महान सिंगर लता मंगेशकर जिनकी ढेरों किस्से, कहानियां हैं। उन पर परिवार की जिम्मेदारी थी। करियर बनाने के लिए संघर्ष है। फिर सफलता की वो बुलंदी है जिसे शायद ही कोई छू पाए। उनके रिश्ते, उनके दोस्त, अधूरे प्यार की दास्तां बड़ी दिलचस्प है।
एक बार महान गायक बड़े गुलाम अली खान अपनी कार से मुंबई के कैनेडी ब्रिज से गुजर रहे थे। तभी ड्राइवर से कहा ‘गाड़ी रोक दो, अल्लाह की सही इबादत हो रही है। गाड़ी आगे नहीं जा सकती।’
क्योंकि, तब उन्होंने दूर कहीं से आती हुई लता मंगेशकर की आवाज सुनी थी। बड़े गुलाम अली खान, जिनको लता जी अपना गुरु मानती थीं, वो अक्सर कहते ‘कमबख्त, लता कभी बेसुरी होती ही नहीं।’
लता मंगेशकर जिनके लिए म्यूजिक डायरेक्टर नौशाद ने कहा था ‘अल्लाह ने अपने सारे प्यार से एक ही लता बनाई और अब वो कभी दूसरी लता नहीं बना सकेंगे।’
वो लता मंगेशकर, जिनके लिए मोहम्मद रफी ने रिकॉर्डिंग के वक्त खुशी के आंसू बहाते हुए कहा ‘वो देखो, खुदा की देन गा रही है।’
किशोर कुमार कहते – ‘लता को भगवान ने इसलिए बनाया की कोई नास्तिक भी उनके होने का यकीन कर ले।’
आज कहानी महान सिंगर लता मंगेशकर की। जिनकी ढेरों किस्से, कहानियां हैं। उन परिवार की जिम्मेदारी है। करियर बनाने को लेकर कड़ा संघर्ष है। फिर सफलता की वो बुलंदी है जिसे शायद ही कोई छू पाए। उनके रिश्ते, उनके दोस्त, उनके अधूरे प्यार दास्तां बड़ी दिलचस्प है।
गोवा के मंगेशी गांव के रहने वाले पंडित दीनानाथ हार्डीकर। गांव का नाम मंगेशी था तो अपना हार्डीकर सरनेम हटाकर मंगेशकर कर लिया। शादी नर्मदा से की, पर कुछ वक्त में नर्मदा की डेथ हो गई। इसके बाद नर्मदा की छोटी बहन शेवंती से दूसरी शादी की। पांच बच्चे हुए। आशा भोसले, मीना खाडीकर, उषा मंगेशकर, हृदयनाथ मंगेशकर और इन सभी में सबसे बड़ी 28 सितंबर साल 1929 को जन्मी लता मंगेशकर।
लता मंगेशकर का पहले नाम रखा गया हेमा। कुछ वक्त के बाद पिता दीनानाथ मंगेशकर ने एक नाटक देखा ‘भव बंधन’। इसमें एक फीमेल कैरेक्टर का नाम ‘लतिका’ था। ये कैरेक्टर पंडित दीनानाथ को इतना पसंद आया की अपनी बेटी हेमा का नाम बदलकर लता कर दिया।
पंडित दीनानाथ मंगेशकर पेशे से थियेटर आर्टिस्ट, म्यूजिक डायरेक्टर और सिंगर थे। घर में गीत संगीत का माहौल था। तो सभी बच्चों का रुझान इस तरफ गया। इस सभी के पहले गुरु पिता ही थे जिनसे संगीत सीखा। लता मंगेशकर भी पांच साल की उम्र से गाना सीखने लगीं।
साल 1942 लता मंगेशकर जब महज 13 साल की थीं तो उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर का निधन हो गया। जिसके बाद उनकी जिंदगी पूरे तरीके से बदल गई। लता मंगेशकर फैमिली में सबसे बड़ी थीं, इसलिए घर चलाने की जिम्मेदारी इन पर आई।
लता और उनकी छोटी बहन आशा में बहुत प्यार था। जहां लता जातीं, वहीं आशा भी जातीं। एक बार लता मंगेशकर पहली बार स्कूल पढ़ने गईं तो आशा भी उनके साथ जाने लगी। दिक्कत थी स्कूल की फीस सिर्फ लता जी की दी गई थी, और आशा जी की फीस देने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में एक ही लोग पढ़ सकता था। लता जी स्कूल वालों से नाराज हुईं और तय किया वो कभी स्कूल नहीं जाएंगी और आशा को स्कूल भेजा।
नवयुग चित्रपट मूवी कंपनी के मालिक मास्टर विनायक ने लता मंगेशकर का करियर और एक एक्ट्रेस और सिंगर के रूप में संवारा। पर लता जी को एक्टिंग करना पसंद नहीं था पर घर के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। इसलिए हिंदी और मराठी फिल्मों में एक्टिंग करनी पड़ी। साल 1942 में एक मराठी फिल्म के लिए गाना रिकॉर्ड किया था पर ये गाना फाइनल कट से हटवा दिया गया। फिर 1942 में एक और मराठी फिल्म ‘मंगला गौर’ में पहली बार उनकी आवाज सुनने को मिली। साल 1943 में एक और मराठी फिल्म ‘गजाभाऊ’ में उन्होंने एक हिंदी गाना गया। जिसके बोले थे - ‘माता एक सपूत की दुनिया दे तू’।
साल 1945 लता जी पूरी फैमिली के साथ इंदौर से मुंबई आ गईं। वहां भिंडी बाजार घराना के उस्ताद अमन अली से क्लासिकल म्यूजिक सीखा।
साल 1945 की फिल्म ‘बड़ी मां’ में एक भजन गाने का मौका मिला। जिसके बाद गुलाम हैदर और वसंत देसाई जैसे दिग्गज म्यूजिक डायरेक्टर्स के संपर्क में आईं और वक्त के साथ उनका करियर निखरता चला गया।
करियर की शुरुआत में कई बार उनकी पतली आवाज होने के कारण रिजेक्शन मिला। एक बार एक्टर दिलीप कुमार ने कहा था – ‘मराठियों की आवाज से दाल भात की गंध आती है।’ जिसके बाद लता मंगेशकर ने हिंदी और उर्दू सीखने के लिए एक टीचर रखा और अपने उच्चारण को सही किया। खूब मेहनत की।
लता मंगेशकर ने अपने 07 दशक के फिल्मी सफर में 50 हजार से ज्यादा गाए। सिर्फ हिन्दी और मराठी में नहीं 36 भाषाओं में गाना गाया। लता जी को 07 बार फिल्मफेयर और तीन बार नेशनल अवार्ड मिला। साल 1969 में पद्म भूषण, 1989 में दादा साहेब फाल्के, साल 1999 में पद्म विभूषण और साल 2001 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया।
लता मंगेशकर के रिश्ते सभी से अच्छे थे। पिता पंडित दीनानाथ मंगेशकर को ‘बाबा’ और मां को ‘माई’ कहतीं। अपनी बहनों को ‘ताई’ और अपने इकलौते भाई हृदयनाथ मंगेशकर को ‘बाल’ कहतीं। उनके और मुंहबोले भाई थे। ‘मुकेश भैया’, ‘मदन भैया’ और ‘यूसुफ भैया’। वो रक्षा बंधन पर उनको राखी जरूर बांधतीं। साउथ फिल्म इंडस्ट्री में उनके एक और भाई थे शिवाजी गणेशन – जिन्हें वो ‘अन्ना’ कहतीं।
एक नाम और है जिससे लता मंगेशकर प्यार करतीं - ‘मिट्ठू’। ये ‘मिट्ठू’ कौन हैं ये अभी बताते हैं। फिल्म हिस्टोरियन और वरिष्ठ पत्रकार अली पीटर जॉन के एक लेख के मुताबिक – ‘लता मंगेशकर ने कभी शादी नहीं की पर उनके प्यार के किस्से उड़े जरूर थे। करियर के शुरुआती दौर में एक म्यूजिक डायरेक्टर से उन्हें प्यार हुआ था। ये खबर सामने भी आई, पर ये मजबूत दावे से नहीं कहा जा सकता। हां, वो निश्चित तौर पर डूंगरपुर राज घराने के महाराजा राज सिंह से प्यार करती थीं।’
महाराजा राज सिंह क्रिकेटर रहे हैं। साल 96 से 99 तक वो इंडियन क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष भी रहे हैं। वहीं लता मंगेशकर भी म्यूजिक के बाद जिसका सबसे ज्यादा शौक रखतीं वो क्रिकेट था।
वो महाराजा राज सिंह के साथ वक्त बितातीं। राज सिंह लता मंगेशकर के भाई हृदयनाथ मंगेशकर के दोस्त भी थे। लता और राज की मुलाकात हृदयनाथ मंगेशकर ने ही कराई थी। क्रिकेट दोनों को करीब लाया। राज सिंह और लता मंगेशकर एक दुसरे को पसंद करते। उम्र में राजसिंह लता से छह साल बड़े थे। जब भी राज सिंह ऊनी सूट पहनते लता मंगेशकर उन्हें ही प्यार से ‘मिट्ठू’ कहकर बुलातीं?
ये प्यार की कहानी अधूरी रह गई। राज सिंह ने अपने पिता और मां से वादा किया था कि वो किसी भी आम लड़की को राजघराने की बहू नहीं बनाएंगे।
लता मंगेशकर का शादी न करने की एक वजह घर की जिम्मेदारियां थीं। लता की तरह राज सिंह ने भी ताउम्र शादी नहीं की। राज का लता मंगेशकर के लिए प्यार इस बात से समझा जा सकता है कि उनकी जेब में हमेशा एक टेप रिकॉर्डर रहता जिसमें लता के चुनिंदा गाने होते थे।
लता जी महान क्रिकेटर और भारत रत्न सचिन तेंदुलकर को अपना बेटा मानतीं और उनकी फैमिली से बेहद लगाव रखतीं। उनकी आखिरी फिल्मी गाने की बात की जाए तो वो साल 2006 में रिलीज हुई 'रंग दे बसंती' का गाना 'लुका छिपी' था। जिसे एआर रहमान ने कंपोज किया और उन्होंने लता जी के साथ ये गाना गाया भी था।
लता की जिंदगी में कोई विवाद नहीं था। उनके इंडस्ट्री में सभी दोस्त थे। जिससे मनमुटाव हुआ भी कुछ वक्त के बाद वो भी खत्म हो गया। लता मंगेशकर ने उम्र भर सादा जीवन जीया। जिंदगी के आखिरी वक्त में वो अपने मुंबई में अपने घर में रहती।
उम्र 92 साल की थी वो कोरोना से संक्रमित हुई। मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया। जहां 6 फरवरी साल 2022 में उनका निधन हो गया।
लता मंगेशकर के निधन के बाद फिल्म हिस्टोरियन और वरिष्ठ पत्रकार अली पीटर जॉन ने एक बार कहा था ‘वो अमर है, अनंत है। कुछ लोग मुझे पूछते हैं, क्या लता की कथा कभी खत्म होगी की नहीं? मैंने कहा, लता को दो हजार साल तक कोई भूल नहीं पाएगा, क्योंकि खुदा को भी कोई भूल नहीं पाएगा।’
जब तक ये इंडस्ट्री रहेगी, लता की कहानी रहेगी। आज भले हमारे साथ लता मंगेशकर नहीं है लेकिन आवाज हमेशा गूंजती रहेगी।
साल 1977 की फिल्म किनारा की एक गाने की तरह जिसे लता मंगेशकर ने ही गाया था।
नाम गुम जाएगा
चेहरा ये बदल जाएगा
मेरी आवाज़ ही पहचान है
गर याद रहे
Comment
0 comment