बाद उनसे बेहतर कहने वाले जरूर आएंगे।
साल 1944 में लाहौर में एक मुशायरे में उनकी मुलाकात कवयित्री अमृता प्रीतम से हुई। अमृता प्रीतम की पहले से शादी हो चुकी थीं। जो बेहद कम उम्र में हुई थी। अपनी शादीशुदा जिंदगी से नाखुश अमृता जब साहिर से मिलीं तो दोनों एकदूसरे को दिल दे बैठे। दोनों के बीच लंबे-लंबे खतों की सिलसिला शुरू हो गया। अक्सर दोनों मिलते भी।
साहिर लुधियानवी की बायोपिक ‘साहिर लुधियानवी : द पीपुल्स पोएट’ में अमृता प्रीतम के हवाले से लिखा गया है कि, ‘एक रोज साहिर ने मुझे बताया था कि जब हम दोनों लाहौर में थे तो वो अक्सर, मेरा घर जिस गली में था, उसके नुक्कड़ पर आकर खड़े हो जाया करते थे। कभी पान खरीदते तो कभी सिगरेट और कभी हाथ में सोडे का गिलास थामे घंटों वहीं खड़े होकर मेरे घर की खिड़की की तरफ एक टक निगाहें बांधे रहते।’
अमृता और साहिर की मोहब्बत के किस्से जब अमृता के पति प्रीतम सिंह के कानों में पड़े तो दोनों के बीच झगड़ा हुआ। अमृता प्रीतम के पिता भी इस मोहब्बत के खिलाफ थे। वजह थी अमृता हिंदू थी और साहिर मुसलमान थे। एक दिन अमृता ने पति का घर और लाहौर दोनों छोड़ दिया और दिल्ली आ गईं।
इधर साहिर की मुलाकात सिंगर सुधा मल्होत्रा से हो गई। और दोनों के बीच इश्क हो गया। लेकिन ये भी इश्क मुकम्मल न हो सका। फिर साहिर ने ताउम्र शादी नहीं की। इधर अमृता प्रीतम की मुलाकात शायर इमरोज से हो गई थी।
साल 1943 में साहिर लुधियानवी ने पहला कविता संग्रह ‘तल्खियां’ लिखा उसके बाद वो फेमस हो गए। साल 1945 में वो लाहौर में कई उर्दू अखबारों में एडिटर रहे। देश का जब बंटवारा हुआ तो पहले वो पाकिस्तान में ही रुके। बतौर एडिटर जब बंटवारे की त्रासदी के बारे लिखते तो सियासत दानों को चुभने लगे। फिर वो साल 1949 में भारत आ गए। कुछ वक्त दिल्ली में रहे फिर मुंबई का रुख किया। यही से उनका फिल्मों में गीत लिखने का सफर शुरू हुआ।
उनकी मुलाकात पृथ्वीराज कपूर से हुई। और साल 1949 की फिल्म - ‘आजादी की राह’ के लिए पहली बार गीत लिखा।
साल 1951 की फिल्म ‘नौजवान’ के लिखे गीत से वो बेहद फेमस हो गए और उनकी गाड़ी चल पड़ी। अपने तीन दशक के फिल्मी सफर में 80 से ज्यादा फिल्मों के लिए गीत लिखे।
साल 1958 की फिल्म 'साधना' के गीत "औरत ने जन्म दिया", साल 1964 की फिल्म ‘ताजमहल’ के गीत "जो वादा किया, वो निभाना पड़ेगा" और साल 1977 की फिल्म ‘कभी-कभी’ के लिए "कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है" के लिए फिल्मफेयर का बेस्ट लिरिसिस्ट का अवार्ड मिला।
आजाद ख्याल इंसान साहिर लुधियानवी की जिंदगी में उतार-चढ़ाव आते रहे और वो लिखते रहे। 25 अक्टूबर साल 1980, 59 साल की उम्र में दिल का दौरा पड़ने से वो दुनिया छोड़ कर चले गए।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक साल 1971 में पद्मश्री से सम्मानित साहिर लुधियानवी की बायोपिक डायरेक्टर संजय लीला भंसाली बना सकते हैं। साहिर का किरदार अभिषेक बच्चन निभा सकते हैं।
साहिर लुधियानवी की जिंदगी को कुछ लाइनों में नहीं समेटा जा सकता। दुनिया उनको हमेशा याद रखेगी। पर साहिर लुधियानवी साल 1957 की फिल्म ‘प्यासा’ में इसी दुनिया के लिए एक गीत गए हैं -
ये महलों, ये तख्तों, ये ताजों की दुनिया
ये इंसान के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है...
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