Noor Jehan की कहानी : 'जहां' भर के थे 'नूर' के नखरे | Manchh न्यूज़

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मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां ने अच्छे और बुरे, दोनों दौर देखे। इन्होंने नौजवान लड़कों से इश्क किया। दो शादियां की, दोनों से तलाक लिया। छह बच्चों को अकेले पाला। अपनी शर्तों पर जिया। लेकिन जीवन के आखिरी क्षणों में बेइंतहा तकलीफ भी झेली।

 

न मालूम कितने दावेदार थे, उनके दिल के। पता नहीं, कितने दिलों की धड़कन थीं वो। वो हसीन निगाहों की मालिकन। वो खूबसूरत आवाज की मल्लिका। वो नफासत का अंदाज, वो गुफ्तगु का लहजा, जिस पर फिदा होने को तैयार थे उनके लाखों मुरीद। जब वो गुनगुनाती थीं, तो ठहर जाती थीं धड़कनें। तभी तो इन्हें पाकिस्तान में मल्लिका-ए-तरन्नुम कहा गया।

एक बार पाकिस्तान के एक नामी शख्स राजा तजम्मुल हुसैन ने बड़ी हिम्मत करके मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहां से एक सवाल पूछा कि आपके कितने आशिक रहे हैं, अबतक?’

तो नूरजहां ने गिनाना शुरू किया। कुछ ही मिनटों बाद इन्होंने तजम्मुल हुसैन से पूछा,

"कितने हुए अब तक?"

तजम्मुल ने जवाब दिया – जी अब तक 16!

तब नूरजहां ने पंजाबी में क्लासिक टिप्पणी की-

"हाय अल्लाह! न-न करदियां वी 16 हो गए ने!"

आज कहानी नूरजहां की, जिन्होंने करियर और निजी जिंदगी में अच्छे और बुरे, दोनों दौर देखे। जो जितनी पाकिस्तान की हैं उनती भारत की। पूरी दुनिया में इनके फैन थे। खूब मेहनत की बड़ा मुकाम पाया।

इनकी जिंदगी के पन्ने पलटेंगे तो इन्होंने नौजवान लड़कों से इश्क किया। दो शादियां की, दोनों से तलाक लिया। छह बच्चों को अकेले पाला। अपनी शर्तों पर जिया। लेकिन जीवन के आखिरी क्षणों में बेइंतहा तकलीफ भी झेली।

ये वो दौर था, जब भारत बंटा नहीं था। तब पंजाब के कसूर जिले में जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है वहां 21 सितंबर, साल 1926 को एक पंजाबी मुस्लिम परिवार में अल्लाह राखी वसाई का जन्म हुआ।

वो पिता इमदाद अली और मां फतेह बीबी के 11 बच्चों में से एक थीं। बचपन से इनका झुकाव म्यूजिक और एक्टिंग की तरफ गया। वजह थी माता-पिता दोनों ही थिएटर आर्टिस्ट और सिंगर थे। अल्लाह राखी की प्रतिभा को देखकर माता – पिता ने क्लासिकल म्यूजिक सीखने के लिए उस्ताद गुलाम मोहम्मद के पास भेजा और छह साल की उम्र से ही बड़ी बहन के साथ लाहौर में लाइव परफॉर्मेंस करने लगी।

साल 1935 में पिता काम के सिलसिले से कोलकाता शिफ्ट हुए और उन्हें साथ में ये भी उम्मीद थी की कोलकाता में शायद बच्चों का भी भविष्य संवर जाएगा। तो पूरी फैमिली को भी अपने साथ ले आए।

इस दौरान अपने दौर की मशहूर सिंगर मुख्तार बेगम ने छोटी सी अल्लाह राखी वसाई की आवाज सुनी और खूबसूरती देखी तो उनका नाम अल्लाह राखी वसाई से बदलकर नूरजहां रख दिया।

शुरुआती दौर में करीब छह से आठ फिल्मों में नूरजहां ने बतौर चाइल्ड आर्टिस्ट और सिंगर काम किया। और इसी के साथ उनका फिल्मी सफर शुरू हुआ। बतौर लीड एक्ट्रेस साल 1942 में एक्टर प्राण के साथ फिल्म ‘खानदान’ की। ये फिल्म हिट रही। और देखते ही देखते नूरजहां भारत की टॉप की सिंगर और एक्ट्रेस की लिस्ट में शामिल हो गईं।

उम्र में तीन साल छोटी लता मंगेशकर भी नूरजहां की फैन थी और उनको आइडियल मनातीं। लता मंगेशकर और नूजजहां का लोग कम्पैरिजन तरते। तब नूरजहां कहतीं कि इसमें कोई शक नहीं कि एक दिन लता मंगेशकर बहुत बड़ी सिंगर बनेगी।

लता मंगेशकर के साथ नूरजहां के बॉलीवुड में कई सारे दोस्त थे, लोग उन्हे चाहते थे पर ये सब छोड़कर उन्हें जाना पड़ा।

वजह, साल 1947 का बंटवारा। पंजाब का कसूर, नूरजहां की जन्मभूमि पाकिस्तान हिस्सा बना। इसलिए नूरजहां पाकिस्तान चलीं गई।

साल 1951 में पहली पाकिस्तानी फिल्म ‘चन वे’ में बतौर एक्ट्रेस और प्लेबैक सिंगर काम किया। ये फिल्म सुपरहिट रही। खास बात ये भी थी कि अपने पति और अपने दौर के दिग्गज फिल्म डायरेक्टर शौकत हुसैन रिजवी के साथ नूरजहां ने फिल्म को डायरेक्ट भी किया था।

जिस वजह से नूरजहां को पहली पाकिस्तानी महिला डायरेक्टर का खिताब भी मिला।

सबकुछ ठीक था, अच्छा-खासा करियर, पति और तीन बच्चे। पर जिंदगी ने अचानक करवट ली।

दरअसल, साल 1941 में नूरजहां ने शौकत हुसैन रिजवी से शादी की थी। 12 साल बाद, साल 1953 में दोनों का तलाक हो गया। वजह थी, दोनों के बीच रिश्ते में कड़वाहट।

किस्सा ये भी है नूरजहां बेहद आशिक मिजाज थीं। उनका दिल नौजवान और खूबसूरत लड़कों को देखकर धड़कता था। वो किसी भी बदसूरत आदमी से बात करना तो दूर उनको देखना भी पसंद नहीं करती थीँ। कहा ये भी जाता है कि जब वो स्टेज में परफॉर्म करतीं तो आगे की सीट पर कोई भी बदसूरत आदमी नहीं बैठ सकता था।

बीबीसी की खबर के मुताबिक, नूरजहां की कार जब लड़कों के सामने से गुजरती तो धीमी हो जाया करती थीं ताकि वो नौजवान लड़कों को जी भर के देख सके।

नूरजहां के पति शौकत रिजवी भी अपनी किताब 'नूरजहां की कहानी मेरी जुबानी' में लिखते हैं कि

अपने देश पाकिस्तान के लिए पहली गेंद खेलने वाले और  पहला शतक लगाने वाले अपने दौर के दिग्गज पाकिस्तानी क्रिकेटर नजर मोहम्मद का करियर नूरजहां की वजह से बर्बाद हुआ था।

एक बार एक कमरे में नूरजहां और नजर मोहम्मद दोनों एक साथ पकड़े गए। अचानक मुझे आता देख नजर मोहम्मद डर गए और पहली मंजिल की खिड़की से कूद गए। इस वजह से उनका हाथ टूट गया और ये हाथ ठीक न हो सका। जिस वजह से नजर मोहम्मद दोबारा क्रिकेट नहीं खेल पाए।

नूरजहां की फैन लिस्ट में पाकिस्तानी सेना के जनरल आग़ा मुहम्मद का नाम भी शामिल है। जो आगे चलकर पाकिस्तान के तानाशाह और तीसरे राष्ट्रपति बने।

पहले पति रिजवी से तलाक होने के छह साल बाद साल 1959 में नुरजहां ने अपनी उम्र से नौ साल छोटे फिल्म एक्टर एजाज दुर्रानी से दूसरी शादी की। पर ये शादी भी 12 साल ही चली और साल 1971 में तलाक हो गया। इसके पीछे वजह थी कि दुर्रानी नूरजहां पर फिल्मों में काम छोड़ने का दबाव बनाते। नूरजहां ने पति की बात को नकारा नहीं और सिसिंग तो जारी रखी पर 1961 की गालिब फिल्म के बाद उन्होंने एक्टिंग कम कर दी।

नूरजहां एजाज से प्यार करती थी उनके हर नाज उठाने के लिए भी तैयार थीं। करियर का दांव लगना के बाद भी वो ये शादी को बचा न सकीं और दोनों के बीच दुरियां बढ़ती गई। इस शादी से भी नूरजहां को तीन बच्चे हुए।

दोनों शादी से तलाक के बाद नूरजहां ने छह बच्चों को पलाने की जिम्मेदारी खुद ली।

भारत और पाकिस्तान को मिलाकर नूरजहां ने करीब 10 हजार से गाने गाएं हैं और 70 से ज्याद फिल्मों में काम किया।

 

The Nightingale Of The East, The Nightingale Of Punjab, Daughter Of Pakistan, Queen Of Melody का खिताब मिला। कामयाबी के बुलंदियों पर पहुंचने के बाद भी नूरजहां हमेशा जमीन से जुड़ी रहीं।

 

पाकिस्तान के लेखक एजाज गुल ने लिखा था कि 'नूरजहां अपने घर पर अक्सर गानों का रियाज करती। एक बार मैं उनसे मिलने गया। वहां पर निसार बज्मी पहले से मौजूद थे। हम दोनों के लिए नूरजहां ने चाय मंगवाई। जब वो चाय दे रही थीं तभी उसकी कुछ बूंदें कप से छलक कर निसार के जूतों पर गिर गईं। ये देख नूरजहां ने फौरन झुक कर अपनी साड़ी के पल्लू से निसार के जूतों पर गिरी चाय को साफ किया। निसार ने रोका, लेकिन नूरजहां नहीं मानीं, कहाकि - आप जैसे लोगों की बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं, तो आप लोगों की खिदमद करना मेरे लिए सौभाग्य है।'

उन्हें हमेशा भारत की याद सताती इस वजह से वो बंटवारे के बाद पहली और आखिरी बार साल 1983 में भारत आईं। यहां दिलीप कुमार के साथ दूरदर्शन मुंबई में एक इंटरव्यू दिया जिस दौरान वो बेहद भावुक भी हुईं।

साल 1965 में प्राइड ऑफ परफॉर्मेंस, तमगा--इम्तियाज़ 1996 - सितारा--इम्तियाज़15 बार निगार पुरस्कार मिला।

 

नूरजहां ने साल 1992 में गाना भी छोड़ दिया। जिंदगी के अंतिम आठ साल घर में बीते - जिसमें अकेलापन और तनहाई थी। 23 दिसंबर साल 2000, 74 साल की उम्र में नूरजहां का हार्टअटैक से निधन हो गया।

आज ये ‘नूर’ तो नहीं हैं पर जब-जब पाकिस्तान और भारत दोनों ‘जहां’ में ‘सिनेमा के अतीत’ पर बात होगी तब-तब ‘नूरजहां’ का नाम जरूर आएगा।

 

सुनता सब की हूं लेकिन दिल से लिखता हूं, मेरे विचार व्यक्तिगत हैं।

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