Music Director Ravindra Jain : बेरंग जिंदगी में संगीत से भरे रंग

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संगीतकार रवींद्र जैन की आंखों में रोशनी तो नहीं थी, लेकिन अपने संगीत से पूरी दुनिया को रोशन कर दिया। शब्दों को कभी देखा, लेकिन उसे अपनी आवाज और समझ से एक नया आयाम दिया।

ठंड में ठंडे पानी से नहाना सबसे मुश्किल काम है। और यही वो ठंड है जिसमें भाई – बहनों की शादी में खूब मजा आता है और इन दोनों ही सिचुएशन यानी नहाने और शादी के लिए दो गाने हमेशा याद आते हैं।

पहला हैं साल 1978 की फिल्म ‘पति-पत्नी और वो’ का ‘ठंडे-ठंडे पानी से नहाना चाहिए’ और दूसरा - साल 1974 की फिल्म ‘चोर मचाए शोर’ का ‘ले जाएंगे, ले जाएंगे, दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’। 

इन दोनों की तरह ही सैकड़ों गानों को अपने संगीत से सजाने वाले रवींद्र जैन, जो एक बेहतरीन गीतकार और सिंगर भी थे। रवींद्र जैन ने लता मंगेशकर, आशा भोंसले, किशोर कुमार, मोहम्मद रफी के लिए गीत रचा, तो दूसरी तरफ आरती मुखर्जी, हेमलता, जसपाल सिंह और येसुदास के लिए उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ धुनें दीं।

रवींद्र जैन वो संगीतकार, जिनकी आंखो में रोशनी तो नहीं थी, लेकिन अपने संगीत से पूरी दुनिया को रोशन कर दिया।

इन्होंने शब्दों को कभी देखा, लेकिन उसे अपनी आवाज और समझ से एक नया आयाम दिया।

यूपी के अलीगढ़ में संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेदाचार्य श्री इंद्रमणि जैन रहते। साथ में पत्नी किरन जैन जो एक गृहणी थीं और उनके सात बच्चे।जिनमें तीसरे नंबर पर थे, 28 फरवरी साल 1944 जन्मे रवींद्र जैन।

रवींद्र जैन की बायोग्राफी ‘सुनहरे पल’ के मुताबिक ...

उनकी आंखें कमजोर थी, और फिर धीरे-धीरे एक दिन दिखना बंद हो गया। एक ब्लाइंड स्कूल में एडमिशन हुआ। पढ़ाई के दौरान उन्होंने सूरदास के कुछ भजन सुने तो प्रेरणा मिली। और उसी में मन लग गया। पिता के साथ मंदिर जाते, वहां भक्ति गीत गाते।

एक दिन एहसास हुआ कि म्यूजिक में ही अपना करियर बनाएंगे। फिर पिता ने घर पर ही संगीत सीखाने के लिए एक टीचर रख दिया। वक्त गुजरा और वो अपने चाचा के साथ कोलकाता चले गए। जीएल जैन, पंडित घमंडी लाल, पंडित जनार्दन शर्मा और पंडित नाथू राम शर्मा जैसे महारथियों के शागिर्द बने। प्रयाग संगीत समिति से प्रभाकर की डिग्री ली।

रवींद्र जैन गीत और भजनों को दूसरों के मुंह से सुनकर बड़े हुए। वो जो कुछ भी सुनतेउन्हें याद रह जाता। हारमोनियम और तबला बजाने में भी उनको महारत हासिल हुई। वो गीत लिखते और उन्हें गाते भी। ये वो वक्त था जब उम्र 25-26 साल हो चुकी थी। उन्हें लगा की बतौर सिंगर उन्हें अपने करियर को आगे बढ़ाना चाहिए।

पर मंजिल मिले इससे पहले रास्ते में कई रुकावटें आईं। उन्होंने रेडियो स्टेशन में ऑडिशन दिया पर रिजेक्ट कर दिए गए। फिर मुलाकात हुई फिल्म प्रोड्यूसर राधे श्याम झुनझुनवाला से। राधे श्याम झुनझुनवाला ने रवींद्र जैन से मुंबई आकर ‘लोरी’ फिल्म का संगीत और गाने लिखने के लिए कहा।

साल 1971 रवींद्र जैन ने अपना पहला गीत महान सिंगर मोहम्मद रफी के साथ रिकॉर्ड किया। जिसके बोल थे - ‘ये सिलसिला है प्यार का चलता ही रहेगा’। रवींद्र जैन ने लता मंगेशकर और आशा भोसले से भी गीत गवाए।

पहली बार इतने दिग्गज लोगों के साथ काम किया तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा। पर फिल्म लोरी कभी बन ही नहीं पाई।

साल 1972 की फिल्म 'कांच और हीरा' में म्यूजिक देने का मौका मिला। लेकिन ये फिल्म भी पिट गई पर रवींद्र जैन हिट हो गए।

क्योंकि मोहम्मद रफी की आवाज से सजा फिल्म के एक गाने ‘नजर आती नहीं मंजिल’ की लोगों ने जमकर तारीफ की। यही गाना सुनकर राजश्री प्रोडक्शन ने साल 1973 की फिल्म 'सौदागर' का म्यूजिक देने के लिए रवींद्र जैन को चुना। और फिर किस्मत ने दरवाजे खोले।

‘सौदागर’ फिल्म तो फ्लॉप थी पर फिल्म का एक गीत ‘सजना है मुझे सजना के लिए’ सुपर डुपर हिट हो गया। और फिर रवींद्र जैन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

रवींद्र जैन ने क्लासिकल और लोक गीत पर बेस्ड फिल्मी गानों को रचा और वो सीधे लोगों के दिलों में बस गए। रवींद्र जैन की खास बात ये थी जिन गानों को उन्होंने अपनी धुन से सजाया उनमें से 50 फीसद गानें उन्होंने लिखे हैं।

चाहे वो साल 1974 की ‘चोर मचाए शोर’ का गीत ‘घुंघरू’ की तरह, बजता ही रहा हूं मैं’ हो, या फिर, साल 1975 की फिल्म ‘गीत गाता चल’ का गाना ‘गीत गाता चल, ओ साथी गुनगुनाता चल’, साल 1976 की फिल्म ‘चितचोर’ का गाना ‘जब दीप जले आना, जब शाम ढले आना’ हो, या फिर साल 1978 की फिल्म 'अखियों के झरोखों सेका ‘आंखियों के झरोखों से, मैंने देखा जो सांवरे’साल 1982 की फिल्म ‘नदियां के पार’ का गाना ‘कौन दिशा में लेके चला रे बटुहिया’ और 1991 की फिल्म 'हिना' का गीत 'मैं हूं खुशरंग हिना' इन सभी गानों को रवींद्र जैन ने लिखा ।

और उनको अपनी धुन से सजाया है जिसे आज भी सुनते हैं तो मन भाव विभोर हो ही जाता है। फिल्मकार बीआर चोपड़ा ने म्यूजिक डायरेक्टर रवि को छोड़ा तो रवींद्र जैन को साल 1978 की फिल्म ‘पति पत्नी और वो’ और 1980 की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ के म्यूजिक जिम्मेदारी दी।

शो मैन राजकपूर की फिल्में में म्यूजिक का अलग महत्व होता है। जब म्यूजिक डायरेक्टर लक्ष्मीकांत प्यारेलाल से किनारे हुए तो वो भी रवींद्र जैन के पास ही खड़े नजर आए। फिल्म ‘राम तेरी गंगा मैली’, ‘प्रेम रोग’ और ‘हिना’ में रवींद्र जैन ने भी राज कपूर के फैसले को गलत साबित नहीं होने दिया। साल 1985 में फिल्म 'राम तेरी गंगा मैली' के लिए बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्मफेयर मिला।

साल 2006 की ‘विवाह’, साल 2008 की ‘एक विवाह...ऐसा भी’ जैसी 50 ज्यादा से फिल्मों के जरिये रवींद्र जैन ने चार दशक के करियर में कई बेहतरीन गीत दिए। उनके म्यूजिक और उनकी लेखिनी की वजह से ये फिल्में सिर्फ हिट नहीं बल्की सुपरहिट हुईं। साल 2014 की फिल्म ‘कहीं है मेरा प्यार’ जो उनकी आखिरी फिल्म थी।

एक वक्त आया जब उनका करियर भी ढला। वजूद बना रहे इसके लिए बहुत सी ऐसी फिल्में कीं जिसमें वो अपनी छाप नहीं छोड़ सके। फिर टीवी सीरियल की तरफ रुख किया, और इतिहास रच दिया।

साल 1987 में रामानंद सागर के निर्देशन में बना टीवी सीरियल रामायणबन रहा था जो रवींद्र जैन ने ही इसका म्यूजिक दिया। आज की पीढ़ी में रवींद्र जैन की आवाज में रामायण की चौपाइयां सुनती हैं तो भक्तिमय हो जाती है।

इनकी आवाज को भगवान की आवाज भी कहा जाने लगा। फिर साल दर साल श्री कृष्णा, जय हनुमान और अलीफ लैला जैसे 12 टीवी सीरियल का म्यूजिक दिया।

रविंद्र जैन ने शादी दिव्या जैन से हुई जो एक कवयित्री थीं। उनका बेटे - आयुष्मान जैन है।

वो जिंदगी के आखिरी वक्त तक काम करते रहे। श्रीमद्भागवतवेद और उपनिषदों का सरल हिंदी में अनुवाद कर रहे थेपर वक्त ने साथ नहीं दिया।

किडनी की बीमारी जूझते हुए 71 साल की उम्र में नौ अक्टूबर, साल 2015 को दुनिया से अलविदा कह गए। कई अवार्ड से सम्मानित रवींद्र जैन के जाने से कुछ दिन पहले ही भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मानित किया गया।

रवींद्र जैन ने मन की आंखों से संगीत को जिया और समझा। खुद अंधेरे में रहे लेकिन अपने संगीत से कई लोगों के दर्द को कम कर गए। रवींद्र जैन ने आम लोगों में जो जगह बनाई वो लाजवाब है।

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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